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कर्म अध्ययन
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प. ३. वेयणिज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं
बंधठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं दो समया,
उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ तिण्णि य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मट्ठिई,कम्मणिसेगो,
प. ४. मोहणिज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं काल ___ बंधठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं,
उक्कोसेणं सत्तरि सागरोवमकोडाकोडीओ, सत्त य वाससहस्साणि अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो।
प. ५. आउयस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं बंधठिई
पण्णता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं,
उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाणि पुव्वकोडितिभागमब्भहियाणि (पुवकोडितिभागो अबाहा) अबाहूणिया कम्मट्ठिई कम्मणिसेगो।
प्र. ३. भंते! वेदनीय कर्म की बंध स्थिति कितने काल की कही
गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति दो समय की है।
उत्कृष्ट स्थिति तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है। उसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है, अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक (प्रदेश बंध) होता है। प्र. ४. भन्ते ! मोहनीय कर्म की बंध स्थिति कितने काल की
कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है,
उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल सात हजार वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म-स्थिति में ही कर्मनिषेक
अर्थात् प्रदेश बंध होता है। प्र. ५. भन्ते ! आयु कर्म की बंध स्थिति कितने काल की कही
गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति अन्तमुहूर्त की है,
उत्कृष्ट स्थिति पूर्वकोटि के त्रिभाग से अधिक तेतीस सागरोपम की है। (उसका अबाधाकाल पूर्व कोटि त्रिभाग का है।) अबाधाकाल जितनी न्यून कर्म स्थिति में ही कर्म निषेक
(प्रदेश बंध) होता है। प्र. ६-७. भन्ते ! नाम-गोत्र कर्म की बंध स्थिति कितने काल की
कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त की है,
उत्कृष्ट स्थिति बीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल दो हजार वर्ष का है। अबाधाकाल जितनी न्यून कर्मस्थिति में ही कर्मनिषेक होता है। ८. अन्तराय-कर्म की बंध स्थिति आदि ज्ञानावरणीय कर्म
के समान समझ लेना चाहिए। १४५. उत्तर कर्म प्रकृतियों की जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति और अबाधा
का प्ररूपण१. ज्ञानावरण की प्रकृतियाँप्र. भंते ! ज्ञानावरणीय कर्म की स्थिति कितने काल की कही
गई है? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है,
उत्कृष्ट स्थिति तीस कोडाकोडी सागरोपम की है। उसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है, अबाधाकाल जितनी न्यून कर्मस्थिति में ही कर्मनिषेक होता है।
प. ६-७. नाम-गोयाणं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं
बंधठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेणं अट्ठ मुहुत्ता,
उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, दोण्णि य वाससहस्साणि अबाहा, अबाहूणिया कम्मट्ठिई, कम्मणिसेगो।
८. अंतराय जहा नाणावरणिज्ज।
-विया. स. ६, उ. ३, सु. ११(१-७) १४५. उत्तर कम्मपयडीणं जहण्णुक्कोस ठिई अबाहा परूवण य
१. नाणावरण-पयडीओप. नाणावरणिज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई
पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं,
उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, तिण्णि य वासहस्साई अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिई, कम्मणिसेगो।
१.
सम.सम.७०.सु.४
२.
उत्त.अ.३३,गा.१९-२३