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कर्म अध्ययन
एवं जहा नाणावर णिज्जं तहा दंसणावरणिज्जं मोहणिज्जं अंतराइय थ
वेदणिज्जाउय णाम- गोयाई एवं चेव ।
नवरं मणूसे विनियमा वेदे ।
एवं एए एगत्त- पोहत्तिया सोलस दंडगा ।
- पण्ण. प. २३, उ. १, सु. १६७५-१६७८ ८८. णाणावर णिज्जाइ बंधमाणे जीव- चउवीसदंडएसु कम्म वेयण परूवणं
प. जीवे णं भंते ! णाणावरणिज्जं कम्मं बंधमाणे कइ कम्मपगडीओ वेएइ ?
उ. गोयमा ! णियमा अट्ठ कम्मपगडीओ वेएइ ।
दं. १-२४. एवं रइए जाव वेमाणिए ।
एवं पुहुत्तेण वि ।
एवं वेयणिज्जवज्जं जाव अंतराइयं ।
प. जीवे णं भंते ! वेयणिज्जं कम्मं बंधमाणे कइ कम्मपगडीओ वेएड ?
उ. गोयमा ! सत्तविहवेयए वा अट्ठविहवेयए वा, चविहवे वा । दं. २१. एवं मणूसे वि।
दं. १-२४. सेसा रइयाई एगतेण वि पुहतेण वि नियमा अट्टकम्मपगडीओ वेदेति । जाव बेमाणिया ।
प. जीवा णं भते ! वेयणिज्जं कम्मं बंधमाणा कह कम्मपगडीओ वेदेंति ?
उ. गोयमा ! १. सव्वे वि ताव होज्जा, अट्ठविहवेएगा य, उहिएगा थ
२. अहवा अठविहवेएगा य चउब्धिहवेएगा य सत्तविहवेएगे य
३. अहवा अट्ठविहवेएगा य चउव्विहवेएगा य सत्तविहवेएगा ।
दं. २१. एवं मणूसा वि भाणियच्या
- पण्ण. प. २५, सु. १७६०-१७७४
८९. णाणावरणिजाइवेयमाणे जीव-चडवीसदंडएस कम्म वेयण परूवणं
प. जीये णं भंते! णाणावरणिज्जं कम्म वेयमाणे कद कम्मपगडीओ वेएइ ?
उ. गोयमा ! सत्तविहवेयए वा अट्ठविहवेयए वा ।
१. विया. स.१६, उ. ३, सु. ४
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जिस प्रकार ज्ञानावरणीय के सम्बन्ध में कहा उसी प्रकार दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तरायकर्म के वेदन के विषय मैं कहना चाहिए।
वेदनीय, आयु, नाम और गोत्रकर्म के विषय में भी इसी प्रकार जानना चाहिए,
विशेष-मनुष्य इनका नियमतः वेदन करता है।
इस प्रकार एकत्व और बहुत्व की विवक्षा से ये सोलह दण्डक होते हैं।
८८. ज्ञानावरणीय आदि का बंध करते हुए जीव चौबीस दंडकों में कर्म वेदन का प्ररूपण
प्र. भंते! ज्ञानावरणीयकर्म का बन्ध करता हुआ जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है?
उ. गौतम ! वह नियमतः आठ कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है। दं. १-२४. इसी प्रकार नैरयिक से वैमानिक पर्यन्त वेदन जानना चाहिए।
इसी प्रकार अनेक की अपेक्षा भी कहना चाहिए।
वेदनीयकर्म को छोड़कर अंतराय कर्म पर्यन्त इसी प्रकार जानना चाहिए।
प्र. भंते! वेदनीयकर्म को बांधता हुआ जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ?
उ. गौतम ! वह सात, आठ या चार कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है।
दं. २१. इसी प्रकार मनुष्य के वेदन के सम्बन्ध में कहना चाहिए।
दं. १-२४. शेष नैरयिकों से वैमानिक पर्यन्त एकत्व या बहुत्व की विवक्षा से नियमतः आठ कर्मप्रकृतियों का वेदन करते हैं।
प्र. भंते अनेक जीव वेदनीयकर्म को बांधते हुए कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करते हैं?
उ. गौतम १. सभी जीव आठ या चार कर्मप्रकृतियों के वेदक होते हैं,
२. अथवा अनेक जीव आठ या चार कर्मप्रकृतियों के वेदक होते हैं और एक जीब सात कर्मप्रकृतियों का वेदक होता है,
३. अथवा अनेक जीव आठ, चार या सात कर्मप्रकृतियों के वेदक होते हैं।
दं. २१. इसी प्रकार मनुष्यों के विषय में भी कहना चाहिए।
८९. ज्ञानावरणीय आदि का वेदन करते हुए जीव-चौबीस दंडकों में कर्म वेदन का प्ररूपण
प्र. भंते! ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन करता हुआ जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ?
उ. गौतम ! वह सात या आठ (कर्मप्रकृतियों) का वेदक होता है।