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वेदना अध्ययन
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दं. १. प. नेरइयाणं भंते ! किं करणओ वेयणं वेदेति,
अकरणओ वेयणं वेदेति? उ. गोयमा ! नेरइया णं करणओ वेयणं वेदेति, नो
अकरणओ वेयणं वेदेति। प. सेकेणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
"नेरइयाणं करणओ वेयणं वेदेति, नो अकरणओ वेयणं
वेदेति?" उ. गोयमा ! नेरइयाणं चउव्विहे करणे पण्णत्ते,तं जहा
१. मणकरणे, २. वइकरणे,
४. कम्मकरणे। इच्चेएणं चउविहेणं असुभेणं करणेणं नेरइया करणओ असायं वेयणं वेदेति, नो अकरणओ।
से तेणठेणं गोयमा !एवं वुच्चइ"नेरइया णं करणओ वेयणं वेदेति, नो अकरणओ वेयणं
वेदेति।" प. दं.२. असुरकुमारा णं भंते ! किं करणओ वेयणं वेदेति,
अकरणओ वेयणं वेदेति? उ. गोयमा ! असुरकुमाराणं करणओ वेयणं वेदेति, नो
अकरणओ वेयणं वेदेति। . प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
"असुरकुमारा णं करणओ वेयणं वेदेति, नो अकरणओ
वेयणं वेदेति?" उ. गोयमा ! असुरकुमाराणं चउविहे करणे पण्णत्ते,
तं जहा१. मणकरणे, २. वइकरणे, ३. कायकरणे, ४. कम्मकरणे। इच्चेएणं सुभेणं करणेणं असुरकुमारा णं करणओ सायं वेयणं वेदेति, नो अकरणओ।
दं.३-११. एवं जाव थणियकुमास। प. दं.१२. पुढविकाइयाणं भंते ! किं करणओ वेयणं वेदेति. ___ अकरणओ वेयणं वेदेति? उ. गोयमा ! पुढविकाइयाणं करणओ य वेयणं वेदेति,
नो अकरणओ वेयणं वेदेति। णवर-इच्चेएणं सुभासुभेणं करणेणं पुढविकाइया करणओ वेमायाए वेयणं वेदेति, नो अकरणओ।
प्र. दं.१. भंते ! क्या नैरयिक जीव करण से वेदना वेदते हैं या
अकरण से वेदना वेदते हैं ? उ. गौतम ! नैरयिक जीव करण से वेदना वेदते हैं अकरण से
वेदना नहीं वेदते हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
"नैरयिक करण से वेदना वेदते हैं, अकरण से वेदना नहीं
वेदते हैं?" उ. गौतम ! नैरयिक जीवों के चार प्रकार के करण कहे गए हैं,
यथा१. मन-करण, २. वचन-करण, ३. काय-करण, ४. कर्म-करण। उनके ये चारों ही प्रकार के करण अशुभ होने से वे (नैरयिक जीव) करण द्वारा ही असातावेदना वेदते हैं, किन्तु अकरण से नहीं वेदते। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"नैरयिक जीव करण से असातावेदना वेदते हैं, अकरण से
वेदना नहीं वेदते हैं।" प्र. दं.२. भंते ! असुरकुमार देव करण से वेदना वेदते हैं या
अकरण से वेदना वेदते हैं? उ. गौतम ! असुरकुमार करण से वेदना वेदते हैं, अकरण से नहीं
वेदते हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
"असुरकुमार करण से वेदना वेदते हैं, अकरण से वेदना नहीं
वेदते हैं?" उ. गौतम ! असुरकुमारों के चार प्रकार के करण कहे गए हैं,
यथा१. मनकरण, २. वचन-करण, ३. काय-करण, ४. कर्म-करण। असुरकुमारों के ये चारों ही प्रकार के करण शुभ होने से वे करण द्वारा सातावेदना वेदते हैं, किन्तु अकरण से नहीं वेदते।
दं.३-११ इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. दं.१२. भंते ! पृथ्वीकायिक जीव करण से वेदना वेदते हैं या
अकरण से वेदना वेदते हैं ? उ. गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव करण द्वारा वेदना वेदते हैं, किन्तु
अकरण द्वारा वेदना नहीं वेदते हैं। विशेष-पृथ्वीकायिकों के शुभाशुभ करण होने से वे विमात्रा से कभी शुभ और कभी अशुभ वेदना वेदते हैं, किन्तु अकरण द्वारा नहीं वेदते हैं। दं. १३-२१. औदारिक शरीर वाले सभी जीव (पांच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय और मनुष्य) शुभाशुभ करण द्वारा विमात्रा से वेदना (कदाचित् साता और कदाचित् असाता) वेदते हैं। दं.२२-२४ देव शुभ करण द्वारा सातावेदना वेदते हैं।
दं.१३-२१ ओरालियसरीरा सव्वे सुभासुभेणं वेमायाए।
दं.२२-२४ देवा सुभेणं सातं।
-विया.स.६, उ.१,सु.५-१२