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________________ ११९० उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ, दस य वाससयाई अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो। का प. (ख) अपसत्थविहायगइणामस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स दोण्णि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं वीसं सागरोवम कोडाकोडीओ, वीस य वाससयाई अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई,कम्मणिसेगो। २१. तसणामए एवं चेव, २२. थावरणामए एवं चेव। प. २३. सुहुमणामस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स णव पणतीसइभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवम कोडाकोडीओ, अट्ठारस य वाससयाई अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो। द्रव्यानुयोग-(२) उत्कृष्ट स्थिति दस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल एक हजार वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक होता है। प्र. (ख) भंते ! अप्रशस्तविहायोगतिनामकर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के सात भागों में से दो भाग (२/७) की है, उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल दो हजार वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक होता है। २१. त्रसनामकर्म की स्थिति आदि भी इसी प्रकार है। २२. स्थावर नामकर्म की स्थिति आदि भी इसी प्रकार है। प्र. २३. भंते ! सूक्ष्मनामकर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के पैंतीस भागों में से नव भाग (९/३५) की है। उत्कृष्ट स्थिति अठारह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल अठारह सौ वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक होता है। २४. बादरनामकर्म की स्थिति आदि अप्रशस्तविहायोगति नामकर्म की स्थिति के समान है। २५. इसी प्रकार पर्याप्तनामकर्म की स्थिति आदि के विषय में कहना चाहिए। २६. अपर्याप्त नामकर्म की स्थिति आदि सूक्ष्मनामकर्म की स्थिति के समान है। २७. साधारण शरीर नाम कर्म की स्थिति आदि सूक्ष्म शरीर नाम कर्म के समान है। प्र. २८. भंते ! प्रत्येक शरीर नाम कर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के सात भागों में से दो भाग (२/७) की है, उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल दो हजार वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक होता है। प्र. २९. भंते ! स्थिर नाम कर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के सात भागों में से एक भाग (१/७) की है। उत्कृष्ट स्थिति दस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल एक हजार वर्ष का है। २४. बायरणामए जहा अपसत्थविहायगइणामस्स। २५.एवं पज्जत्तगणामए वि। २६.अपज्जत्तगणामए जहा सुहुमणामस्स। २७.साहारण-सरीरणामए जहा सुहुमस्स। प. २८. पत्तेय-सरीरणामस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स दो सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ वीस य वाससयाई अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो। प. २९. थिरणामस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स एगं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ, दस य वाससयाई अबाहा,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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