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वेदना अध्ययन
३. अड्ढेज्जं,
४. काम, ५. भोग,
६. संतोसो
७. अत्थि,
८. सुहभोग,
९. क्म्मेमेती
१०. अणाबाहे ।
- ठाणं. अ. १०, सु. ७३७
१९. मापाए सुक्खदुक्खवेयण परूवणं
प. अन्नउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्खति जाव परूवेंति
"एवं खलु सव्ये पाणा, सब्बे भूया, सव्वे जीवा, सव्वे सत्ता एगंतदुक्खं वेयणं वेदेंति" से कहमेयं भंते ! एवं ?
उ. गोयमा ! जं णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खति जाव परूवेंति, सव्वे पाणा सव्वे भूया, सव्वे जीवा, सव्वे सत्ता, एगंत दुक्खं वेयणं वेदेति मिच्छं ते एवमाहंसु । अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि
अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता एगंतदुक्खं वेयणं वेदेंति, आहच्च सायं ।
अत्येगइया पाणा भूया जीवा सत्ता एगतसाय वेषणं वेदेंति, आहच्च असायं ।
अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता बेमायाए बेवणं वेदेति, आहच्च सायमसायं ।
प से केणट्ठेण भंते! एवं बुच्चइ
'जाव अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता वेमायाए वेयणं वेदेति, आहच्च सायमसायं ।
उ. गोयमा ! नेरइया एतदुक्ख वेवणं वेदेति, आहच्य सायं ।
भवणवइयाणमंतर जोइस वेमाणिया एगतसायं वैयणं वेदेति, आहच्च असायं ।
पुढविक्काइया जाव मणुस्सा वेमायाए वेयणं वेदेति, आहच्च सायमसायं ।
से तेणट्ठेण गोयमा ! एवं बुच्चइ
"जाव अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता वेमायाए वेयणं वेदेंति आहच्च सायमसायं ।" -विया. स. ६, उ. १०, सु. ११
२०. सव्वलोएसु सव्वजीवाणं सुह दुक्खं अणुमेत्त वि उवदंसित्तए असामत्थ परूवणं
प. अन्नउत्थिया णं भते । एवमाइक्खति जाब परूवेति'जावइया रायगिहे नयरे जीवा एवइयाणं जीवाणं नो
३. आढ्यता- धन की प्रचुरता,
४. काम-शब्द और रूप,
५. भोग-गंध, रस और स्पर्श,
६. सन्तोष अल्पइच्छा,
७. अस्ति कार्य की पूर्ति हो जाना,
८. शुभभोग-सुखानुभव,
९. निष्क्रमण प्रवज्या,
१०. अनाबाध-निराबाध मोक्ष सुख ।
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१९. विमात्रा से सुख-दु:ख वेदना का प्ररूपण
प्र. भंते ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं यावत् प्ररूपणा करते हैं कि
"सभी प्राण, भूत, जीव और सत्व एकान्तदुःख रूप वेदना को वेदते हैं" तो
भंते! ऐसा कैसे हो सकता है?
उ. गौतम ! अन्यतीर्थिक जो यह कहते हैं यावत् प्ररूपणा करते हैं कि- सभी प्राण, भूत, जीव और सत्व एकान्त दुःख रूप वेदना को वेदते हैं वे मिथ्या कहते हैं।
हे गौतम! मैं इस प्रकार कहता हूँ यावत् प्ररूपणा करता हैं कि
'कितने ही प्राण, भूत, जीव और सत्व एकान्तदुःखरूप वेदना को वेदते हैं और कदाचित् सुख रूप वेदना को भी वेदते हैं, कितने ही प्राण, भूत जीव और सत्व एकान्त सुख रूप वेदना को वेदते हैं और कदाचित् दुःख रूप वेदना को भी वेदते हैं, कितने ही प्राण, भूत, जीव और सत्य विमात्रा से वेदना को वेदते हैं, कदाचित् सुख-दुःख रूप वेदना भी वेदते हैं। प. भंते! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
यावत् कितने ही प्राण, भूत, जीव और सत्व विमात्रा से वेदना को वेदते हैं और कदाचित् सुख-दुःख रूप वेदना भी वेदते हैं? उ. गौतम ! नैरयिक जीव, एकान्त दुःखरूप वेदना को वेदते हैं। और कदाचित् सुख रूप वेदना भी वेदते हैं।
भवनपति वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक एकान्त सुख रूप वेदना को वेदते हैं और कदाचित् दुःख की वेदना को भी वेदते हैं।
पृथ्वीकायिक जीव यावत् मनुष्य विमात्रा से वेदना को वेदते हैं कदाचित् सुख और कदाचित दुःख रूप वेदना भी वेदते हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि
" यावत् कितने ही प्राण, भूत, जीव और सत्व विमात्रा से वेदना को वेदते हैं और कदाचित् सुख-दुःख रूप वेदना भी वेदते हैं।"
२०. सर्व जीवों के सुख दुःख को अणुमात्र भी दिखाने में असामर्थ्य
का प्ररूपण
प्र. भंते ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं यावत् प्ररूपणा करते हैं कि-'राजगृह नगर में जितने जीव हैं,