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वेदना अध्ययन
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३२. वेयणाऽज्झयणं
३२. वेदना अध्ययन
सूत्र
सूत्र
१. ओहेण वेयणाएगा वेयणा।
-ठाणं अ.१,सु.२३ २. वेयणाऽज्झयणस्स अत्थाहिगारा
१.सीता य २. दव्व ३. सारीर, ४. सात तह वेयणा हवइ ५. दुक्खा। ६. अब्भुवगमोक्कमिया, ७. णिदा य अणिदा य णायव्वा ॥
-पण्ण.प.३५, सु.२०५४,गा.१
३. सत्तदारेसु चउवीसदंडएसु य वेयणा परूवणं(१) सीयाइ तिविहा वेयणा प. कइविहा णं भंते ! वेयणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! तिविहा वेयणा पण्णत्ता,तं जहा
१.सीया,२. उसिणा, ३.सीओसिणा। प. दं.१.णेरइया णं भंते ! किं सीयं वेयणं वेदेति, उसिणं
वेयणं वेदेति, सीओसिणं वेयणं वेदेति? उ. गोयमा ! सीयं पि वेयणं वेदेति, उसिणं पि वेयणं वेदेति,
णो सीओसिणं वेयणं वेदेति। प. रयणप्पभापुढविनेरइया णं भंते ! किं सीयं वेयणं वेदेति
जाव सीओसिणं वेयणं वेदेति? उ. गोयमा ! णो सीयं वेयणं वेदेति, उसिणं वेयणं वेदेति,
णो सीओसिणं वेयणं वेदेति। एवं जाव वालुयप्पभापुढविनेरइयारे।
१. सामान्य वेदना
वेदना एक (रूप) है। २. वेदनाऽध्ययन के अधिकार
१.शीत वेदना, २. द्रव्य वेदना, ३.शरीर वेदना, ४. शाता वेदना, ५. दुःख वेदना, ६. आभ्युपगमिकी और औपकमिकी वेदना, ७. निदा-अनिदा वेदना।
(वेदनाध्ययन के) ये सात द्वार जानने चाहिए। ३. सातद्वारों में और चौबीसदडंकों में वेदना का प्ररूपण(१) शीतादि त्रिविध वेदनाप्र. भंते ! वेदना कितने प्रकार की कही गई है? उ. गौतम ! वेदना तीन प्रकार की कही गई है, यथा
१.शीतवेदना, २. उष्णवेदना, ३. शीतोष्णवेदना। प्र. द. १. भंते ! क्या नैरयिक शीतवेदना वेदते हैं, उष्णवेदना
वेदते हैं या शीतोष्णवेदना वेदते हैं? उ. गौतम ! (नैरयिक) शीतवेदना भी वेदते हैं और उष्णवेदना भी
वेदते हैं, किन्तु शीतोष्णवेदना नहीं वेदते हैं। प्र. भंते ! क्या रलप्रभापृथ्वी के नैरयिक शीतवेदना वेदते हैं
यावत् शीतोष्णवेदना वेदते हैं ? उ. गौतम ! वे शीतवेदना नहीं वेदते हैं और शीतोष्णवेदना भी
नहीं वेदते हैं, किन्तु उष्णवेदना वेदते हैं। इसी प्रकार बालुकाप्रभा पृथ्वी (२-३) के नैरयिकों तक कहना
चाहिए। प्र. भंते ! क्या पंकप्रभापृथ्वी के नैरयिक शीतवेदना वेदते हैं
यावत् शीतोष्ण वेदना वेदते हैं? उ. गौतम ! वे शीतवेदना भी वेदते हैं और उष्णवेदना भी वेदते
हैं, किन्तु शीतोष्णवेदना नहीं वेदते हैं। जो उष्णवेदना वेदते हैं वे नैरयिक अधिक हैं, जो शीतवेदना वेदते हैं वे नैरयिक अल्प हैं। धूम्रप्रभा पृथ्वी (के नैरयिकों) में भी इसी प्रकार दोनों वेदनाएं कहनी चाहिए। विशेष-जो शीतवेदना वेदते हैं वे नैरयिक अधिक है, जो उष्णवेदना वेदते हैं वे नैरयिक अल्प हैं। तमा और तमस्तमा पृथ्वी के नैरयिक शीतवेदना वेदते हैं,
किन्तु उष्णवेदना तथा शीतोष्णवेदना नहीं वेदते हैं। प्र. दं.२. भंते ! क्या असुरकुमार शीत वेदना वेदते हैं, उष्णवेदना
वेदते हैं या शीतोष्ण वेदना वेदते हैं ? उ. गौतम ! वे शीतवेदना भी वेदते हैं, उष्णवेदना भी वेदते हैं और
शीतोष्णवेदना भी वेदते हैं। ३. (क) जीवा. पडि.३,सु.८९(३)
(ख) विया. स. १०,उ.२,सु.५ .
प. पंकप्पभापुढविनेरइया णं भंते ! किं सीयं वेयणं वेदेति
जाव सीओसिणं वेयणं वेदेति? गोयमा ! सीयं पि वेयणं वेदेति, उसिणं पि वेयणं वेदेति, णो सीओसिणं वेयणं वेदेति। जे बहुयतरागा ते उसिणं वेयणं वेदेति। जे थोवतरागा ते सीयं वेयणं वेदेति। धूमप्पभाए एवं चेव दुविहा।
णवरं-जे बहुयतरागा ते सीयं वेयणं वेदेति, जे थोवतरागा ते उसिणं वेयणं वेदेति। तमाए तमतमाए य सीयं वेयणं वेदेति, णो उसिणं वेयणं
वेदेति,णो सीओसिणं वेयणं वेदेति३। प्र. दं. २. असुरकुमारा णं भंते ! किं सीयं वेयणं वेदेति,
उसिणं वेयणं वेदेति, सीओसिणं वेयणं वेदेति? उ. गोयमा ! सीयं पि वेयणं वेदेति, उसिणं पि वेयणं वेदेति,
सीओसिणं पि वेयणं वेदेति। १. सम. सम.सु.१५३ (२) २. ठाणं अ.३, उ.१,सु.१५५