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कर्म अध्ययन
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उ. गोयमा ! अप्पकम्मस्स जाव सव्वओ पोग्गला परिविद्धं
संति जाव नो दुक्खत्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमइ।
प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
"अप्पकम्मस्स जाव सव्वओ पोग्गला परिविद्धंसंति जाव नो दुक्खत्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमइ ?'
उ. हा गौतम ! अल्पकर्म वाले जीव के यावत् सर्वतः पुद्गल
पूर्णरूप से विध्वंस होते हैं यावत् (उसकी आत्मा) अदु:खता
के रूप में बार-बार परिणत होती है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
“अल्पकर्म वाले जीव के यावत् सर्वतः पुद्गल पूर्ण रूप से विध्वंस होते हैं यावत अदुःखता के रूप में बार-बार परिणत
होती है? उ. गौतम ! जैसे कोई जल्लित (मैला) (पंकित) कीचड़ से सना
मैलसहित या धूल से भरे वस्त्र को क्रमशः साफ करने का उपक्रम किया जाए, शुद्ध पानी से धोया जाए तो उस पर लगे हए मैले–अशुभ पुद्गल सब ओर से भिन्न होने लगते हैं यावत् परिणत हो जाते हैं, इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"अल्पकर्मादि वाले जीव के यावत् सर्वतः पुद्गल पूर्णरूप से विध्वंस होते हैं यावत् अदुःखता के रूप में बार-बार
परिणत होते हैं। १७१. कर्म पुद्गलों के काल पक्ष का प्ररूपण
जमाली अणगार के मन में इस प्रकार का विचार यावत् संकल्प उत्पन्न हुआ कि श्रमण भगवान् महावीर जो इस प्रकार कहते हैं यावत् प्ररूपण करते हैं "चलमान चलित है, उदीर्यमाण उदीरित है यावत् निर्जीर्णमाण निर्जीण है," यह मिथ्या है।
१७१. कन्नर अणगारणं समजल चलमा गणतं
उ. गोयमा ! से जहानामए वत्थस्स जल्लियस्स वा, पंकित्तस्स वा, महलियस्स वा, रइल्लियस्स वा, आणुपुव्वीए परिकम्मिज्जमाणस्स सुद्धेण वारिणा धोव्वमाणस्स सव्वओ पोग्गला भिज्जति जाव परिणमंति। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"अप्पकम्मस्स जाव सव्वओ पोग्गला परिविद्धसंति जाव नो भुज्जो-भुज्जो परिणमइ।
-विया. स.६, उ.३, सु.२-३ १७१. कम्म पुग्गलाणं कालपक्ख परूवणं
जमालिस्स अणगारस्स अयमेयारूवे अज्झथिए जाव संकप्पे समुप्पजित्था-जं णं समणे भगवं महावीरे एवं आइक्खइ जाव एवं परूवेइ, “एवं खलु चलमाणे चलिए, उदीरिज्जमाणे उदीरिए जाव निज्जरिज्जमाणे णिज्जिण्णे तं णं मिच्छा, इमं च णं पच्चक्खमेव दीसइ, सेज्जासंथारए कज्जमाणे अकडे, संथरिज्जमाणे असंथरिए, जम्हाणं सेज्जासंथारए कज्जमाणे अकडे, संथरिज्जमाणे असंथरिए तम्हा चलमाणे वि अचलिए जाव निज्जरिज्जमाणे वि अणिज्जिण्णे।
-विया.स.९,उ.३३,सु.९६ प. से नूणं भंते !
१. चलमाणे चलिए? २. उदीरिज्जमाणे उदीरिए? ३. वेइज्जमाणे वेइए? ४. पहिज्जमाणे पहीणे? ५. छिज्जमाणे छिन्ने? ६. भिज्जमाणे भिन्ने ? ७. डज्झमाणे डड्ढे? ८. मिज्जमाणे मडे?
९. निज्जरिज्जमाणे निज्जिण्णे? उ. हंता गोयमा ! चलमाणे चलिए जाव निज्जरिज्जमाणे
निज्जिण्णे।
क्योंकि यह प्रत्यक्ष दीख रहा है कि जब तक शय्यासंस्तारक बिछाया जा रहा है, तब तक वह शय्या संस्तारक बिछाया गया नहीं है। इस कारण चलमान चलित नहीं किन्तु अचलित है याबत निर्जीर्णमान निर्जीण नहीं किन्त अनिर्जीर्ण है।
प्र. भंते ! क्या यह निश्चित (कहा जा सकता) है कि
१. जो चल रहा हो, वह चला? २. जो (कर्म) उदीरा जा रहा है, वह उदीर्ण हुआ? ३. जो (कर्म) वेदा भोगा जा रहा है, वह वेदा गया? ४. जो गिर रहा है, वह गिरा? ५. जो (कर्म) छेदा जा रहा है, वह छिन्न हुआ? ६. जो (कर्म) भेदा जा रहा है, वह भिन्न हुआ? ७. जो (कर्म) दग्ध हो रहा है, वह दग्ध हुआ? ८. जो मर रहा है, वह मरा?
९. जो (कर्म) निर्जरित हो रहा है, वह निर्जीर्ण हुआ? उ. हां गौतम ! जो चल रहा हो, उसे चला यावत् जो निर्जरित
हो रहा है, उसे निर्जीर्ण हुआ (इस प्रकार कहा जा सकता है।)
१. अन्नउस्थियाणं भंते ! एवमाइक्वंति जाव परूवेंति-"एवं खलु चलमाणे अचलिए जाव निज्जरिमाणे अणिजिण्णे गोयमा ! जे ते एवमाहंसु मिच्छा ते एवमाहंसु अहं पुण एवमाइक्खामि “एवं खलु चलमाणे चलिए जाव निजरिज्जमाणे निज्जिणे"
-विया. स.१,उ.१०.सु.१