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तिर्यञ्च गति अध्ययन
प. अनंत रोचचन्नगा णं भंते! पुढविकाइया कइविहा पन्नत्ता ?
उ. गोयमा ! दुखिहा पन्नत्ता, तं जहा
१. सुहुमपुढविकाइया व २. बादरपुढविकाइया य एवं दुपएणं भेएणं जाय यणस्सइकाइया' ।
- विया. स. ३३, उ. २, सु. १. २२. परंपरोववन्नग एगिदिय जीवाणं भेयप्यभेव परूवणंप. कइविहाणं भंते ! परंपरोववन्नगा एगिंदिया पन्नत्ता ?
उ. गोयमा ! पंचविहा परंपरोववन्नगा एगिंदिया पण्णत्ता, तं जहा
१. पुढविकाइया जाव ५. वणस्सइकाइया । एवं चक्कओ भेओ जहा ओहियउद्देसए । -विया. स. ३३, उ. ३, सु. १ २३. अणंतरोवगाढाइ एगिंदिय जीवाणं भेयप्पभेय परूवणं१. अनंतरोगाढा जहा अणतरोववन्नगा ।
२. परंपरोगाढा जहा परंपरोववन्नगा ।
३. अनंतराहारगा जहा अणंतरोववन्नगा ।
४. परंपराहारगा जहा परंपरोववन्नगा ।
५. अणंतरपज्जतगा जहा अणंतरोववन्नगा ।
६. परंपरपज्जतगा जहा परंपरोववन्नगा
७. चरिमा वि जहा परंपरोववन्नगा । ८. एवं अचरिमा थि।
एवं एए एक्कारस उद्देसगा। - विया. स. ३३/१, उ. ४-११ २४. कण्हलेस्स एगिंदिय जीवाणं भेयप्पभेय परूवणं
प. कइविहा णं भंते ! कण्हलेस्सा एगिंदिया पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! पंचविहा कण्हलेस्सा एगिदिया पण्णत्ता, तं जहा
१. पुढविकाइया जाव ५. वणस्सइकाइया । प. कण्हलेस्सा णं भंते! पुढविकाइया कइविहा पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा
१. सुहुमपुढविकाइया व २. बायरपुढविकाइया य प. कण्हलेस्सा णं भंते ! सुहुमपुढविकाइया कइविहा पण्णत्ता ?
१ (क) विया. स. ३४ / ए. २, उ. १, सु. १
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प्र. भन्ते ! अनन्तरोपपत्रक पृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के कहे गए हैं ?
उ. गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. सूक्ष्म पृथ्वीकायिक २. बादर पृथ्वीकायिक | इसी प्रकार ( प्रत्येक) एकेन्द्रिय के (दो-दो) भेद वनस्पतिकायिक पर्यन्त जानना चाहिए।
२२ . परंपरोपपन्नक एकेन्द्रियों के भेद्र-प्रभेदों का प्ररूपण
प्र. भंते ! परंपरोपपन्नक एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे गए हैं?
उ. गौतम ! परंपरोपपन्नक एकेन्द्रिय जीव पाँच प्रकार के कहे गए हैं,
यथा
१. पृथ्वीकायिक यावत् ५. वनस्पतिकायिक ।
इसी प्रकार औधिक उद्देशक के अनुसार चार-चार भेद कहने चाहिए !
२३. अनन्तरोवगाढादि एकेन्द्रियों के भेद प्रभेदों का प्ररूपण
१. अनन्तरावगाढ एकेन्द्रिय का कथन अनन्तरोपपन्नक उद्देशक के समान जानना चाहिए।
२. परम्परावगाढ एकेन्द्रिय का कथन परम्परोपपन्नक उद्देशक के समान जानना चाहिए।
३. अनन्तराहारक एकेन्द्रिय का कथन अनन्तरोपपन्नक उद्देशक के समान जानना चाहिए।
४. परम्पराहारक एकेन्द्रिय का कथन परम्परोपपन्नक उद्देशक के समान जानना चाहिए।
५. अनन्तरपर्याप्तक एकेन्द्रिय का कथन अनन्तरोपपन्नक उद्देशक के समान जानना चाहिए।
६. परम्परपर्याप्तक एकेन्द्रिय का कथन परम्परोपपन्नक उद्देशक के समान जानना चाहिए।
७. चरम एकेन्द्रिय का कथन परम्परोपपत्रक उद्देशक के समान जानना चाहिए।
८. अचरम एकेन्द्रिय का कथन परंपरोपपन्नक उद्देशक के समान जानना चाहिए।
इस प्रकार ये इग्यारह उद्देशक हुए ।
२४. कृष्णलेश्यी एकेन्द्रियों के भेद-प्रभेदों का प्ररूपण
प्र. भंते! कृष्णलेश्यी एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे गए हैं? उ. गौतम ! कृष्णलेश्यी एकेन्द्रिय जीव पांच प्रकार के कहे गए हैं,
यथा
१. पृथ्वीकायिक यावत् ५. वनस्पतिकायिक ।
प्र. भंते! कृष्णलेश्या वाले पृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के कहे गए हैं ?
उ. गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. सूक्ष्मपृथ्वीकायिक २. बादरपृथ्वीकायिक | प्र. भंते! कृष्णलेश्या वाले सूक्ष्म पृथ्वीकाधिक कितने प्रकार के कहे गए हैं ?
(ख) विया. स. ३४ / ए. १, उ. ३, सु. १