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स्थलचर जीवों की कायस्थिति उत्कृष्ट पूर्वकोटि-पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम की है और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है।
गति अध्ययन पलिओवमाउ तिण्णि उ उक्कोसेण तु साहिया। पुव्वकोडीपुहत्तेणं अन्तोमुहुत्तं जहनिया॥ कायट्ठिई थलयराणं-- ......... |
-उत्त.अ.३६,गा.१८५-१८६/१ असंखभागो पलियस्स उक्कोसेण साहिओ। पुव्वकोडीपुहुत्तेणं अन्तोमुहुत्तं जहन्निया। कायट्ठिई खहयराणं -----------
-उत्त.अ.३६,गा.१९२-१९३/१ ११. पज्जत्तापज्जत चउगईणं कायट्ठिई परूवणंप. णेरइयअपज्जत्तए णं भंते ! णेरइय-अपज्जत्तए ति
कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
खेचर जीवों की कायस्थिति उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक पल्योपम के असंख्यातवें भाग की है और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है।
एवं जाव देवी अपज्जत्तिया।
प. णेरइयपज्जत्तए णं भंते ! णेरइयपज्जत्तए ति कालओ
केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साई अंतोमुत्तूणाई,
उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई। प. तिरिक्खजोणियपज्जत्तए णं भंते !
तिरिक्खजोणियपज्जत्तए त्ति कालओ केवचिर होइ? उ. गोयमा !जहण्णेणं अंतोमुहत्तं,
उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई अंतोमुत्तूणाई। एवं तिरिक्खजोणिणिय पज्जत्तिया वि।
११. पर्याप्त-अपर्याप्त चार गतियों की कायस्थिति का प्ररूपणप्र. भन्ते ! अपर्याप्त नारक जीव-अपर्याप्त नारकपर्याय में कितने
काल तक रहता है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त तक
रहता है। इसी प्रकार देवी पर्यन्त अपर्याप्त अवस्था अन्तर्मुहूर्त कहना
चाहिए। प्र. भंते ! पर्याप्त नारक पर्याप्त-नारकपर्याय में कितने काल तक
रहता है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष,
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तेतीस सागरोपम तक रहता है। प्र. भन्ते ! पर्याप्त तिर्यञ्चयोनिक-पर्याप्त तिर्यञ्चयोनिक पर्याय में
कितने काल तक रहता है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त,
उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त कम तीन पल्योपम तक रहता है। इसी प्रकार पर्याप्त तिर्यञ्चयोनिकी की कायस्थिति के लिए कहना चाहिए। मनुष्य और मनुष्यस्त्री की कायस्थिति भी इसी प्रकार कहनी चाहिए। पर्याप्त देव की कायस्थिति पर्याप्त नैरयिक के समान कहनी
चाहिए। प्र. भन्ते ! पर्याप्त देवी-पर्याप्त देवी पर्याय के रूप में कितने काल
तक रहती है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष,
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पचपन पल्योपम तक रहती है।
मणुसे-मणुसी वि एवं चेव।
देवपज्जत्तए जहाणेरइयपज्जत्तए।
प. देविपज्जत्तिया णं भंते ! देविपज्जत्तिय त्ति कालओ
केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साई अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं पणपण्णं पलिओवमाइं अंतोमुत्तूणाई।
-पण्ण.प.१८,सु. १२६६-१२७० १२. पढमापढम चाउगईसु सिद्धस्स य कायट्ठिई काल परवणं
प. पढमसमयणेरइया णं भंते ! पढमसमयणेरइए त्ति कालओ
केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! एवं समय। प. अपढमसमयणेरइए णं भंते ! अपढमसमयणेरइए त्ति
कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा !जहण्णेणं दस वाससहस्साई समयूणाई,
उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समयूणाई।
१२. प्रथम-अप्रथम चार गतियों और सिद्ध की कायस्थिति के काल
का प्ररूपणप्र. भन्ते ! प्रथम समय के नैरयिक-प्रथम समय के नैरयिक रूप में
कितने काल तक रहता है? उ. गौतम ! एक समय। प्र. भन्ते ! अप्रथम समय के नैरयिक-अप्रथम समय के नैरयिक
रूप में कितने काल तक रहता है? उ. गौतम ! जघन्य एक समय कम दस हजार वर्ष,
उत्कृष्ट एक समय कम तेतीस सागरोपम।