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गति अध्ययन
१२४५ थलयराणं खहयराण वि पंच पज्जत्तीओ एवं चेव।
सम्मूर्छिम स्थलचर खेचर जीवों के भी इसी प्रकार पांच
पर्याप्तियां हैं। जलयरा-थलयरा-खहयरा वि पंच अपज्जतीओ एवं चेव। जलचर स्थलचर और खेचर जीवों के भी इसी प्रकार पांच
अपर्याप्तियां हैं। प. गब्भवक्कंतिय पंचिंदियतिरिक्खजोणिय जलयराणं भंते ! प्र. भन्ते ! गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जलचरों के कितनी कइ पज्जत्तीओ पण्णत्ताओ?
पर्याप्तियां कही गई हैं? उ. गोयमा ! छपज्जत्तीओ पण्णत्ताओ,तं जहा
उ. गौतम ! छः पर्याप्तियां कही गई हैं, यथा१. आहार पज्जत्ती जाव ६.मण पज्जत्ती
१. आहार पर्याप्ति यावत् ६. मनःपर्याप्ति थलयराणं खहयराण विएवं चेव।
गर्भज स्थलचर-खेचर जीवों के लिए भी इसी प्रकार
पर्याप्तियां कहनी चाहिए। छ अपज्जत्तीओ एवं चेव। -जीवा. पडि. १, सु. ३५-४० इनके छः अपर्याप्तियां भी इसी प्रकार है। प. सम्मुच्छिम मणुस्सा णं भंते ! कइ पज्जत्तीओ पण्णत्ताओ? प्र. भंते ! सम्मूर्छिम मनुष्यों के कितनी पर्याप्तियां कही गई हैं ? उ. गोयमा ! तिण्णि पज्जत्तीओ पण्णत्ताओ,तं जहा
उ. गौतम ! तीन पर्याप्तियां कही गई हैं, यथा१. आहार पज्जत्ती, २. सरीर पज्जत्ती,
१. आहार पर्याप्ति, २. शरीर पर्याप्ति, ३. इंदिय पज्जत्ती।
३. इन्द्रिय पर्याप्ति। प. सम्मुच्छिम मणुस्सा णं भंते ! कइ अपज्जत्तीओ प्र. भन्ते ! सम्मूर्छिम मनुष्यों के कितनी अपर्याप्तियां कही गई हैं ?
पण्णत्ताओ? उ. गोयमा ! चत्तारि अपज्जत्तीओ पण्णत्ताओ।
उ. गौतम ! चार अपर्याप्तियां कही गई हैं। प. गब्भवक्कंतिय मणुस्सा णं भंते ! कइ पज्जत्तीओ प्र. भन्ते ! गर्भज मनुष्यों के कितनी पर्याप्तियां कही गई हैं ?
पण्णत्ताओ? उ. गोयमा ! पंच (छ) पज्जत्तीओ पण्णत्ताओ,तं जहा
उ. गौतम ! पांच (छः) पर्याप्तियां कही गई हैं, यथा१. आहार पज्जत्ती जाव ५-६ भासा-मण पज्जत्ती।
१. आहार पर्याप्ति यावत् ५-६ भाषा-मनःपर्याप्ति, पंच अपज्जत्तीओ पण्णत्ताओ एवं चेव।
पांच अपर्याप्तियां भी इसी प्रकार कही गई हैं।
-जीवा. पडि.१, सु.४१ प. देवा णं भंते ! कइ पज्जत्तीओ पण्णत्ताओ?
प्र. भन्ते ! देवों के कितनी पर्याप्तियां कही गई हैं? उ. गोयमा ! पंच पज्जत्तीओ पण्णत्ताओ,तं जहा
उ. गौतम ! पांच पर्याप्तियां कही गई हैं, यथा१. आहार पज्जत्ती जाव ५.भासा-मण पज्जत्ती।
१. आहार पर्याप्ति यावत् ५. भाषा मनः पर्याप्ति। प. देवाणं भन्ते ! कइ अपज्जत्तीओ पण्णत्ताओ,
प्र. भन्ते ! देवों के कितनी अपर्याप्तियां कही गई हैं ? उ. गोयमा ! पंच अपज्जत्तीओ पण्णत्ताओ,तं जहा
उ. गौतम ! पांच अपर्याप्तियां कही गई हैं, यथा१. आहार अपज्जत्ती जाव ५.भासा-मण अपज्जत्ती।
१. आहार अपर्याप्ति यावत् ५. भाषा मनः अपर्याप्ति।
-जीवा. पडि.१,सु.४२ ८. चउगईसुपरित्ताणं संखा परूवणं
८. चार गतियों में परित्त संख्या का प्ररूपणणेरइया-परित्ता असंखेज्जा। -जीवा. पडि. १, सु.३२ नैरयिक-ये (जीव) परित्त (परिमित) हैं और असंख्यात हैं। सुहुम पुढविकाइया-परित्ता असंखेज्जा।
सूक्ष्म पृथ्वीकाय- परित्त हैं और असंख्यात हैं, -जीवा, पडि.१.सु. १३ (३३) एवं जाव सुहुम-बायर वाउकाइया वि। -जीवा. पडि. १४-१६ इसी प्रकार सूक्ष्म-बादर वायुकाय पर्यन्त जानना चाहिए। सुहुम वणस्सइकाइया-अपरित्ता अणंता। -जीवा. पडि. १,सु. १८ सूक्ष्म वनस्पतिकायिक-अपरित्त और अणंत हैं, साहारण सरीर बायर वणस्सइकाइया-परित्ता अणंता ।
साधारण शरीर बादर वनस्पतिकायिक-परित्त और अणंत हैं,
-जीवा. पडि.१.सु.२१ पत्तेय सरीर बायर वणस्सइकाइया-परित्ता असंखेज्जा।
प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक-परित्त हैं और असंख्यात हैं,
-जीवा. पडि.१,सु.२१ बेइंदिया-तेइंदिया-चउरिंदिया-परित्ता असंखेज्जा।
द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय परित्त हैं और असंख्यात हैं,
-जीवा. पडि.१,सु. २८-३० १. पर्याप्ति द्वारे पंच पर्याप्तयः पंचापर्याप्तयः भाषामनः पर्याप्त्योरेकत्वेन विवक्षणात्।-जीवा. टीका