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८. निरयपरिसामंतवासि पुढविकाइयाइ जीवाणं महाकम्पतराइ परूवणं
प. इमीसे णं भन्ते रयणप्पभाए पुढवीए णिरयपरिसामंतेसु जे पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया ते णं जीवा महाकम्मतरा चेव, महाकिरियतरा चेव, महासवतरा चेव, महावेदणतरा चेव ?
उ. हंता, गोयमा ! इमीसे णं रयणयभाए पुढवीए निरयपरिसामंतेस पुढविकाइया जाय वणस्सइकाइया ते णं जीवा महाकम्मतरा चेव जाव महावेदणतरा चेव । एवं जाव अहेसत्तमा ।
- विया. स. १३, उ, ४, सु. ११
द्रव्यानुयोग - (२)
८. नरकावासों के पार्श्ववासी पृथ्वीकायिकादि जीवों के महाकर्मतरादि का प्ररूपण
प्र. भन्ते । इस रत्नप्रभापृथ्वी के नरकावासों के परिपार्श्व में जो पृथ्वीकायिक से वनस्पतिकायिक पर्यन्त जीव हैं क्या ये महाकर्म, महाक्रिया, महाआश्रव और महावेदना वाले हैं ?
उ. हाँ, गौतम ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नरकावासों के परिपार्श्व में पृथ्वीकाय से वनस्पतिकायिक पर्यन्त जो जीव हैं वे महाकर्म यावत् महावेदना वाले हैं।
इसी प्रकार अधः सप्तम पृथ्वी पर्यन्त जानना चाहिए।