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द्रव्यानुयोग-(२) रातदिन रोते चिल्लाते रहते हैं और उन्हें आग में जलाकर संगों पर खार पदार्थ लगा दिये जाते हैं, जिससे उन अंगों से मवाद मांस
और रक्त टपकते रहते हैं। रक्त और मवाद को पकाने वाली, नवप्रज्वलित अग्नि के तेज से युक्त होने से अत्यन्त दुःख दुःसह ताप युक्त पुरुष के प्रमाण से भी अधिक प्रमाणवाली ऊँची बड़ी भारी एवं रक्त तथा मवाद से भरी हुई कुम्भी का कदाचित् तुमने नाम सुना होगा?
गलंति ते सोणियपूयमंसं, पज्जोइया खारपइद्धितंगा॥ जइ ते सुया लोहितपूयपाई, बालागणीतेयगुणा परेणं। कुंभी महंताहियपोरसीया, समूसिया लोहियपूयपुण्णा॥ पक्खिप्प तासुं पचयंति बाले, अट्टस्सरं ते कलुणं रसंते। तण्हाइया ते तउ तंबतत्तं, पज्जिज्जमाणऽट्टतरं रसंति॥ अप्पेण अप्पं इह वंचइत्ता, भवाहमे पुव्वसए सहस्से। चिट्ठति तत्था बहुकूरकम्मा, जहा कडे कम्मे तहा सि भारे ॥ समज्जिणित्ता कलुसं अणज्जा, इठेहि कंतेहि य विप्पहूणा। ते दुब्भिगंधे कसिणे य फासे, कम्मोवगा कुणिमे आवसंति॥
-सूय.सू.१,अ.५,उ.१,गा.६-२७ १२. असण्णीणं अकामनिकरण वेयणा परूवणंप. जे इमे भंते ! असण्णिणो पाणा,तं जहा
पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया छट्ठा य एगइया तसा, एए णं अंधा मूढा तमं पविट्ठा तमपडलमोहजालपलिच्छन्ना अकामनिकरणं वेयणं वेदेंतीति
वत्तव्वयं सिया? उ. हता, गोयमा ! जे इमे असण्णिणो पाणा जाव अकामनिकरणं वेयणं वेदेंतीति वत्तव्यं सिया।
-विया.स.७, उ.७, सु.२४ १३. पभूणाअकामपकामनिकरणवेयण वेयणं
प. अस्थि णं भंते ! पभू वि अकामनिकरणं वेयणं वेदेति?
आर्त स्वर और करुण रुदन करते हुए अज्ञानी नारकों को नरकपाल उन (रक्त मवाद युक्त) कुम्भियों में डालकर पकाते हैं
और प्यास से व्याकुल उनको गर्म सीसा और ताम्बा पिलाये जाने पर वे जोर जोर से चिल्लाते हैं। इस मनुष्य भव में स्वयं ही स्वयं की वंचना करके तथा पर्वकाल में सैकड़ों और हजारों अधम वधिक आदि नीच भवों को प्राप्त करके अनके क्रूरकर्मी जीव उस नरक में रहते हैं क्योंकि पूर्वजन्म में जिसने जैसा कर्म किया है, उसी के अनुसार उस को फल प्राप्त होता है। अनार्य पुरुष पापों का उपार्जन करके इष्ट और कान्त विषयों से वंचित होकर कर्मों के वशीभूत होकर दुर्गन्धयुक्त अशुभ स्पर्श वाले तथा मांस आदि से व्याप्त और पूर्णरूप से कृष्ण वर्णवाले नरकों में आयु पूर्ण होने तक निवास करते हैं।
१२. असंज्ञी जीवों के अकामनिकरण वेदना का प्ररूपणप. भंते ! जो ये असंज्ञी (मनरहित) प्राणी हैं, यथा
पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक (स्थावर) तथा छठे कई त्रसकायिक जीव हैं, जो अन्ध मूढ अन्धकार में प्रविष्ट तमःपटल और मोहजाल से आच्छादित हैं, वे अकाम निकरण (अज्ञान रूप में) वेदना
वेदते हैं, क्या ऐसा कहा जा सकता है? उ. हाँ, गौतम ! जो ये असंज्ञी आदि प्राणी हैं यावत् वे
अकामनिकरण वेदना वेदते हैं, ऐसा कहा जाता है।
उ. हंता, गोयमा ! अथि। प. कहं णं भंते ! पभू वि अकामनिकरणं वेयणं वेदेति?
उ. गोयमा! १.जे णं नो पभू विणा पईवेणं अंधकारंसि रूवाई
पासित्तए, २. जे णं नो पभू पुरओ रूवाई अणिज्झाइत्ताणं
पासित्तए, ३. जे णं नो पभू मग्गओ रूवाई अणव यक्खित्ताणं
पासित्तए, ४. जे णं नो पभू सासओ रूवाई अणवलोएत्ताणं
पासित्तए, ५. जेणं नो पभू उड्ढं रूवाइं अणालोएत्ताणं पासित्तए,
१३. समर्थ के द्वारा अकाम प्रकाम वेदना का वेदनप्र. भंते ! क्या समर्थ होते हुए भी जीव अकामनिकरण
(अनिच्छापूर्वक) वेदना वेदते हैं? उ. हाँ, गौतम ! वेदना वेदते हैं। प्र. भंते ! समर्थ होते हुए भी जीव अकामनिकरण वेदना को कैसे
वेदते हैं ? उ. गौतम ! १.जो जीव समर्थ होते हुए भी अन्धकार में दीपक
के बिना पदार्थों को देखने में समर्थ नहीं होते, २. जो जीव अवलोकन किये बिना सम्मुख रहे हुए पदार्थों
को देख नहीं सकते हैं, ३. जो जीव अवलोकन किये बिना पीछे के भाग को नहीं देख
सकते हैं, ४. जो जीव अवलोकन किये बिना पार्श्वभाग के दोनों ओर
के पदार्थों को नहीं देख सकते हैं, ५. जो जीव अवलोकन किये बिना ऊपर के पदार्थों को नहीं
देख सकते हैं,