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तिर्यञ्च गति अध्ययन
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से तं बहुबीयगा, से तं असंखेज्ज जीविया।
प. से किं तं अणंतजीविया? उ. अणंतजीविया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा
आलुए, मूलए, सिंगबेरे, हिरिली, सिरिली, सिस्सिरिली, किट्ठिया, छिरिया, छीरविरालिया, कण्हकंदे, वज्जकंदे, सूरणकन्दे, खिलूडे, भद्दमुत्था, पिंडहलिद्दा,
लोही, णीहू, थीहू, थीभगा, मुग्गकण्णी, अस्सकण्णी, सीहकण्णी, सीउंढी, मुसुंढी। जे याऽवन्ने तहप्पगारा
यह बहुबीजक वृक्षों का वर्णन हुआ, यह असंख्यात जीविकों
का वर्णन हुआ। प्र. अनन्त जीव वाले वृक्ष कौन से हैं ? उ. अनन्त जीव वाले वृक्ष अनेक प्रकार के कहे गए हैं, यथा
आलू, मूला, श्रृंगबेर (अदरक) हिरली, सिरिली, सिस्सिरली, किट्टिका, छिरिया छीरविदारिका, कृष्णकंद वज्रकंद, सूरणकंद, खिलूडा (आर्द्र), भद्र मुस्ता, पिंडहरिद्रा (हल्दी की गांठ) लोही, नीहू, थीहू, थीभगा, मुद्गकर्णी, अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, सिहण्डी, मुसुण्डी। ये और इनके अतिरिक्त जितने भी इस प्रकार के अन्य वृक्ष है, उन्हें (अनन्त जीव वाले) जान लेना चाहिए।
यह अनन्त जीव वाले वृक्षों का कथन हुआ। ५९. वनस्पतिकायिक के गंधांगप्र. भन्ते ! गंधंग कितने प्रकार के हैं ?
तथा गंधसत कितने प्रकार के हैं? उ. गौतम ! गंधांग सात प्रकार के हैं और प्रभेदों की अपेक्षा गंध
सात सौ प्रकार के कहे गए हैं।
से तं अणंतजीवियारे। -विया. स. ८, उ. ३, सु. १-५ ५९. वणस्सइकाए गंधंगाप. कइ णं भन्ते ! गंधंगा?
कइ णं भंते ! गंधसया पण्णत्ता? उ. गोयमा ! सत्त गंधंगा, सत्त गंधसया पण्णत्ता।
-जीवा. पडि.३,सु. ९८
१. पण्ण
.प.१.सु.४१
२. विया. स.७, उ.३, सु.५