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अहवा अवगयवेयो य बंधइ,
अहवा अवगयवेया य बंधंति। प. जइ भंते ! अवगयवेयो य बंधइ,अवगयवेया य बंधति तं
भंते ! किं१. इत्थीपच्छाकडो बंधइ, पुरिसपच्छाकडो बंधइ, नपुंसकपच्छाकडो बंधइ जाव २६ अहवा इत्थीपच्छाकडा य, पुरिसपच्छाकडा य,
नपुंसकपच्छाकडा य बंधति? उ. गोयमा ! एवं जहेव इरियावहिया बंधगस्स तहेव
निरवसेसं जाव (२६) अहवा इत्थीपच्छाकडा य, पुरिसपच्छाकडा य, नपुंसगपच्छाकडा य बंधंति।
द्रव्यानुयोग-(२) अथवा अवेदी एक जीव भी बांधता है,
अथवा बहुत अवेदी जीव भी बांधते हैं। प्र. भंते ! यदि वेदरहित एक जीव और वेदरहित बहुत से जीव
साम्परायिक कर्म बांधते हैं तो क्या१. स्त्रीपश्चात्कृत जीव बांधता है या पुरुषपश्चात्कृत जीव बांधता है या नपुंसक पश्चात्कृत जीव बांधता है यावत् २६. अथवा बहुत स्त्रीपश्चात्कृत जीव, बहुत पुरुषपश्चात्
कृत जीव और बहुत नपुंसक पश्चात्कृत जीव बांधते हैं ? उ. गौतम ! जिस प्रकार ऐर्यापथिक कर्मबन्ध के सम्बन्ध
में छब्बीस भंग कहे हैं, उसी प्रकार यहां भी सभी भंग कहने चाहिए यावत् (२६) अथवा बहुत स्त्रीपश्चात्कृत जीव, बहुत पुरुषपश्चात्कृत जीव और बहुत नपुंसकपश्चात्कृत जीव
बांधते हैं। प्र. भंते ! १. साम्परायिक कर्म
१. किसी जीव ने बांधा था, बांधता है और बाँधेगा? २. बांधा था, बांधता है और नहीं बांधेगा? ३. बांधा था, नहीं बांधता है और बांधेगा?
४. बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा? उ. गौतम ! १. किसी जीव ने बांधा, बांधता है और बांधेगा,
२. किसी जीव ने बांधा, बांधता है और नहीं बांधेगा, ३. किसी जीव ने बांधा, नहीं बांधता है और बांधेगा, ४. किसी जीव ने बांधा, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा।
प. तं भंते !
१.किं बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ, २. बंधी, बंधइ,न बंधिस्सइ, ३. बंधी, न बंधइ, बंधिस्सइ,
४. बंधी, न बंधइ, न बंधिस्सइ, उ. गोयमा !१.अत्थेगइए बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ,
२. अत्थेगइए बंधी, बंधइ, न बंधिस्सइ, ३. अत्थेगइए बंधी,नबंधइ, बंधिस्सइ, ४. अत्थेगइए बंधी, न बंधइ, न बंधिस्सइ।
-विया.स.८, उ.८, सु. १७-२० ६२. संपराइयबंधं पडुच्च सादिसपज्जवसियाइ देससव्वाइय
बंधपरूवणंप. तं भंते ! किं साईयं सपज्जवसियं बंधइ जाव अणाईयं
अपज्जवसियं बंधइ? उ. गोयमा ! साईयं वा सपज्जवसियं बंधइ, अणाईयं वा
सपज्जवसियं बंधइ, अणाईयं वा अपज्जवसियं बंधइ, णो चेव णं साईयं
अपज्जवसियं बंधइ। प. तं भंते ! किं देसेणं देसं बंधइ जाव सव्वेणं सव्वं बंधइ ?
उ. गोयमा ! एवं जहेव इरियावहिया बंधगस्स जाव सव्वेणं सव्वं बंधइ।
-विया. स.८, उ.८,सु.२१-२२ ६३. दव्वभावबंधरूवं बंधस्स भेय जुयं
प. कइविहे णं भंते ! बंधे पण्णत्ते? उ. मागंदियपुत्ता ! दुविहे बंधे पण्णत्ते, तं जहा
१. दव्वबंधे य, २. भावबंधे य। प. दव्वबंधे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. मागंदियपुत्ता ! दुविहे पण्णत्ते,तं जहा
१. पयोगबंधे य, २. वीससाबंधे य। प. वीससाबंधेणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते?
६२. साम्परायिक बंध की अपेक्षा सादि सपर्यवसितादि व
देशसर्वादि बंध प्ररूपणप्र. भंते ! साम्परायिक कर्म सादि-सपर्यवसित बांधता है यावत्
अनादि अपर्यवसित बांधता है? उ. गौतम ! साम्परायिक कर्म सादि-सपर्यवसित बांधता है,
अनादि-सपर्यवसित बांधता है, अनादि-अपर्यवसित बांधता है, किन्तु सादि-अपर्यवसित नहीं
बांधता है। प्र. भंते ! साम्परायिक कर्म देश से आत्मा के देश को बांधता है
यावत् सर्व से सर्व को बांधता है? उ. गौतम ! जिस प्रकार ऐर्यापथिक कर्म बन्ध के संबंध में कहा
है उसी प्रकार यावत् सर्व से सर्व को बांधता है कहना चाहिए। ६३. द्रव्य-भाव बंधरूप बंध के दो भेद
प्र. भंते ! बन्ध कितने प्रकार का कहा गया है? उ. माकन्दिकपुत्र ! बन्ध दो प्रकार का कहा गया है, यथा
१. द्रव्यबन्ध, २. भावबन्ध। प्र. भंते ! द्रव्यबन्ध कितने प्रकार का कहा गया है? उ. माकन्दिकपुत्र ! वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा
१. प्रयोगबन्ध, २. विनसाबन्ध। प्र. भंते ! विनसाबन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ?