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तहारूवरस समणस्स वा, माहणस्स वा अंतिए एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं सोच्चा निसम्म देसं उवरमइ, देसं नो उवरमइ, देसं पच्चक्खाइ, देसं नो पच्चक्खाइ,
से णं तेणं देसोवरम-देस पच्चक्खाणेणं नो नेरइयाउयं पकरेइ जाव देवाउयं पकरेइ, नो नेरइयाउयं किच्चा नेरइएसु उववज्जइ जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उववज्जइ। से तेणढेण गोयमा ! एवं वुच्चइ'बालपंडिए मणुस्से-जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उववज्जइ।'
-विया. स. १, उ.८, सु. १-३ १२८. किरियावाइयाइ चउव्विह समोसरणगएसु जीवेसु
एक्कारसठाणेहिं आउयबंध परूवणंप. १.किरियावाई णं भंते ! जीवा किं नेरइयाउयं पकरेंति
तिरिक्खजोणियाउयं पकरेंति,
मणुस्साउयं पकरेंति , देवाउयं पकरेंति? उ. गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति, नो तिरिक्ख
जोणियाउयं पकरेंति, मणुस्साउयं पि पकरेंति, देवाउयं पिपकरेंति। प. जइ देवाउयं पकरेंति किं भवणवासिदेवाउयं पकरेंति,
वाणमंतरदेवाउयं पकरेंति, जोइसिय देवाउयं पकरेंति, वेमाणियदेवाउयं पकरेंति?
द्रव्यानुयोग-(२) तथारूप श्रमण या माहन के पास से एक भी आर्य तथा धार्मिक सुवचन सुनकर, अवधारण करके एक देश से (आंशिक) विरत होता है और एक देश से विरत नहीं होता। एक देश से प्रत्याख्यान करता है और एक देश से प्रत्याख्यान नहीं करता। उस देश-विरत और देश-प्रत्याख्यान से वह नरकायु का बंध नहीं करता यावत् देवायु का बंध करता है वह नरकायु बांधकर नैरयिकों में उत्पन्न नहीं होता यावत् देवायु बांधकर देवों में उत्पन्न होता है। इस कारण गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि'बाल पंडित मनुष्य यावत् देवायु बाधंकर देवों में उत्पन्न
होता है।' १२८. क्रियावादीआदि चारों समवसरणगत जीवों में ग्यारह
स्थानों द्वारा आयु बंध का प्ररूपणप्र. १. भंते ! क्रियावादी जीव क्या नरकायु का बंध करते हैं, तिर्यञ्चयोनिकायु का बंध करते हैं,
मनुष्यायु का बंध करते हैं या देवायु का बंध करते हैं ? उ. गौतम ! क्रियावादी जीव नैरयिक और तिर्यञ्चयोनिकायु
का बंध नहीं करते हैं किन्तु मनुष्य और देवायु का बंध
करते हैं। प्र. यदि क्रियावादी जीव देवायु का बंध करते हैं तो क्या वे
भवनवासी-देवायु का बंध करते हैं, वाणव्यन्तर-देवायु का बंध करते हैं ज्योतिष्क-देवायु का बंध करते हैं या
वैमानिक-देवायु का बंध करते हैं? उ. गौतम ! वे न तो भवनवासी-देवायु का बंध करते हैं,
न वाणव्यन्तर-देवायु का बंध करते हैं, न ज्योतिष्क-देवायु का बंध करते हैं,
किन्तु वैमानिक-देवायु का बंध करते हैं, प्र. भंते ! अक्रियावादी जीव क्या नरकायु का बंध करते हैं
यावत् देवायु का बंध करते हैं? उ. गौतम ! वे नरकायु का भी बंध करते हैं यावत् देवायु का
भी बंध करते हैं। इसी प्रकार अज्ञानवादी और विनयवादी जीवों के आयु का
बन्ध कहना चाहिए। प्र. २. भंते ! सलेश्य क्रियावादी जीव क्या नरकायु का बंध
करते हैं यावत् देवायु का बंध करते हैं ? उ. गौतम ! वे नरकायु का बंध नहीं करते
इसी प्रकार (पूर्वोक्त) सामान्य जीवों के समान सलेश्य में
चारों समवसरणों के आयु बंध का कथन करना चाहिए। प्र. भंते ! कृष्णलेश्यी क्रियावादी जीव क्या नरकायु का बंध
करते हैं यावत् देवायु का बंध करते हैं ? उ. गौतम ! वे न नरकायु का बंध करते हैं,
न तिर्यञ्चयोनिकायु का बंध करते हैं, किन्तु मनुष्यायु का बंध करते हैं,
उ. गोयमा ! नो भवणवासिदेवाउयं पकरेंति,
नो वाणमंतर देवाउयं पकरेंति, नो जोइसियदेवाउयं पकरेंति,
वेमाणियदेवाउयं पकरेंति। प. अकिरियावाई णं भंते ! जीवा किं नेरइयाउयं पकरेंति
जाव देवाउयं पकरेंति? उ. गोयमा ! नेरइयाउयं पि पकरेंति जाव देवाउयं पि
पकरेंति। एवं अन्नाणियवाई वि, वेणइयवाई वि।
प. २. सलेस्सा णं भंते ! जीवा किरियावाई किं नेरइयाउय
पकरेंति जाव देवाउयं पकरेंति? उ. गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति।
एवं जहेव जीवा तहेव सलेस्सावि चउहि वि
समोसरणेहिं भाणियव्वा। प. कण्हलेस्सा णं भंते ! जीवा किरियावाई किं नेरइयाउयं
पकरेंति जाव देवाउयं पकरेंति? उ. गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति,
नो तिरिक्खजोणियाउयं पकरेंति, मणुस्साउयं पकरेंति,