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कर्म अध्ययन
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१४.एवं उवघायणामए वि।
१५. पराघायणामए वि एवं चेव। प. १६. (क) णिरयाणुपुविणामस्स णं भंते ! कम्मस्स
केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्स दो सत्तभागा
पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, वीस य वाससयाई अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो।
प. (ख) तिरियाणुपुब्विणामस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं
कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स दो सत्तभागा
पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, वीस य वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो।
प. (ग) मणुयाणुपुव्विणामस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं
कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स दिवड्ढ सत्तभाग
पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं पण्णरस सागरोवम कोडाकोडीओ, पण्णरस य वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो।
१४. इसी प्रकार उपघातनामकर्म की स्थिति के विषय में भी कहना चाहिए।
१५. पराघातनामकर्म की स्थिति भी इसी प्रकार है। प्र. १६. (क) भंते ! नरकानुपूर्वी-नामकर्म की स्थिति कितने
काल की कही गई है? गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सहन सागरोपम के सात भागों में से दो भाग (२/७) की है, उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल दो हजार वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक
होता है। प्र. (ख) भंते ! तिर्यञ्चानुपूर्वी नामकर्म की स्थिति कितने काल
की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम
सागरोपम के सात भागों में से दो भाग (२/७) की है, उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल दो हजार वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक
होता है। प्र. (ग) भंते ! मनुष्यानुपूर्वीनामकर्म की स्थिति कितने काल की
कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातयें भाग कम ।
सागरोपम के सात भागों में से डेढ़ भाग (9n/७) की है, . उत्कृष्ट स्थिति पन्द्रह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल पन्द्रह सौ वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक
होता है। प्र. (घ) भंते ! देवानुपूर्वीनामकर्म की स्थिति कितने काल की
कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम
सहन सागरोपम के सात भागों में से एक भाग (१/७) की है. उत्कृष्ट स्थिति दस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल एक हजार वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक
होता है। प्र. १७. भंते ! उच्छ्वासनामकर्म की स्थिति कितने काल की
कही गई है? उ. गौतम ! इसकी स्थिति आदि तिर्यञ्चानुपूर्वी के समान है।
१८. आतप-नामकर्म की स्थिति आदि भी इसी प्रकार है।
१९. उद्योतनामकर्म की स्थिति आदि भी इसी प्रकार है। प्र. २०. (क) भंते ! प्रशस्तविहायोगति-नामकर्म की स्थिति
कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम
सागरोपम के सात भागों में से एक भाग (१/७) की है,
प. (घ) देवाणुपुव्विणामस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं काल
ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्स एगं सत्तभागं
पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं,
उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ, दस य वाससयाई अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो।
प. १७. उस्सासणामस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं
ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहा तिरियाणुपुव्विए।
१८.आयवणामए वि एवं चेव।
१९. उज्जोयणामए विएवं चेव। प. २०.(क) पसत्थविहायगइणामस्स णं भंते ! कम्मस्स
केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं एगं सागरोवमस्स सत्तभागं
पलिओवमस्सअसंखेज्जइभागेणं ऊणगं