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________________ कर्म अध्ययन ११८९ १४.एवं उवघायणामए वि। १५. पराघायणामए वि एवं चेव। प. १६. (क) णिरयाणुपुविणामस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्स दो सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, वीस य वाससयाई अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो। प. (ख) तिरियाणुपुब्विणामस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स दो सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, वीस य वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो। प. (ग) मणुयाणुपुव्विणामस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स दिवड्ढ सत्तभाग पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं पण्णरस सागरोवम कोडाकोडीओ, पण्णरस य वाससयाइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो। १४. इसी प्रकार उपघातनामकर्म की स्थिति के विषय में भी कहना चाहिए। १५. पराघातनामकर्म की स्थिति भी इसी प्रकार है। प्र. १६. (क) भंते ! नरकानुपूर्वी-नामकर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है? गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सहन सागरोपम के सात भागों में से दो भाग (२/७) की है, उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल दो हजार वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक होता है। प्र. (ख) भंते ! तिर्यञ्चानुपूर्वी नामकर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के सात भागों में से दो भाग (२/७) की है, उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल दो हजार वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक होता है। प्र. (ग) भंते ! मनुष्यानुपूर्वीनामकर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातयें भाग कम । सागरोपम के सात भागों में से डेढ़ भाग (9n/७) की है, . उत्कृष्ट स्थिति पन्द्रह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल पन्द्रह सौ वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक होता है। प्र. (घ) भंते ! देवानुपूर्वीनामकर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सहन सागरोपम के सात भागों में से एक भाग (१/७) की है. उत्कृष्ट स्थिति दस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल एक हजार वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक होता है। प्र. १७. भंते ! उच्छ्वासनामकर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! इसकी स्थिति आदि तिर्यञ्चानुपूर्वी के समान है। १८. आतप-नामकर्म की स्थिति आदि भी इसी प्रकार है। १९. उद्योतनामकर्म की स्थिति आदि भी इसी प्रकार है। प्र. २०. (क) भंते ! प्रशस्तविहायोगति-नामकर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के सात भागों में से एक भाग (१/७) की है, प. (घ) देवाणुपुव्विणामस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं काल ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्स एगं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ, दस य वाससयाई अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो। प. १७. उस्सासणामस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहा तिरियाणुपुव्विए। १८.आयवणामए वि एवं चेव। १९. उज्जोयणामए विएवं चेव। प. २०.(क) पसत्थविहायगइणामस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं एगं सागरोवमस्स सत्तभागं पलिओवमस्सअसंखेज्जइभागेणं ऊणगं
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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