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कर्म अध्ययन
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प्र. भन्ते ! कर्म रहित जीव की गति कैसे होती है? उ. गौतम ! १. निःसंगता, २. नीरागता, ३. गतिपरिणाम,
४. बन्धच्छेद ५. कर्म-इन्धन रहितता और ६. पूर्वप्रयोग से कर्मरहित जीव की गति होती है।
प. कह णं भन्ते ! अकम्मस्स गई पण्णायइ? उ. गोयमा ! १. निस्संगयाए, २. निरंगणयाए,
३. गइपरिणामेणं, ४. बंधणछेयणयाए, ५.निरिंधणयाए, ६.पुव्वपओगेणं अकम्मस्स गई
पण्णायइ। प. कहं णं भन्ते ! १. निस्संगयाए जाव ६. पुव्वप्पओगेणं
अकम्मस्स गई पण्णायइ? उ. गोयमा ! से जहानामए केइ पुरिसे सुक्कं तुंब निच्छिछ
निरुवहयं आणुपुव्वीए परिकम्मेमाणे-परिकम्मेमाणे दब्भेहिं य कुसेहिं य वेढेइ वेढित्ता, अट्ठहिं मट्टियालेवेहिं लिंपइ लिंपित्ता, उण्हे दलयइ, भूई-भूई सुक्कं समाणं अत्थहमयारमपोरिसियंसि उदगंसि पक्खिवेज्जा, से नूणा गोयमा ! से तुंबे तेसिं अट्ठण्हं मट्टियालेवाणं गरुयत्ताए भारियत्ताए सलिलतलम वइत्ता,अहे धरणितलपइट्ठाणे भवइ?
हंता,भवइ।
अहे णं से तुंबे तेसिं अट्ठण्डं मट्टियालेवाणं परिक्खएणं धरणितलमइवइत्ता उप्पिं सलिलतलपइट्ठाणे भवइ?
हंता,भवइ!
एवं खलु गोयमा ! निस्संगयाए, निरंगणयाए,
गइपरिणामेणं अकम्मस्स गई पण्णायइ। प. कहं णं भन्ते ! बंधणछेयणत्ताए अकम्मस्स गई
पण्णता? उ. गोयमा ! से जहानामए कलसिंबलिया इ वा,
मुग्गसिंबलिया इ वा, माससिंबलिया इ वा, सिंबलिसिंबलिया इ वा, एरंडमिंजिया इ वा उण्हे दिण्ण सुक्का समाणी फुडित्ताणं एगंतमंतं गच्छइ, एवं खलु गोयमा ! बंधणछेयणत्ताए अकम्मस्स गई पण्णत्ता।
प्र. भन्ते !१. निःसंगता यावत् ६. पूर्वप्रयोग से कर्मरहित जीव
की गति कैसे होती है? उ. गौतम ! जैसे, कोई पुरुष एक छिद्ररहित और निरुपहत
(बिना फटे टूटे) सूखे तुम्बे पर क्रमशः परिकर्म (संस्कार) करता-करता उस पर डाभ (एक प्रकार का घास) और कुश लपेटे, उन्हें लपेट कर उस पर आठ बार मिट्टी के लेप लगा दे, मिट्टी के लेप लगाकर उसे (सूखने के लिए) धूप में रख दे.बार-बार (धूप में देने से) अत्यन्त सूखे हुए उस तुम्बे को अथाह अतरणीय (जिस पर तैरा न जा सके) पुरुष प्रमाण से भी अधिक जल में डाल दे तो हे गौतम ! वह तुम्बा मिट्टो के उन आठ लेपों से अधिक भारी हो जाने से क्या पानी के ऊपरितल को छोड़कर नीचे पृथ्वीतल पर (पैंदे) में जा बैठता है? (गौतम स्वामी) हां, (भगवन् ! वह तुम्बा नीचे पृथ्वीतल पर) जा बैठता है। भगवान् ने पुनः पूछा “गौतम ! (पानी में पड़ा रहने के कारण) आठों ही मिट्टी के लेपों के (गलकर) नष्ट हो जाने से क्या वह तुम्बा पृथ्वीतल को छोड़कर पानी के उपरितल पर आ जाता है? (गौतम स्वामी) हां, भगवन् ! वह पानी के उपरितल पर आ जाता है। इसी प्रकार हे गौतम ! निःसंगता, नीरागता और
गतिपरिणाम से कर्मरहित जीव की ऊर्ध्वगति होती है। प्र. भन्ते ! बन्धन का छेद हो जाने से कर्मरहित जीव की गति
कैसे होती है? उ. गौतम ! जैसे कोई मटर की फली, मूंग की फली, उड़द की
फली, शिम्बलि सेम की फली और एरण्ड बीज के गुच्छे को धूप में रख कर सुखाए तो सूख जाने पर वह फटता है और उनके बीज उछल कर दूर जा गिरते हैं, इसी प्रकार हे गौतम! कर्मरूप बन्धन का छेद हो जाने पर कर्म रहित जीव
की गति होती है। प्र. भन्ते ! इन्धनरहित होने से कर्मरहित जीव की गति कैसे
होती है ? उ. गौतम ! जैसे इन्धन से निकले हुए धूएं की गति किसी प्रकार
की रुकावट न हो तो स्वाभाविक रूप से ऊपर की ओर होती है, इसी प्रकार हे गौतम ! कर्मरूप इन्धन से रहित होने से
कर्मरहित जीव की गति ऊपर की ओर होती है। प्र. भन्ते ! पूर्वप्रयोग से कर्मरहित जीव की गति कैसे होती है ? उ. गौतम ! जैसे-धनुष से छूटे हुए बाण की गति बिना रुकावट
के लक्ष्याभिमुखी (निशान की ओर) होती है, इसी प्रकार हे गौतम ! पूर्वप्रयोग से कर्मरहित जीव की (ऊर्ध्व) गति होती है।
प. कहं णं भन्ते ! निरिंधणयाए अकम्मस्स गई पण्णत्ता?
उ. गोयमा ! से जहानामए धूमस्स इंधणविप्पमुक्कस्स उड्ढं
वीससाए निव्वाघाएणं गई पवत्तइ, एवं खलु गोयमा! निरिंधणयाए अकम्मस्स गई पण्णत्ता.
प. कहं णं भन्ते ! पुव्वप्पयोगेणं अकम्मस्स गई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! से जहानामए कंडस्स कोदंडविप्पमुक्कस्स
लक्खाभिमुही वि निव्वाघाएणं गई पवत्तइ, एवं खलु गोयमा ! पुव्वप्पयोगेणं अकम्मस्स गई पण्णत्ता।
-विया. स.७, उ.१,सु.११-१३ (१-४)