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द.२-२४. एवं जाव वेमाणिएसु।
-विया. स.७, उ.६,सु.५-६ १४०. मणूसेसु अहाउयं मज्झिमाउयं पालणसामित्तं
तओ अहाउयं पालयंति,तं जहा१.अरहंता, २.चक्कवट्टी ३. बलदेव-वासुदेवा। तओ मज्झिमाउयं पालयंति,तं जहा१.अरहंता, २.चक्कवट्टी,३. बलदेव-वासुदेवा
-ठाण.अ.३,उ.१.सु.१५२ १४१. अप्प बहुआउंपडुच्च अंधगवण्हि जीवाणं संखा परूवणं
द्रव्यानुयोग-(२) द. २-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त आयु वेदन का
कथन करना चाहिए। १४0. मनुष्यों में यथायु मध्यम आयु के पालन का स्वामित्व
तीन अपनी पूर्ण आयु का पालन करते हैं, यथा१. अर्हन्त, २. चक्रवर्ती, ३. बलदेव-वासुदेव। तीन मध्यम (अपनी समय की) आयु का पालन करते हैं, यथा१. अर्हन्त, २. चक्रवर्ती, ३. बलदेव-वासुदेव।
प. जावइया णं भंते ! वरा अंधगवण्हिणो जीवा तावइया
परा अंधगवण्हिणो जीवा?
१४१. अल्प बहु आयु की अपेक्षा अंधकवह्नि जीवों की सम संख्या
का प्ररूपणप्र. भंते ! जितने अल्प आयुष्य वाले अन्धकवह्नि (तेउकाय)
जीव है, क्या उतने ही उत्कृष्ट आयु वाले अन्धकवह्नि
जीव हैं? उ. हां, गौतम ! जितने अल्पायुष्य अंधकवह्नि जीव हैं, उतने ही
उत्कृष्ट आयु वाले अंधकवह्नि जीव हैं।
उ. हता, गोयमा ! जावइया वरा अंधगवण्हिणो जीवा तावइया परा अंधगवण्हिणो जीवा।
-विया.स.८, उ.४, सु.१८ १४२. सयायुस्स दस दसा परूवणं
वाससयाउयस्स णं पुरिसस्स दस दसाओ पण्णत्ताओ, तं जहाबाला किड्डा य मंदाय,बला पन्ना य हायणी, पवंचा पब्भारा य, मुंमुही सायणी तहा।
-ठाणं.अ.90,सु.७७२ १४३. आउय खय कारणाणि
सत्तविहे आउभेए पण्णत्ते,तं जहा१.अज्झवसाण, २. णिमित्ते, ३. आहारे, ४. वेयणा, ५.पराघाए, ६. फासे, ७. आणापाण,
सत्तविहं भिज्जए आउयं॥ -ठाणं. अ.७,सु.५६१ १४४.मूल कम्मपयडीणं जहण्णुक्कोस बंधट्ठिईआइ परूवणं
१४२. शतायु की दस दशाओं का प्ररूपण
शतायु पुरुष की दस दशाएं कही गई हैं, यथा१. बाला, २. क्रीड़ा, ३. मन्दा, ४. बला, ५. प्रज्ञा, ६. हायिनी, ७. प्रपञ्चा, ८. प्राग्भारा, ९. मृन्मुकी,
१०. शायिनी। १४३. आयु क्षय के कारण
आयु क्षय (अकालमृत्यु) के सात कारण कहे गये हैं, यथा१. अध्यवसान-रागादि की तीव्रता, २. निमित्त-शस्त्रप्रयोग आदि, ३. आहार-आहार की न्यूनाधिकता, ४. वेदना-नयन आदि की तीव्रतम वेदना, ५. पराघात-गड्ढे आदि में गिरना, ६. स्पर्श-सांप आदि का स्पर्श, ७. आन-अपान-उच्छ्वास-निःश्वास का निरोध।
इन सात प्रकारों से आयु का क्षय होता है। १४४. मूल कर्म प्रकृतियों की जघन्योत्कृष्ट बंध स्थिति आदि का
प्ररूपणप्र. १. भन्ते ! ज्ञानावरणीय कर्म की बन्धस्थिति कितने काल
की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है,
उत्कृष्ट स्थिति तीस कोडाकोडी सागरोपम की है। उसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म-स्थिति में ही कर्म पुद्गलों का निषेक (प्रदेश बंध) होता है अर्थात् अबाधाकाल जितनी स्थिति में प्रदेश बंध नहीं होता है। २. इसी प्रकार दर्शनावरणीय कर्म की बंध स्थिति जाननी
चाहिए।
प. १. नाणावरणिज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं
बंधठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं,
उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, तिण्णि य वाससहस्साई अबाहा, अबाहूणिया कम्मट्ठिई, कम्मणिसेगो।
२. एवं दरिसणावरणिज्जं पि।