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द्रव्यानुयोग-(२)] उ. गौतम ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल परिणाम को प्राप्त
करके शुभ नामकर्म का चौदह प्रकार का अनुभाव (फल) कहा गया है, यथा१. इष्ट शब्द, २. इष्ट रूप, ३. इष्ट गन्ध, ४. इष्ट रस, ५. इष्ट स्पर्श, ६. इष्ट गति, ७. इष्ट स्थिति, ८. इष्ट लावण्य, ९. इष्ट यशोकीर्ति, १०. इष्ट उत्थान कर्म-बल-वीर्य पुरुषकार-पराक्रम।
को
उ. गोयमा ! सुभणामस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव
पोग्गल परिणाम पप्प चोद्दसविहे अणुभावे पण्णत्ते, तंजहा१. इट्ठा सद्दा, २. इट्ठा रूवा, ३. इट्ठा गंधा, ४. इट्ठा रसा, ५. इट्ठा फासा, ६. इट्ठा गइ, ७. इट्ठा ठिई, ८. इठे लावण्णे, ९. इट्ठा जसोकित्ती, १०. इठे उट्ठाणं-कम्म-बल-वीरिय
पुरिसक्कारपरक्कमे, ११. इट्ठस्सरया, १२. कंतस्सरया, १३. पियस्सरया, १४. मणुण्णस्सरया। जं वेएइ पोग्गलं वा, पोग्गले वा,पोग्गलपरिणामं वा, वीससा वा, पोग्गलाणं परिणाम, तेसिंवा उदएणं सुभणामं कम्मं वेदेइ। एस णं गोयमा ! सुभणामं कम्मे। एस णं गोयमा ! सुभणामस्स कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गल परिणाम पप्प चोद्दसविहे अणुभावे
पण्णते। प. (ख) दुद्दणामस्स णं भंते ! कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव
पोग्गलपरिणाम पप्प कइविहे अणुभावे पण्णत्ते?
उ. गोयमा ! एवं चेव।
णवर-अणिट्ठा सद्दा जाव हीणस्सरया, दीणस्सरया, अणिट्ठस्सरया,अकंतस्सरया। जं वेदेइ सेसं तं चेव जाव चोद्दसविहे अणुभावे पण्णत्ते।
११. इष्ट-स्वरता, १२. कान्त-स्वरता, १३. प्रिय-स्वरता, १४. मनोज्ञ-स्वरता। जो पुद्गलकाया पुद्गलों का, पुद्गल-परिणाम का या स्वाभाविक पुद्गलों के परिणाम का वेदन करता है, अथवा उनके उदय से शुभनामकर्म का वेदन करता है, गौतम ! यह शुभनामकर्म है। हे गौतम ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल परिणाम को प्राप्त करके शुभनामकर्म का यह चौदह प्रकार का अनभाव
(फल) कहा गया है। प्र. (ख) भंते ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल परिणाम को
प्राप्त करके अशुभनामकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव
(फल) कहा गया है? उ. गौतम ! पूर्ववत् चौदह प्रकार का है।
विशेष-पूर्व से विपरीत अनिष्ट शब्द यावत् हीन-स्वरता, दीन-स्वरता, अनिष्ट-स्वरता और अकान्त-स्वरता रूप है। जो पुद्गल आदि का वेदन करता है उसी प्रकार यावत्
चौदह प्रकार का अनुभाव फल कहा गया है। प्र. ७.(क) भंते ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल परिणाम
को प्राप्त करके उच्चगोत्रकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव
(फल) कहा गया है? उ. गौतम ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल परिणाम को प्राप्त
करके उच्चगोत्रकर्म का आठ प्रकार का अनुभाव (फल) कहा गया है, यथा१. जाति-विशिष्टता, २. कुल-विशिष्टता, ३. बल-विशिष्टता, ४. रूप-विशिष्टता, ५. तप-विशिष्टता, ६. श्रुत-विशिष्टता, ७. लाभ-विशिष्टता, ८. ऐश्वर्य-विशिष्टता। जो पुद्गल का या पुद्गलों का, पुद्गलपरिणाम का या स्वाभाविक पुद्गलों के परिणाम का वेदन करता है, अथवा उनके उदय से उच्च गोत्र कर्म का वेदन करता है, गौतम ! यह उच्चगोत्र कर्म है। हे गौतम ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल परिणाम को प्राप्त करके उच्चगोत्र कर्म का यावत् यह आठ प्रकार का अनुभाव (फल) कहा गया है।
प. ७.(क) उच्चागोयस्स णं भंते ! कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स
जाव पोग्गलपरिणाम पप्प कइविहे अणुभावे पण्णत्ते?
उ. गोयमा ! उच्चागोयस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव
पोग्गलपरिणाम पप्प अट्ठविहे अणुभावे पण्णत्ते, तं जहा१. जाइविसिट्ठया, २. कुलविसिट्ठया, ३. बलविसिट्ठया, ४. रूवविसिट्ठया, ५. तवविसिट्ठया, ६. सुयविसिट्ठया, ७. लाभविसिट्ठया, ८. इस्सरियविसिट्ठया। जं वेएइ पोग्गलं वा, पोग्गले वा, पोग्गल परिणामं वा, वीससा वा, पोग्गलाणं परिणाम, तेसिं वा उदएणं उच्चागोयं कम्मं वेदेइ, एस णं गोयमा ! उच्चागोयं कम्म, एसणं गोयमा! उच्चागोयस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गल परिणाम पप्प अट्ठविहे अणुभावे पण्णत्ते।