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असादावेवणिज्जरस जहा णिद्दापंचगस्स ।
सम्मत्तवेयणिज्जस्स सम्मामिच्छत्त वेयणिज्जस्स य जा ओहिया ठिई भणिया तं बंधति
मिच्छत्तवेयणिज्जस्स जहण्णेणं अंतोसागरोवमकोडाफोडीओ,
उक्कोसेणं सत्तरिं सागरोवमकोडाकोडीओ,
सत्त य वाससहस्साई अबाहा,
अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो ।
जहणेणं अंतो सागरोवम
कसायबारसगस्स कोडाकोडीओ
उक्लोसेणं चत्तालीसं सागरोवमकोडाकोडीओ,
चत्तालीसं यवाससयाई अबाहा,
अबाहूणिया कम्मट्ठिई, कम्मणिसेगो ।
कोह - माण - माया लोभसंजलणाए य दो मासा, मासो, अद्धमासो, अंतोमुहतो एवं जहणणगं,
उक्कोसेणं पुण जहा कसायबारसगस्स । चउण्ड वि आउयाणं जा ओहिया ठिई भणिया तं बंधति ।
आहारगसरीरस्स तित्थगरणामए य जहणणेणं अंतोसागरोयम कोडाकोडीओ. उक्कोसेण वि अंतोसागरोवमकोडाकोडीओ बंधति । पुरिसवेयस्स जहणेणं अट्ठ संवच्छराई, उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ.
दस य वाससयाई अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई कम्मणिसेगो ।
जसोकित्तिणामण - ७- उच्चागोंयस्स य एवं चेव ।
णवर जहणेणं अट्ठ मुहुत्ता ।
८. अंतराइयरस जहा णाणावरणिस्स । सेसेसु सव्वेसु ठाणेसु, संघयणेसु, संठाणेसु, वण्णेसु, गंधे व जहने अंतोसागरोवम कोटाकोडीओ, उक्कोसेणं जा जस्स ओहिया ठिई भणिया तं बंधति ।
वरं इमं णाणत्तं अबाहा, अबाहूणिया ण बुच्चइ ।
एवं आणुपुच्चीए सम्मेसि जाव अंतराइयस्स ताब भाणियव्वं ।
- पण्ण. प. २३, उ. २, सु. १७३४-१७४१
द्रव्यानुयोग - (२)
असातावेदनीय की स्थिति निद्रापंचक के समान कहनी चाहिए।
सम्यक्त्ववेदनीय (मोहनीय) और सम्यग्मिथ्यात्ववेदनीय (मोहनीय) की अधिक स्थिति के समान उतनी ही स्थिति बांधते हैं।
मिथ्यात्ववेदनीय जघन्य अन्तः कोडाकोडी सागरोपम की स्थिति बांधते हैं,
उत्कृष्ट सत्तर कोडाकोडी सागरोपम की स्थिति बांधते हैं, उसका अबाधाकाल सात हजार वर्ष का है, अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक होता है।
कषायद्वादशक जघन्य अन्त: कोडाकोडि सागरोपम की स्थिति बांधते हैं,
उत्कृष्ट चालीस कोडाकोडी सागरोपम की स्थिति वांचते हैं। इनका अबाधाकाल चालीस हजार वर्ष का है, अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक होता है।
संज्वलन क्रोध-मान- माया-लोभ जघन्यतः क्रमशः दो मास, एक मास, अर्द्धमास और अन्तर्मुहूर्त की स्थिति बांधते हैं, उत्कृष्ट कषायद्वादशक की स्थिति के समान बांधते हैं। चार प्रकार की आयु कर्म की जो सामान्य स्थिति कही है, वही बांधते हैं।
आहारकशरीर और तीर्थङ्कर नामकर्म जघन्य अन्तः कोडाकोडी की स्थिति बांधते हैं।
उत्कृष्ट भी उतने ही काल की स्थिति बांधते हैं, पुरुष वेदकर्म जघन्य आठ वर्ष की स्थिति बांधते हैं, उत्कृष्ट दस कोडाकोडी सागरोपम की स्थिति बांधते हैं। उसका अबाधाकाल एक हजार वर्ष का है, अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक होता है।
यश कीर्ति नामकर्म और उच्चगोत्र कर्म की स्थिति भी इसी प्रकार जाननी चाहिए।
विशेष - जघन्य आठ मुहूर्त की स्थिति बांधते हैं।
८. अन्तरायकर्म की स्थिति ज्ञानावरणीयकर्म के समान है। शेष सभी स्थान संहनन, संस्थान, वर्ण, गन्ध-नामकर्म जघन्य अन्तःकोडाकोडि सागरोपम की स्थिति बांधते हैं, उत्कृष्ट सामान्य से जो स्थिति कही है वही बांधते हैं, विशेष - यह भिन्नता है - इनका "अबाधाकाल" और अबाधाकाल से हीन कर्म स्थिति कर्म निषेक नहीं कहना चाहिए।
इसी प्रकार अनुक्रम से अन्तरायकर्म पर्यन्त सभी प्रकृतियों की स्थिति कहनी चाहिए।