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अवसेसाणं एगिंदिय-मणूसवज्जाणं तिय भंगो जाव वेमाणियाणं। दं. १२-१६. एगिंदिया णं सत्तविहबंधगा य,
अट्ठविहबंधगा य। प. दं. २१. मणूसा णं भंते ! णाणावरणिज्जं कम्मं वेएमाणा
कइ कम्मपगडीओ बंधंति? । उ. गोयमा ! १.सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा,
२. अहवा सत्तविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगे य,
३. अहवा सत्तविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य,
४. अहवा सत्तविहबंधगा य,छव्विहबंधगे य,
५. अहवा सत्तविहबंधगा य,छव्विह बंधगा य,
६. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगे य,
७. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य,
८-११. अहवा सत्तविहबंधगा य, अट्ठविहबंधए य, छव्विहबंधए य चउभंगो।
द्रव्यानुयोग-(२) एकेन्द्रियों और मनुष्यों को छोड़कर शेष वैमानिकों पर्यन्त तीनों भंग कहने चाहिए। द. १२-१६. (अनेक) एकेन्द्रियं जीव सात और आठ के
बन्धक होते हैं। प्र. द.२१.भंते ! अनेक मनुष्य ज्ञानावरणीय कर्म का वेदन करते
हुए कितनी कर्मप्रकृतियों का बंध करते हैं? उ. गौतम ! १. सभी मनुष्य सात प्रकृतियों के बन्धक होते हैं,
२. अथवा अमेक मनुष्य सात प्रकृतियों के बंधक होते हैं
और एक आठ प्रकृति का बंधक होता है। ३. अथवा अनेक मनुष्य सात और आठ प्रकृतियों के बंधक होते हैं। ४. अथवा अनेक मनुष्य सात प्रकृतियों के बंधक होते हैं
और एक छह प्रकृति का बंधक होता है। ५. अथवा अनेक मनुष्य सात और छः प्रकृतियों के बंधक होते हैं। ६. अथवा अनेक मनुष्य सात प्रकृतियों के बंधक होते हैं और एक मनुष्य एक प्रकृति का बंधक होता है। ७. अथवा अनेक मनुष्य सात और एक प्रकृति के बंधक होते हैं। (८-११.) अथवा अनेक मनुष्य सात के बन्धक होते हैं तथा एक आठ का और छह का बन्धक होता है। ये चार भंग होते हैं। (१२-१५) अथवा अनेक मनुष्य सात के बन्धक होते हैं तथा एक आठ का और एक का बन्धक होता है। ये चार भंग होते हैं। (१६-१९) अथवा अनेक मनुष्य सात के बन्धक होते हैं तथा एक छह का और एक का बन्धक होता है। ये चार भंग होते हैं। (२०-२७) अथवा अनेक मनुष्य सात के बंधक होते हैं तथा एक आठ का, छह का और एक का बन्धक होता है, इस प्रकार आठ भंग होते हैं। इस प्रकार कुल ये सत्ताईस भंग होते हैं। जिस प्रकार ज्ञानावरणीयकर्म के बन्धक का कथन किया, उसी प्रकार दर्शनावरणीय एवं अन्तरायकर्म के बन्धक का भी
कथन करना चाहिए। प्र. भंते ! एक जीव वेदनीय कर्म का वेदन करता हुआ कितनी
कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता है? उ. गौतम ! वह सात, आठ, छह या एक का बन्धक होता है या
अबंधक होता है। दं.२१ इसी प्रकार मनुष्य के विषय में भी समझ लेना चाहिए। दं.१-२०.शेष नारकादि सात के या आठ के बन्धक होते हैं।
१२-१५. अहवा सत्तविहबंधगा य, अट्ठविहबंधए य, एगविहबंधए य चउभंगो।
१६-१९. अहवा सत्तविहबंधगा य, छव्विहबंधए य, एगविहबंधए य चउभंगो।
२०-२७. अहवा सत्तविहबंधगा य, अट्ठविहबंधए य, छव्विहबंधए य, एगविहबंधए य अट्ठ भंगा।
एवं एए सत्तावीसं भंगा। एवं जहा णाणावरणिज्ज तहा दरिसणावरणिज्ज वि, अंतराइयं वि।
प. जीवे णं भंते ! वेयणिज्जं कम्मं वेएमाणे कइ
कम्मपगडीओ बंधइ? उ. गोयमा ! सत्तविहबंधए वा, अट्ठविहबंधए वा,
छव्विहबंधए वा, एगविहबंधए वा, अबंधए वा। दं.२१.एवं मणूसे वि। दं. १-२०. अवसेसा णारगादीया सत्तविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगाय।
दं. २२-२४.एवं जाव वेमाणिए। प. जीवा णं भंते ! वेयणिज्जं कम वेएमाणा कइ
कम्मपगडीओ बंधति?
दं. २२-२४. इसी प्रकार वैमानिक पर्यंत कहना चाहिए। प्र. भंते ! अनेक जीव वेदनीयकर्म का वेदन करते हुए कितनी
कर्मप्रकृतियों का बंध करते हैं ?