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अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो।
प. (ख) हालिद्दवण्णणामस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं
कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स पंच अट्ठावीसइभागा
पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं,
उक्कोसेणं अद्धतेरस सागरोवमकोडाकोडीओ, अद्धतेरस य वाससयाई अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई,कम्मणिसेगो।
प. (ग) लोहियवण्णणामस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं
कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स छ अट्ठावीसइभागा
पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं,
द्रव्यानुयोग-(२) अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक
होता है। प्र. (ख) भंते ! हालिद्र (पीत) वर्णनामकर्म की स्थिति कितने ___काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम
सागरोपम के अट्ठाईस भागों में से पांच भाग (५/२८) की है, उत्कृष्ट स्थिति साढ़े बारह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल साढ़े बारह सौ वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक होता है। प्र. (ग) भंते ! लोहित (लाल) वर्णनामकर्म की स्थिति कितने
काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग
कम सागरोपम के अट्ठाईस भागों में से छह भाग (६/२८) की है, उत्कृष्ट स्थिति पन्द्रह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल पन्द्रह सौ वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्मस्थिति में ही कर्म निषेक
होता है। प्र. (घ) भंते ! नीलवर्णनामकर्म की स्थिति कितने काल की कही
गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम
सागरोपम के अट्ठाईस भागों में से सात भाग (७/२८)
उक्कोसेणं पण्णरस सागरोवमकोडाकोडीओ, पण्णरस य वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो।
प. (घ) णीलवण्णणामस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं
ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स सत्त
अट्ठावीसइभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं अद्धट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीओ, अद्धट्ठारस य वाससयाई अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई,कम्मणिसेगो।
की है,
(ङ) कालवण्णणामए जहा सेवट्टसंघयणस्स।
प. १०. सुब्भिगंधणामस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं
ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहा सुक्किलवण्णणामस्स
उत्कृष्ट स्थिति साढ़े सत्तरह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल साढ़े सत्तरह सौ वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक होता है। (ङ) कृष्णवर्ण नामकर्म की स्थिति आदि सेवातसंहनन नामकर्म की स्थिति के समान है। प्र. १०.(क) भंते ! सुरभिगन्ध-नामकर्म की स्थिति कितने
काल की कही गई है? उ. गौतम ! इसकी स्थिति आदि शुक्लवर्णनामकर्म की स्थिति
के समान है। (ख) दुरभिगन्ध-नामकर्म की स्थिति आदि सेवातसंहनननामकर्म की स्थिति के समान है। ११. मधुर आदि रसों की स्थिति आदि शुक्ल आदि वर्गों की स्थिति के समान उसी क्रम से कहनी चाहिए। १२. (क) अप्रशस्त स्पों की स्थिति आदि सेवार्तसंहनन की स्थिति के समान है। (ख) प्रशस्त स्पों की स्थिति आदि शुक्ल-वर्ण-नाम-कर्म की स्थिति के समान है। १३. अगुरुलघुनामकर्म की स्थिति आदि सेवार्तसंहनन की स्थिति के समान है।
(ख) दुब्भिगंधणामए जहा सेवट्टसंघयणस्स।
११. रसाणं महुरादीणं जहा वण्णाणं भणियं तहेव परिवाडीए भाणियव्यं। १२.(क) फासा जे अपसत्था तेसिं जहा सेवट्टस्स,
(ख)जे पसत्था तेसिं जहा सुक्किलवण्णणामस्स।
१३.अगुरुलहुणामए जहा सेवट्टस्स।