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__ वेदना अध्ययन
उ. गोयमा ! पुढविकाइयाणं जरा, नो सोगे।
प. से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ
'पुढविकाइयाणं जरा, नो सोगे?'
उ. गोयमा ! पुढविकाइयाणं सारीरं वेदणं वेदेति, नो माणसं
वेदणं वेदेति। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ'पुढविकाइयाणं जरा, नो सोगे' दं.१३-१९.एवं जाव चउरिंदियाणं।
१२३५ उ. गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों के जरा होती है, किन्तु शोक नहीं
होता है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि'पृथ्वीकायिक जीवों के जरा होती है, किन्तु शोक नहीं
होता है?' उ. गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव शारीरिक वेदना वेदते हैं, वे
मानसिक वेदना नहीं वेदते हैं, इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"उनके जरा होती है, शोक नहीं होता है।" दं.१३-१९. इसी प्रकार (अप्कायिक से) चतुरिन्द्रिय जीवों पर्यन्त जानना चाहिए। दं. २०-२४. शेष जीवों का कथन सामान्य जीवों के समान
वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। २२. संक्लेश-असंक्लेश के दस प्रकारों का प्ररूपण
संक्लेश के दस प्रकार कहे गए हैं, यथा१. उपधि-संक्लेश-उपधि विषयक असमाधि, २. उपाश्रय-संक्लेश, ३. कषाय जन्य-संक्लेश, ४. भक्तपान-संक्लेश, ५. मानसिक संक्लेश, ६. वाचिक संक्लेश, ७. कायिक संक्लेश, ८. ज्ञान-संक्लेश, ९. दर्शन-संक्लेश, १०. चारित्र-संक्लेश। असंक्लेश के दस प्रकार हैं, यथा१. उपधि असंक्लेश, २. उपाश्रय-असंक्लेश, ३. कषाय-असंक्लेश, ४. भक्तपान-असंक्लेश, ५. मानसिक असंक्लेश, ६. वाचिक असंक्लेश, ७. कायिक असंक्लेश, ८. ज्ञान-असंक्लेश, ९. दर्शन-असंक्लेश, १०. चारित्र-असंक्लेश।
दं.२०-२४.सेसाणं जहा जीवाणं जाव वेमाणियाणं।
-विया. स. १६, उ.२, सु.२-७ २२. संकिलेसासंकिलेसाणं दसविहत्त परूवणं
दसविहे संकिलेसे पण्णत्ते,तं जहा१. उवहिसंकिलेसे, २. उवस्सयसंकिलेसे, ३. कसायसंकिलेसे, ४. भत्तपाणसंकिलेसे, ५. मणसंकिलेसे, ६. वइसंकिलेसे, ७. कायसंकिलेसे, ८. णाणसंकिलेसे, ९. दसणसंकिलेसे, १०. चरित्तसंकिलेसे। दसविहे असंकिलेसे पण्णत्ते,तं जहा१. उवहिअसंकिलेसे, २. उवस्सयअसंकिलेसे, ३. कसायअसंकिलेसे, ४. भत्तपाणअसंकिलेसे, ५. मणअसंकिलेसे, ६. वइअसंकिलेसे, ७. कायअसंकिलेसे ८. णाणअसंकिलेसे, ९. दसणअसंकिलेसे, १०. चरित्तअसंकिलेसे।
--ठाणं अ.१०,सु.७३९ २३. अप्प-महावेयण निज्जरासामित्तंप. जीवाणं भंते ! किं महावेयणा महानिज्जरा,
महावेयणा अप्पनिज्जरा, अप्पवेयणा महानिज्जरा,
अप्पवेयणा अप्पनिज्जरा? उ. गोयमा ! अत्थेगइया जीवा मट्ठावेयणा-महानिज्जरा,
अत्थेगइया जीवा महावेयणा अप्पनिज्जरा, अत्थेगइया जीवा अप्पवेयणा महानिज्जरा,
अत्थेगइया जीवा अप्पवेयणा अप्पनिज्जरा। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
“अत्थेगइया जीवा महावेयणा महानिज्जरा जाव
अत्थेगइया जीवा अप्पवेयणा अप्पनिज्जरा।" उ. गोयमा ! पडिमापडिवन्नए अणगारे महावेयणे
महानिज्जरे। छट्ठ-सत्तमासु पुढवीसु नेरइया महावेयणा अप्पनिज्जरा।
२३. अल्प महावेदना और निर्जरा का स्वामित्वप्र. भंते ! जीव क्या महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं,
महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं, अल्पवेदना और महानिर्जरा वाले हैं,
अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं? उ. गौतम ! कितने ही जीव महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं,
कितने ही जीव महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं, कितने ही जीव अल्पवेदना और महानिर्जरा वाले हैं
कितने जीव अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
"कितने ही जीव महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं यावत् कितने ही जीव अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं?" उ. गौतम ! प्रतिमा-प्रतिपन्नक अनगार महावेदना और
महानिर्जरा वाला है। छठी-सातवीं नरक-पृथ्वियों के नैरयिक जीव महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं। शैलेशी प्रतिपन्नक अनगार अल्पवेदना और महानिर्जरा वाला है,
सेलेसिं पडिवन्नए अणगारे अप्पवेयणे महानिज्जरे।