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परम्परा चत्तारि वि एक्कगमएणं चरिमा वि, अचरिमा वि एवं चेव,
णवर-अलेस्सो केवली अजोगी य न भण्णइ,
सेसं तहेव।
-विया. स.३०,उ.३,४-११ १३२. अणंतरोववन्नगाइसु चउवीसदंडएसु आउबंधस्स
विहिणिसेह परूवणंप. दं. १. अणंतरोववन्नगा णं भंते ! नेरइया किं
नेरइयाउयं पकरेंति, तिरिक्ख जोणियाउयं पकरेंति,
मणुस्साउयं पकरेंति, देवाउयं पकरेंति? उ. गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति जाव नो देवाउयं
पकरेंति। प. परंपरोववन्नगा णं भंते ! नेरइया किं नेरइयाउयं
पकरेंति जाव देवाउयं पकरेंति? उ. गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति, तिरिक्खजोणियाउयं __पि पकरेंति, मणुस्साउयं पि पकरेंति, नो देवाउयं
पकरेंति। प. अणंतर परम्पराणुववन्नगा णं भंते ! नेरइया किं
नेरइयाउयं पकरेंति जाव देवाउयं पकरेंति? उ. गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति जाव नो देवाउय
पकरेंति। दं.२-२४.एवं जाव वेमाणिया,
द्रव्यानुयोग-(२) परम्पर शब्द से युक्त चार उद्देशक एक गम वाले हैं। इसी प्रकार चरम और अचरम उद्देशक भी समझना चाहिए। विशेष-अचरम में अलेश्यी केवली और अयोगी का कथन नहीं करना चाहिए।
शेष सब कथन पूर्ववत् है। १३२. अनंतरोपपन्नकादि चौबीस दण्डकों में आयु बंध क
विधि-निषेध का प्ररूपणप्र. दं.१. भंते अनन्तरोपपन्नक नैरयिक क्या नरकायु का बंध
करते हैं, तिर्यञ्चायु का बंध करते हैं, मनुष्यायु का बंध
करते हैं या देवायु का बंध करते हैं ? उ. गौतम ! वे नरकायु का बंध नहीं करते यावत् देवायु का बंध
नहीं करते। प्र. भंते ! परम्परोपपन्नक नैरयिक क्या नरकायु का बंध करते.
हैं यावत् देवायु का बंध करते हैं ? उ. गौतम ! वे नरकायु का बंध नहीं करते, वे तिर्यञ्चायु और
मनुष्यायु का बंध करते हैं किन्तु देवायु का बंध नहीं करते।
प्र. भंते ! अनन्तर-परम्परानुपपन्नक नैरयिक क्या नरकायु का
बंध करते हैं यावत् देवायु का बंध करते हैं ? उ. गौतम ! वे नरकायु का बंध नहीं करते यावत् देवायु का बंध
नहीं करते। दं. २-२४. इसी प्रकार वैमानिकों तक आयु बंध का कथन करना चाहिए। विशेष-परम्परोपपन्नक पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक और मनुष्य चारों प्रकार के आयु का बंध करते हैं।
णवरं-पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा य परम्परोववन्नगा चत्तारि वि आउयाई पकरेंति।
-विया. स. १४, उ.१, सु.१०-१३ १३३. अणंतर निग्गयाइसु चउवीसदंडएसु आउयबंध विहिणिसेहो
परूवणंप. दं.१.अणंतरनिग्गया णं भंते ! नेरइया किं नेरइयाउयं
पकरेंति जाव देवाउयं पकरेंति? उ. गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति जाव नो देवाउयं
पकरेंति। प. परम्परणिग्गया णं भंते ! नेरइया किं नेरइयाउयं
पकरेंति जाव देवाउयं पकरेंति? उ. गोयमा ! नेरइयाउयं पि पकरेंति जाव देवाउयं पि
पकरेंति। प. अणंतर परम्परअणिग्गया णं भंते ! नेरइया कि
नेरइयाउयं पकरेंति जाव देवाउयं पकरेंति? उ. गोयमा ! नो नेरइयाउयं पि पकरेंति जाव नो देवाउयं पि
पकरेंति। दं.२-२४. एवं निरवसेसं जाव वेमाणिया।
-विया.स.१४, उ.१,सु.१६-१९
१३३. अनन्तरनिर्गतादि चौबीस दण्डकों में आयु बंध के विधि
निषेध का प्ररूपणप्र. दं.१. भंते ! अनन्तरनिर्गत नैरयिक, क्या नरकायु का बंध
करते हैं यावत् देवायु का बंध करते हैं? उ. गौतम ! वे नरकायु का बंध नहीं करते यावत् देवायु का बंध
नहीं करते। प्र. भंते ! परम्पर-निर्गत-नैरयिक क्या नरकायु का बंध करते
हैं यावत् देवायु का बंध करते हैं ? उ. गौतम ! वे नरकायु का भी बंध करते हैं यावत् देवायु का
भी बंध करते हैं। प्र. भंते ! अनन्तर-परम्पर-अनिर्गत नैरयिक क्या नरकायु का
बंध करते हैं यावत् देवायु का बंध करते हैं ? उ. गौतम ! वे नरकायु का भी बंध नहीं करते यावत् देवायु का
भी बंध नहीं करते। दं. २-२४. इसी प्रकार शेष सभी कथन वैमानिकों तक करना चाहिए।