________________
११०९
कर्म अध्ययन ३८. चउवीसदंडएसुअणंतरोववण्णगाणं पावकम्मंबंध भंगाप. द.१.अणंतरोववण्णएणं भंते ! नेरइए पावं कम्म
किं बंधी,बंधइ, बंधिस्सइ जाव
बंधी,न बंधइ,न बंधिस्सइ? उ. गोयमा ! पढम-बिइया भंगा। प. सलेस्से णं भंते ! अणंतरोववण्णए णेरइए
पावकम्मकिं बंधी,बंधइ बंधिस्सइ जाव
बंधी,न बंधइ, न बंधिस्सइ? उ. गोयमा ! पढम-बिइया भंगा।
णवरं-कण्हपक्खिय तइयो। एवं सव्वत्थ पढम-बिइया भंगा।
३८. चौबीस दंडकों में अनन्तरोपपन्नक पापकर्मबंध के भंगप्र. द.१.भंते ! क्या अनन्तरोपपन्नक नैरयिक ने पापकर्म बांधा
था, बांधता है और बांधेगा यावत्
बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा? उ. गौतम ! प्रथम और द्वितीय भंग होता है। प्र. भंते ! सलेश्य अनन्तरोपपत्रक नैरयिक ने पापकर्म
णवर-सम्मामिच्छत्तं मणजोगो, वइजोगो य ण पुच्छिज्जइ। दं.२-११. एवं जाव थणियकुमाराणं। दं.१२-१६. एगिंदियाणं सव्वत्थ पढम-बिइया भंगा।
दं.१७-१९. बेइंदिय, तेइंदिय, चउरिंदियाणं वयजोगो न भण्णइ। दं. २०. पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं पि सम्मामिच्छत्तं,
ओहिणाणं, विभंगणाणं, मणजोगो, वयजोगो-एयाणि पंच पयाणिण भण्णंति। दं. २१. मणुस्साणं अलेस्स-सम्मामिच्छत्त-मणपज्जवणाण-केवलणाण-विभंगणाण-णो सण्णोवउत्त-अवेयगअकसायी-मणजोग-वयजोग-अजोगी-एयाणि एक्कारसपयाणि ण भण्णंति। दं. २२-२४ वाणमंतर, जोइसिय, वेमाणियाण जहा णेरइयाणं जहेव ते तिण्णि ण भण्णंति।
बांधा था, बांधता हैं और बांधेगा यावत्
बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा। उ. गौतम ! प्रथम और द्वितीय भंग पाया जाता है। विशेष-कृष्णपाक्षिक में तृतीय भंग पाया जाता है। इसी प्रकार सभी स्थानों में पहला और दूसरा भंग कहना चाहिए। विशेष-सम्यग्मिथ्यात्व, मनोयोग और वचनयोग के विषय में प्रश्न नहीं करना चाहिए। दं.२-११. स्तनितकुमार पर्यन्त इसी प्रकार कहना चाहिए। दं. १२-१६. एकेन्द्रिय जीवों के सभी स्थानों में प्रथम और द्वितीय भंग कहना चाहिए। दं. १७-१९. द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय में वचनयोग नहीं कहना चाहिए। दं. २०. पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों में भी सम्यगमिथ्यात्व, अवधिज्ञान, विभंगज्ञान, मनोयोग और वचनयोग ये पाँच स्थान नहीं कहने चाहिए। दं. २१. मनुष्यों में अलेश्यत्व, सम्यमिथ्यात्व, मनःपर्यवज्ञान, केवलज्ञान, विभंगज्ञान, नो संज्ञोपयुक्त, अवेदक, अकषायी, मनोयोग, वचनयोग और अयोगी ये ग्यारह स्थान नहीं कहने चाहिए। दं. २२-२४. वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों के विषय में नैरयिकों के कथन के समान तीन स्थान (सम्यग्मिथ्यात्व, मनोयोग और वचनयोग) नहीं कहने चाहिए। इन सबके जो शेष स्थान है, उनमें प्रथम और द्वितीय भंग
जानना चाहिए। ३९. चौबीस दंडकों में अचरिमों के पापकर्म बंध के भंगप्र. दं.१. भंते ! क्या अचरम नैरयिक ने पापकर्म बांधा था,
बांधता है और बांधेगा यावत् बांधा था, नहीं बांधता है और
नहीं बांधेगा? उ. गौतम ! जैसे प्रथम उद्देशक में कहा तदनुसार
पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों पर्यन्त द. १-२० यहाँ भी सर्वत्र
प्रथम और द्वितीय भंग कहना चाहिए। प्र. द. २१. भंते ! क्या अचरम मनुष्य ने पापकर्म बांधा था,
बांधता है और बांधेगा यावत्
बाँधा था, नहीं बाँधता है और नहीं बाँधेगा। उ. गौतम ! १. किसी (मनुष्य) ने बांधा था, बांधता है और
बांधेगा,
सव्येसिं जाणि सेसाणि ठाणाणि सव्वत्थ पढम-बिइया भंगा।
-विया.स.२६, उ.२, सु.१-९ ३९. चउवीसदंडएसुअचरिमाणं पावकम्मं बंध भंगप. दं.१.अचरिमेणं भंते !णेरइए पावं कम्म
किं बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ जाव
बंधी,न बंधइ,न बंधिस्सइ? उ. गोयमा ! जहेव पढम उद्देसए तहेव पढम बिइया भंगा
भाणियव्वा सव्वत्थ जाव १-२० पंचेंदिय
तिरिक्खजोणियाणं। प. दं.२१.अचरिमे णं भंते ! मणुस्से पावं कम्म
किं बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ जाव
बंधी,न बंधइ,न बंधिस्सइ? उ. गोयमा ! १.अत्थेगइए बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ,