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तिर्यञ्च गति अध्ययन
उ. गोयमा ! एवं जहा वक्कंतिए उब्वट्टणाए वसइकाइया तहा भाणियव्वं' ।
३२. उववन्नपुव्यत्त दारं
प. अह भंते ! सव्वपाणा, सव्वभूया, सव्वजीवा, सव्वसत्ता उप्पलमूलताए उप्पलकंदत्ताए. उप्पलनालत्ताए, उप्पलपत्तत्ताए, उप्पलकेसरत्ताए, उप्पलकण्णियत्ताए. उप्पलविभगत्ताए, उववन्नपुव्वा ?
उ. हंता, गोयमा ! असई अदुवा अनंतखुत्तो।
-विया. स. ११, उ. १, सु. २-४५
सालूय
प. सालुए णं भन्ते ! एगपत्तए किं एगजीवे, अणेगजीवे ?
उ. गोयमा ! एगजीवे, एवं उप्पलुद्देसगवत्तव्वया अपरिसेसा भाणियव्वा जाव अनंतखुत्तो ।
णवरं - सरीरोगाहणा जहणेणं असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं धणुपुहत्तं । सेसं तं चेव ।
अंगुलस्स
- विया. स. ११, उ. २, सु. १
पलास
प. पलासे णं भंते ! एगपत्तए किं एगजीवे, अणेगजीवे ?
उ. गोयमा ! एगजीवे । एवं उप्पलुद्देसगवत्तव्वया अपरिसेसा भाणियव्वा ।
णवरं सरीरोगाहणा-जहणणेणं अंगुलरस असंखेज्जइभागं उक्को सेणं गाउयपुहत्तं ।
देवा एएसु न उववज्जति । लेसासु
प. ते णं भन्ते ! जीवा किं कण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काउलेस्सा ?
उ. गोयमा ! कण्हलेस्सा था, नीललेस्सा वा, काउलेस्सा था, छब्बीस भंगा।
सेसं तं चेव ।
१. वक्कंति अध्ययन देखें।
- विया. स. ११, उ. ३, सु. १
सेसं तं चैव । कुंभिय
प. कुंभिए णं भंते ! एगपत्तए किं एगजीवे, अणेगजीवे ?
उ. गोयमा ! एगजीवे एवं जहा पलासुद्देसए तहा भाणिपब्बे ।
वर-टिई जहणे अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वासपुहत्तं ।
- विया. स. ११, उ. ४, सु. १
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उ. गौतम ! जैसे (प्रज्ञापना सूत्र के छठे ) व्युत्क्रान्तिक पद के उद्वर्तना प्रकरण में वनस्पतिकायिकों का वर्णन है उसी के अनुसार कहना चाहिए।
३२. पूर्वोत्पन्न द्वार
प्र. भन्ते ! सभी प्राणी, सभी भूत, सभी जीव और सभी सत्व उत्पल के मूलरूप में, उत्पल के कन्दरूप में, उत्पल के नालरूप में, उत्पल के पत्ररूप में, उत्पल के केसर रूप में, उत्पल की कर्णिका के रूप में और उत्पल के थिबुक रूप में क्या इससे "पहले ही उत्पन्न हो चुके हैं ?
उ. हाँ, गौतम ! अनेक बार या अनन्त बार पूर्वोक्त रूप से उत्पन्न हो चुके हैं।
शालूक
प्र. भन्ते ! क्या एक पत्ते वाला शालूक एक जीव वाला है या अनेक जीव वाला है?
उ. गौतम ! वह एक जीव वाला है। इस प्रकार से समग्र उत्पल उद्देशक का कथन अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं पर्यन्त करना चाहिए।
विशेष- इसके शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व की है।
शेष सब कथन पूर्ववत् जानना चाहिए।
पलाश
प्र. भन्ते ! क्या एक पत्ते वाला पलास वृक्ष एक जीव वाला है या अनेक जीव वाला है ?
उ. गौतम ! वह एक जीव वाला है। इस प्रकार समग्र उत्पल उद्देशक का यहाँ कथन करना चाहिए।
विशेष - शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट गव्यूति पृथक्त्व है।
देव इन में उत्पन्न नहीं होते लेश्याओं के विषय में
"
प्र. भन्ते । वे (पलाश वृक्ष) के जीव क्या कृष्णलेश्या वाले, नीललेश्या वाले या कापोतलेश्या वाले होते हैं ?
उ. गौतम ! वे कृष्णलेश्या वाले भी, नीललेश्या वाले भी और कापोतलेश्या वाले भी होते हैं इत्यादि छब्बीस भंग जानने चाहिए।
शेष सब कथन पूर्ववत् है ।
कुम्भिक
प्र. भंते! एक पत्ते वाला कुम्भिक एक जीव वाला है या अनेक जीव वाला है?
उ. गौतम ! वह एक जीव वाला है। जिस प्रकार पलाश उद्देशक में कहा उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए।
विशेष-स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट वर्ष पृथक्त्व (अनेक वर्ष) की होती है।
शेष वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए।