________________
१.
१९८४
प. २. पुरिसवेयस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठ संवच्छराई ' उक्कोण दस सागरोयमकोडाकोडीओ,
दस य वाससयाई अबाहा, बाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो । २
प. ३. नपुंसगवेयस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! जहणेणं सागरोवमस्स दुण्णि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेण ऊणगं । उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, ३
बीसतिं य वाससयाई अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई कम्मणिसेगो । ४
प. ४-५ हास-रती णं भंते! कम्माण केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! जहणे
सागरोवमस्स एवं सत्तभागं पलिओदमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उकोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ,
दस य वाससयाई अबाहा, अबाहूणिया कम्मट्ठई, कम्मणिसेगो ।
प. ६-९. अरइ-भय-सोग-दुगुंछा णं भंते! कम्माणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! जहणेण सागरोवमस्स दोणि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ,
बीसतिं य वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो ।
५. आउय पयडीओ
प. (क) रइयाउयरस णं भंते! कम्मस्स केचइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमाहियाई,
उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई पुव्वकोडीतिभागममहियाई ।
प. (ख) तिरिक्खजोणियाउयस्स णं भंते! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! जहणेण अंतोमुहुर्त,
उक्कोसेणं तिण्णि तिभागमब्भहियाइं ।
ठाणं अ. ८, सु. ६५८
पलिओचमाई पुव्यकोडी
२. जीवा. पडि. २, सु. ५७
द्रव्यानुयोग - (२)
प्र. २. भते पुरुषवेद की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उ. गौतम ! जघन्य स्थिति आठ वर्ष की है,
उत्कृष्ट स्थिति दस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल एक हजार वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक होता है।
प्र. ३. भंते ! नपुंसकवेद की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के सात भागों में से दो भाग (२/७) की है।
उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल दो हजार वर्ष का है,
अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक होता है।
प्र. ४-५ भंते! हास्य- रति कर्मों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के सात भागों में से एक भाग (१/७) की है, उत्कृष्ट स्थिति दस कोडाकोडी सागरोपम की है, इनका अबाधाकाल एक हजार वर्ष का है,
अबाधाकाल जितनी न्यून कर्मस्थिति में ही कर्म निषेक होता है।
प्र. ६ ९. भंते ! अरति, भय, शोक और जुगुप्सा कर्मों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के सात भागों में से दो भाग (२/७) की है,
उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की है।
इनका अबाधाकाल दो हजार वर्ष का है।
अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक होता है।
५. आयु की प्रकृतियां
प्र. (क) भंते ! नरकायु की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
उ. गौतम ! जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त-अधिक दस हजार वर्ष की है।
उत्कृष्ट स्थिति करोड़ पूर्व के तृतीय भाग अधिक तेतीस सागरोपम की है।
प्र. (ख) भते तिर्यञ्चयोनिका की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
उ. गौतम ! जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है,
उत्कृष्ट स्थिति पूर्व कोटि के त्रिभाग अधिक तीन पल्योपम की है।
३. सम. सम. २०, सु. ५
४. जीवा. पडि. २, सु. ६१