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उ. गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहि जाय सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ । - विया. स. १४, उ. ८, सु. १८-२० ५८. संखेज्ज असंखेज अनंतजीवियरुक्खाणं भेय परूवर्ण
प. कइविहा णं भंते! रुक्खा पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! तिविहा रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा
१. संखेज्जजीविया २. असंखेज्जजीविया,
३. अनंतजीविया ।
प से किं तं संखेज्जजीविया ?
उ. संखेज्जजीविया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा
१. ताले, तमाले, तक्कलि, तेतलि जाव नालिएरी २ ।
जे याऽवन्ने तहप्पगारा।
से तं संजीविया ।
प से किं तं असंखेज्जजीविया ?
उ. असंखेज्जजीविया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा ।
१. एगट्ठिया य २ . बहुबीयगा य ।
प से किं तं एगट्ठिया ?
उ. एगठिया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा
निबंब जंबु जाव तहा असोगे य। जे याऽवन्ने तहप्पगारा ।
एएसि णं मूला वि असंखेज्जजीविया,
एवं कंदा वि, खंधा वि, तया वि, साला वि, पवाला वि
पत्ता पत्तेय जीविया,
पुष्फा अणेग जीविया,
फला एगट्ठिया ।
सेतं एगट्ठिया३ ।
प. से किं तं बहुबीयगा ?
उ. बहुबीयगा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहाअस्थिय बिंदु कविट्ठे जाव णीमे कहुए करांचे प । जे याSवण्णे तहप्पगारा।
एएसिणं मूला वि असंखेज्जजीविया, कंदा वि, खंधा वि, तया वि, साला वि, पवाला वि,
"
पत्ता, पत्तेय जीविया पुप्फा अणेगजीविया फला बहुबीयगा जे यावणे तहप्पगारा
१. ठाणं अ. ३, उ. १, सु. १४९ तृण वनस्पति के भेद हैं।
द्रव्यानुयोग - (२)
उ. गौतम ! वह महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगा यावत् वह सर्वदुःखों का अन्त करेगा।
५८. संख्यात असंख्यात और अनन्त जीव वाले वृक्षों के भेदों का
प्ररूपण
प्र. भन्ते ! वृक्ष कितने प्रकार के कहे गए हैं ?
उ. गौतम ! वृक्ष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. संख्यात जीव वाले, २. असंख्यात जीव वाले, ३. अनन्त जीव वाले।
प्र. भन्ते ! संख्यात जीव वाले वृक्ष कौन से हैं?
उ. गौतम ! संख्यात जीव वाले वृक्ष अनेक प्रकार के कहे गए है, यथा
ताड़, तमाल, तक्कलि, तेतलि यावत् नारकेल (नारियल)
इसी प्रकार के अन्य वृक्ष विशेष भी संख्यात जीव वाले जानना चाहिए।
यह संख्यात जीव वाले वृक्षों का वर्णन है।
प्र. भन्ते ! असंख्यात जीव वाले वृक्ष कौन से हैं?
उ. गौतम ! असंख्यात जीव वाले वृक्ष दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. एकास्थिक (एक गुठली (बीज) वाले) २. बहुबीजक ( बहुत बीजों वाले)।
प्र. एकास्थिक वृक्ष कौन से है?
उ. एकास्थिक वृक्ष अनेक प्रकार के कहे गए हैं,
यथा
नीम, आम, जामुन यावत् अशोक वृक्ष इसी प्रकार के अन्य वृक्षों को एकास्थिक जानना चाहिए।
इनके मूल (जड़) भी असंख्यात जीव वाले होते हैं।
इसी प्रकार कन्द, स्कन्ध, त्वचा (छाल) शाखा, प्रवाल
( कोंपले) भी असंख्यात जीव वाले हैं।
पत्ते प्रत्येक जीव वाले हैं,
पुष्प अनेक जीव वाले हैं,
फल एक जीव वाले हैं।
यह एकास्थिक वृक्ष (एक बीज वाले) का कथन है।
प्र. बहुबीजक वृक्ष कौन से हैं ?
उ. बहुबीजक वृक्ष अनेक प्रकार के कहे गए हैं, यथाअस्तिक, तेंदु, कपित्थ यावत् नीम कुरुज और कदम्ब आदि ।
इन (बहुबीजक वृक्षों) के मूल असंख्यात जीय वाले होते हैं। इनके कन्द, स्कन्ध, त्वचा (छाल) शाखा और प्रवाल भी (असंख्यात जीव वाले हैं)
इनके पत्ते प्रत्येक जीवात्मक (प्रत्येक पत्ते में एक-एक जीव वाले) होते हैं, पुष्प अनेक जीवरूप होते हैं और फल बहुत बीजों वाले होते हैं। ये और इस प्रकार के जितने भी अन्य वृक्ष हैं उन्हें भी (बहुबीज वाले) जान लेना चाहिए।
३. पण्ण. प. १, सु. ४०
२. पण्ण. प. १, सु. ४८ ।