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५६. चउवीसदंडएसु बज्झ पावकम्माणं वेयणं परवणं
दं.१-२०.णेरइयाणं सया समियं जे पावे कम्मे कज्जइ,
द्रव्यानुयोग-(२)) ५६. चौबीस दंडकों में बंधे हुए पापकों के वेदन का प्ररूपण
दं. १-२०. नैरयिकों से पंचेंद्रिय तिर्यञ्चयोनिकों तक के दण्डकों में जो सदा परिमित पापकर्म का बंध होता है, (उसका फल) कई उसी भव में वेदन करते हैं, कई भवान्तर में वेदन करते हैं।
तत्थगया विएगइया वेयणं वेयंति, अन्नत्थगया विएगइया वेयणं वेयंति, जाव पंचेंदिय तिरिक्खजोणियाणं। दं.२१. मणुस्साणं सया समियं जे पावे कम्मे कज्जइ,
इहगया विएगइया वेयणं वेयंति, अन्नत्थगया वि एगइया वेयणं वेयंति। मणुस्सवज्जा सेसा एक्कगमा। दं.२२-२४.जे देवा उड्ढोववन्नगा कप्पोववन्नगा, विमाणोववन्नगा, चारोववन्नगा चारट्ठिइया गइरइया गइसमावन्नगा
दं. २१. मनुष्यों के जो सदा परिमित पाप-कर्म का बंध होता है, (उसका फल) कई इसी भव में वेदन करते हैं, कई भवान्तर में वेदन करते हैं। मनुष्यों के अतिरिक्त शेष आलापक समान समझने चाहिए। द.२२-२४.जो ऊर्ध्वलोक में उत्पन्न हुए देवों में कल्पोपन्नक हों या विमानोपपन्नक हों, जो चारोपपन्नक देवों में चार स्थित हों, गतिशील हों या सतत गतिशील हों, उन देवों के सदा परिमित पापकर्म का बंध होता है उसका फल कई देव उसी भव में वेदन करते हैं, और कई भवान्तर में वेदन करते हैं।
५७. सामान्यतः बंध के भेद
बंध एक है। बंध दो प्रकार का कहा गया है, यथा१.प्रेय बंध, २. द्वेष बंध,
तेसिणं देवाणं सया समियं जे पावे कम्मे कज्जइ, तत्थगया वि एगइया वेयणं वेयंति, अन्नत्थगया विएगइया वेयणं वेयंति।
-ठाणं अ.२, उ.२,सु.६७ ५७. ओहिया बंध भेयाएगे बंधे,२
-ठाणं अ.१,सु.७ दुविहे बंधे पण्णत्ते,तं जहा१. पेज्जबंधे चेव, २.दोस बंधे चेव।३
-ठाणं.अ.२,उ.४,सु.१०७ ५८. इरियावहिय-संपराइयपडुच्च बंध भेया
प. कइविहे णं भंते ! बंधे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! दुविहे बंधे पण्णत्ते,तं जहा१. इरियावहिया बंधे य, २. संपराइयबंधे य।
-विया. स.८, उ.८, सु. १० ५९. विविहावेक्खया वित्थरओइरियावहियबंधसामित्तंप. इरियावहियं णं भंते ! कम्मं किं नेरइओ बंधइ,
तिरिक्खजोणिओ बंधइ,तिरिक्खजोणिणी बंधइ, मणुस्सो बंधइ, मणुस्सी बंधइ,
देवो बंधइ, देवी बंधइ? उ. गोयमा ! नो नेरइओ बंधइ,
नोतिरिक्खजोणिओ बंधइ, नो तिरिक्खजोणिणी बंधइ, नो देवो बंधइ, नो देवी बंधइ, पुव्वपडिवन्नए पडुच्च मणुस्सा य मणुस्सीओ य बंधंति,
५८. ईर्यापथिक और साम्परायिक की अपेक्षा बंध के भेद
प्र. भंते ! बंध कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! बन्ध दो प्रकार का कहा गया है, यथा
१. ईर्यापथिकबन्ध, २. साम्परायिकबन्ध।
५९. विविध अपेक्षा से विस्तृत ईर्यापथिक बंध स्वामित्वप्र. भंते ! ईर्यापथिककर्म क्या नैरयिक बाँधता है,
तिर्यञ्चयोनिक बाधंता है, तिर्यञ्चयोनिकी (मादा) बांधती है, मनुष्य बांधता है, मनुष्य-स्त्री (नारी) बांधती है,
देव बांधता है या देवी बांधती है? उ. गौतम ! ईर्यापथिककर्म न नैरयिक बांधता है,
न तिर्यञ्चयोनिक बांधता है, न तिर्यञ्चयोनिक स्त्री बंधती है, न देव बंधता है और न देवी बांधती है, किन्तु पूर्वप्रतिपन्नक की अपेक्षा इसे मनुष्य पुरुष बांधते हैं और मनुष्य स्त्रियां बांधती हैं,
२.
सम.सम.१,सु.१६
१. चौवीस दंडकों के क्रमानुसार यह पाठ
व्यवस्थित किया है।
३. (क) ठाणं.९,सु.६९३
(ख) सम.सम.२,सु.३