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कर्म अध्ययन
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एवं एएणं कमेणं जहेव बंधिसए उदेसगाणं परिवाडी तहेव इह पि अट्ठसुभंगेसु नेयव्या।
जिस प्रकार “बन्धी शतक" में उद्देशकों की परिपाटी कही है, उसी क्रम से उसी प्रकार यहाँ भी आठों ही भंगों में कहनी चाहिए। विशेष-जिनमें जो पद सम्भव हों, उसमें वे ही पद अचरम उद्देशक तक कहने चाहिए। इस प्रकार ये सब ग्यारह उद्देशक हुए।
णवर-जाणियव्वं जं जस्स अस्थि तं तस्स भाणियव्वं जाव अचरिमुद्देसो। सव्ये वि एए एक्कारस उद्देसगा।
' -विया.स.२८, उ.३-११,सु.१ ५४. जीव चउवीसदंडएसु पावकम्मं अट्ठ कम्माण य सम-विसम-
पट्ठवण-निट्ठवणंप. जीवाणं भंते ! पावं कम्मं किं
१. समायं पट्ठविंसु समायं निट्ठविंसु,
२. समायं पट्ठविंसु विसमायं निट्ठविंसु,
३. विसमायं पट्ठविंसु समायं निलविंसु, ४. विसमायं पट्ठविंसु विसमायं निट्ठविंसु?
उ. गोयमा ! १. अत्थेगइया समायं पट्ठविंसु समायं निट्ठविंसु जाव४. अत्थेगइया विसमायं पट्ठविंसु विसमायं निट्ठविंसु।
प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
अत्थेगइया समायं पट्ठविंसु समायं निट्ठविंसु जाव अत्थेगइया विसमायं पट्ठविंसु, विसमायं निट्ठविंसु?
५४. जीव-चौबीस दंडकों में पापकर्म और अष्ट कर्मों का सम
विषम प्रवर्तन-समापनप्र. भंते ! क्या जीव पापकर्म का वेदन १. सम समय में ही प्रारम्भ करते हैं और सम समय में ही
समाप्त करते हैं ? २. सम समय में प्रारम्भ करते हैं और विषम समय में समाप्त
करते हैं? ३. विषम समय में प्रारम्भ करते हैं और सम समय में समाप्त
करते हैं? ४. विषम समय में प्रारम्भ करते हैं और विषम समय में
समाप्त करते हैं? उ. गौतम ! कितने ही जीव (पापकर्म का वेदन) सम समय में
प्रारम्भ करते हैं और सम समय में ही समाप्त करते हैं यावत् कितने ही जीव विषम समय में प्रारम्भ करते हैं और विषम
समय में ही समाप्त करते हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
"कितने ही जीव पापकर्मों का वेदन सम समय में प्रारम्भ करते हैं और सम समय में ही समाप्त करते हैं यावत् कितने ही जीव विषम समय में प्रारम्भ करते हैं और विषम समय में
ही समाप्त करते हैं? उ. गौतम ! जीव चार प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. कई जीव समान आयु वाले हैं और सम समय में उत्पन्न
होते हैं, २. कई जीव समान आयु वाले हैं और विषम समय में उत्पन्न
होते हैं, ३. कई जीव विषम आयु वाले हैं और सम समय में उत्पन्न
होते हैं। ४. कई जीव विषम आयु वाले हैं और विषम समय में उत्पन्न
होते हैं। १. उनमें से जो समान आय वाले हैं और सम समय में
उत्पन्न होने वाले हैं, वे पापकर्म का वेदन सम समय में प्रारम्भ करते हैं और सम समय में ही समाप्त करते हैं, उनमें से जो समान आयु वाले हैं और विषम समय में उत्पन्न होने वाले हैं, वे पापकर्म का वेदन सम समय में प्रारम्भ करते हैं और विषम समय में समाप्त
करते हैं, ३. उनमें से जो विषम आयु वाले हैं और सम समय में
उत्पन्न होने वाले हैं,वे पापकर्म का वेदन विषम समय में प्रारम्भ करते हैं और सम समय में समाप्त करते हैं।
उ. गोयमा ! जीवा चउव्विहा पण्णता,तं जहा
१. अत्थेगइया समाउया समोववन्नगा,
२. अत्थेगइया समाउया विसमोववन्नगा,
३. अत्थेगइया विसमाउया समोववन्नगा,
४. अत्थेगइया विसमाउया विसमोववन्नगा,
१. तत्थ णं जे ते समाउया समोववन्नगा ते णं पावं
कम्मं समायं पट्ठविंसु समायं निट्ठविंसु,
२. तत्थ णं जे ते समाउया विसमोववन्नगा ते णं पावं
कम्मं समायं पट्ठविंसु विसमायं निट्ठविंसु,
३. तत्थ णं जे ते विसमाउया समोववन्नगा ते णं पावं
कम्मं विसमायं पट्ठविंसु समायं निट्ठविंसु,