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उ. गोयमा ! कम्मभूमए वा कम्मभूमगपलिभागी वा सण्णी
पंचेंदिए सव्वाहिं पज्जत्तीहिं पज्जत्तए सागारे जागरे सुत्तोवउत्ते मिच्छद्दिट्ठी परमकण्हलेस्से उक्कोससंकिलिट्ठ परिणामे एरिसए णं गोयमा !
तिरिक्खजोणिए उक्कोसकालठिईयं आउयं कम्मं बंधइ। प. केरिसए णं भंते ! मणूसे उक्कोसकालठिईयं आउयं कम्म
बंधइ? उ. गोयमा ! कम्मभूमगे वा कम्मभूमगपलिभागी वा जाव
सुतोवउत्ते सम्मद्दिट्ठी वा, मिच्छद्दिट्ठी वा, कण्हलेस्से वा, सुक्कलेसे वा, णाणी वा, अण्णाणी वा उक्कोससंकिलिट्ठपरिणामे वा तप्पाउग्गविसुज्झमाणपरिणामे वा एरिसए णं गोयमा ! मणूसे
उक्कोसकालठिईयं आउयं कम्मं बंधइ। प. केरिसिया णं भंते ! मणूसी उक्कोसकालठिईयं आउयं
कम्मं बंधइ? उ. गोयमा ! कम्मभूमिगा वा, कम्मभूमगपलिभागी वा जाव
सुत्तोवउत्ता सम्मद्दिट्ठी सुक्कलेस्सा तप्पाउग्गविसुज्झमाणपरिणामा, एरिसिया णं गोयमा ! मणुस्सी उक्कोसकालठिईयं आउय कम्म बंधइ।
अंतराइयं जहा णाणावरणिज्ज।
-पण्ण. प. २३, उ. २, सु. १७४५-१७५३ १४८. एगिदिएसु अट्ठ कम्मपयडीणं ठिईबंध परूवणं
द्रव्यानुयोग-(२) उ. गौतम ! कर्मभूमिक या कर्मभूमिज सदृश संज्ञीपंचेन्द्रिय, सर्व
पर्याप्तियों से पर्याप्त, साकारोपयोगयुक्त, जागृत, श्रुत में उपयोगवंत, मिथ्यादृष्टि, परमकृष्णलेश्यायुक्त एवं उत्कृष्ट संक्लिष्ट परिणाम वाला, हे गौतम ! ऐसा तिर्यञ्चयोनिक
उत्कृष्ट स्थिति वाले आयुकर्म को बांधता है। प्र. भंते ! किस प्रकार का मनुष्य उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले
आयुकर्म को बांधता है? उ. गौतम ! कर्मभूमिक या कर्मभूमिज के सदृश यावत् श्रुत में
उपयोगवंत, सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि कृष्णलेश्यी या शुक्ललेश्यी, ज्ञानी या अज्ञानी उत्कृष्ट संक्लिष्ट परिणाम युक्त या तप्रायोग्य विशुद्धयमान परिणाम वाला हो, हे गौतम ! ऐसा मनुष्य उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले आयु कर्म
को बांधता है। प्र. भंते ! किस प्रकार की मनुष्य स्त्री उत्कृष्ट काल की स्थिति
वाले आयुकर्म को बांधती है? उ. गौतम ! कर्मभूमिक या कर्मभूमिज सदृश यावत् श्रुत
में उपयोग युक्त सम्यग्दृष्टि शुक्ललेश्या वाली तयायोग्य विशुद्धयमान परिणाम वाली हे गौतम ! ऐसी मनुष्य स्त्री उत्कृष्ट काल की स्थिति वाली आयु कर्म को बांधती है। (उत्कृष्ट स्थिति वाले) अंतराय के बंधक के विषय में
ज्ञानावरणीय कर्म के समान जानना चाहिए। १४८. एकेन्द्रिय जीवों में आठ कर्मप्रकृतियों की स्थिति बंध का
प्ररूपणप्र. १.भंते ! एकेन्द्रिय जीव ज्ञानावरणीयकर्म की कितनी काल
की स्थिति बांधते हैं? उ. गौतम ! वे जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम
सागरोपम के सात भागों में से तीन भाग (३/७) की स्थिति बांधते हैं, उत्कृष्ट वही पूर्ण की स्थिति बांधते हैं। २. इसी प्रकार निद्रापंचक और दर्शनचतुष्क की भी स्थिति
जाननी चाहिए। प्र. ३. भंते ! एकेन्द्रिय जीव सातावेदनीयकर्म की कितने काल
की स्थिति बांधते हैं? उ. गौतम ! वे जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम
सागरोपम के सात भागों में से डेढ़ भाग (११/२/७) की स्थिति बांधते हैं। उत्कृष्ट वही पूर्ण (११/२/७) की स्थिति बांधते हैं। असातावेदनीय की स्थिति ज्ञानावरणीय के समान जाननी
चाहिए। प्र. ४. भंते ! एकेन्द्रिय जीव सम्यक्त्ववेदनीय (मोहनीय) कर्म
की कितने काल की स्थिति बांधते हैं ? उ. गौतम ! वे बन्ध करते ही नहीं हैं।
प. १. एगिंदिया णं भंते !जीवा णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स
किं बंधति? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स तिण्णि सत्तभागे
पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं,
उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधति। २. एवं णिद्दापंचकस्स वि, दंसण चउक्कस्स वि।
प. ३.एगिंदिया णं भंते ! जीवा सायावेयणिज्जस्स कम्मस्स
किं बंधति? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स दिवढं सत्तभागं
पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं,
उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधति। असायावेयणिज्जस्स जहाणाणावरणिज्जस्स ।
प. ४. एगिदिया णं भंते ! जीवा सम्मत्तमोहणिज्जस्स
कम्मस्स कि बंधति? उ. गोयमा !णत्थि किंचि बंधति।