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________________ ११७६ परम्परा चत्तारि वि एक्कगमएणं चरिमा वि, अचरिमा वि एवं चेव, णवर-अलेस्सो केवली अजोगी य न भण्णइ, सेसं तहेव। -विया. स.३०,उ.३,४-११ १३२. अणंतरोववन्नगाइसु चउवीसदंडएसु आउबंधस्स विहिणिसेह परूवणंप. दं. १. अणंतरोववन्नगा णं भंते ! नेरइया किं नेरइयाउयं पकरेंति, तिरिक्ख जोणियाउयं पकरेंति, मणुस्साउयं पकरेंति, देवाउयं पकरेंति? उ. गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति जाव नो देवाउयं पकरेंति। प. परंपरोववन्नगा णं भंते ! नेरइया किं नेरइयाउयं पकरेंति जाव देवाउयं पकरेंति? उ. गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति, तिरिक्खजोणियाउयं __पि पकरेंति, मणुस्साउयं पि पकरेंति, नो देवाउयं पकरेंति। प. अणंतर परम्पराणुववन्नगा णं भंते ! नेरइया किं नेरइयाउयं पकरेंति जाव देवाउयं पकरेंति? उ. गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति जाव नो देवाउय पकरेंति। दं.२-२४.एवं जाव वेमाणिया, द्रव्यानुयोग-(२) परम्पर शब्द से युक्त चार उद्देशक एक गम वाले हैं। इसी प्रकार चरम और अचरम उद्देशक भी समझना चाहिए। विशेष-अचरम में अलेश्यी केवली और अयोगी का कथन नहीं करना चाहिए। शेष सब कथन पूर्ववत् है। १३२. अनंतरोपपन्नकादि चौबीस दण्डकों में आयु बंध क विधि-निषेध का प्ररूपणप्र. दं.१. भंते अनन्तरोपपन्नक नैरयिक क्या नरकायु का बंध करते हैं, तिर्यञ्चायु का बंध करते हैं, मनुष्यायु का बंध करते हैं या देवायु का बंध करते हैं ? उ. गौतम ! वे नरकायु का बंध नहीं करते यावत् देवायु का बंध नहीं करते। प्र. भंते ! परम्परोपपन्नक नैरयिक क्या नरकायु का बंध करते. हैं यावत् देवायु का बंध करते हैं ? उ. गौतम ! वे नरकायु का बंध नहीं करते, वे तिर्यञ्चायु और मनुष्यायु का बंध करते हैं किन्तु देवायु का बंध नहीं करते। प्र. भंते ! अनन्तर-परम्परानुपपन्नक नैरयिक क्या नरकायु का बंध करते हैं यावत् देवायु का बंध करते हैं ? उ. गौतम ! वे नरकायु का बंध नहीं करते यावत् देवायु का बंध नहीं करते। दं. २-२४. इसी प्रकार वैमानिकों तक आयु बंध का कथन करना चाहिए। विशेष-परम्परोपपन्नक पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक और मनुष्य चारों प्रकार के आयु का बंध करते हैं। णवरं-पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा य परम्परोववन्नगा चत्तारि वि आउयाई पकरेंति। -विया. स. १४, उ.१, सु.१०-१३ १३३. अणंतर निग्गयाइसु चउवीसदंडएसु आउयबंध विहिणिसेहो परूवणंप. दं.१.अणंतरनिग्गया णं भंते ! नेरइया किं नेरइयाउयं पकरेंति जाव देवाउयं पकरेंति? उ. गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति जाव नो देवाउयं पकरेंति। प. परम्परणिग्गया णं भंते ! नेरइया किं नेरइयाउयं पकरेंति जाव देवाउयं पकरेंति? उ. गोयमा ! नेरइयाउयं पि पकरेंति जाव देवाउयं पि पकरेंति। प. अणंतर परम्परअणिग्गया णं भंते ! नेरइया कि नेरइयाउयं पकरेंति जाव देवाउयं पकरेंति? उ. गोयमा ! नो नेरइयाउयं पि पकरेंति जाव नो देवाउयं पि पकरेंति। दं.२-२४. एवं निरवसेसं जाव वेमाणिया। -विया.स.१४, उ.१,सु.१६-१९ १३३. अनन्तरनिर्गतादि चौबीस दण्डकों में आयु बंध के विधि निषेध का प्ररूपणप्र. दं.१. भंते ! अनन्तरनिर्गत नैरयिक, क्या नरकायु का बंध करते हैं यावत् देवायु का बंध करते हैं? उ. गौतम ! वे नरकायु का बंध नहीं करते यावत् देवायु का बंध नहीं करते। प्र. भंते ! परम्पर-निर्गत-नैरयिक क्या नरकायु का बंध करते हैं यावत् देवायु का बंध करते हैं ? उ. गौतम ! वे नरकायु का भी बंध करते हैं यावत् देवायु का भी बंध करते हैं। प्र. भंते ! अनन्तर-परम्पर-अनिर्गत नैरयिक क्या नरकायु का बंध करते हैं यावत् देवायु का बंध करते हैं ? उ. गौतम ! वे नरकायु का भी बंध नहीं करते यावत् देवायु का भी बंध नहीं करते। दं. २-२४. इसी प्रकार शेष सभी कथन वैमानिकों तक करना चाहिए।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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