________________
१११२
द्रव्यानुयोग-(२)
प. ३. कण्हपक्खिए णं भंते ! आउयं कम्मकिंबंधी,बंधइ, बंधिस्सइ जाव
बंधी,न बंधइ,न बंधिस्सइ? उ. गोयमा ! अत्थेगइए बंधी,बंधइ, बंधिस्सइ,
अत्थेगइए बंधी,न बंधइ,बंधिस्सइ। पढम-तइय भंगा। सुक्कपक्खिए ४. सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी णं चत्तारि
भंगा। प. सम्मामिच्छादिट्ठी णं भंते ! आउयं कम
किं बंधी,बंधइ, बंधिस्सइ जाव
बंधी,न बंधइ,न बंधिस्सइ? उ. गोयमा ! अत्थेगइए बंधी,न बंधइ, बंधिस्सइ,
अत्येगइए बंधी,नबंधइ, न बंधिस्सइ। तइय-चउत्था भंगा। ६. नाणी जाव ओहिनाणी चत्तारिभंगा।
प. मणपज्जवनाणी णं भंते ! आउयं कम
किं बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ जाव
बंधी,न बंधइ,न बंधिस्सइ? उ. गोयमा !१.अत्थेगइए बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ,
प्र. ३.भंते ! कृष्णपाक्षिक जीव ने (आयुकर्म) बांधा था, बांधता
है और बांधेगा यावत् बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं
बांधेगा? उ. गौतम ! १. किसी जीव ने (आयु कर्म) बांधा था, बांधता है
और बांधेगा, २. किसी जीव ने बांधा था, नहीं बांधता है और बांधेगा, ये प्रथम और तृतीय भंग हैं। शुक्लपाक्षिक-सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि में चारों भंग
पाये जाते हैं। प्र. भंते ! सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव ने आयु कर्म बांधा था, बांधता
है और बांधेगा यावत्
बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा? उ. गौतम ! किसी जीव ने बांधा था, नहीं बांधता है और बांधेगा
तथा किसी जीव ने बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा, यह तीसरा और चौथा भंग है। ६. ज्ञानी से अवधिज्ञानी जीव तक में चारों भंग पाये
जाते हैं। प्र. भंते ! मनःपर्यवज्ञानी जीव ने आयुकर्म बांधा था, बांधता है
और बांधेगा यावत् बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं
बांधेगा? उ. गौतम ! १. किसी (मनःपर्यवज्ञानी) ने आयुकर्म बांधा था,
बांधता है और बांधेगा, ३. किसी (मनःपर्यवज्ञानी) ने बांधा था, नहीं बांधता है और
बांधेगा। ४. किसी (मनःपर्यवज्ञानी) ने बांधा था, नहीं बांधता है और
नहीं बांधेगा, द्वितीय भंग को छोड़कर ये तीन भंग पाये जाते हैं। केवलज्ञानी में चौथा भंग पाया जाता है। इसी प्रकार इसी क्रम में नो संज्ञोपयुक्त जीव में द्वितीय भंग को छोड़कर तीन भंग मनःपर्यवज्ञानी के समान होते हैं। ८. अवेदक ९. अकषायी में सम्यग्मिथ्यादृष्टि के समान तीसरा और
चौथा भंग पाया जाता है। १०. अयोगी में चौथा भंग पाया जाता है। शेष पदों में अनाकारोपयुक्त तक चारों भंग पाये जाते हैं।
३. अत्थेगइए बंधी, न बंधइ, बंधिस्सइ,
४. अत्थेगइए बंधी, न बंधइ, न बंधिस्सइ।
बितिय भंग विहूणा तिय भगा। केवलनाणे चरिमो भंगो। एवं एएणं कमेणं ७. नो सन्नोवउत्ते बितियभगविहूणा तिय भंगा जहेव मणपज्जवनाणे। ८. अवेयए। ९. अकसाई यततिय-चउत्था भंगा जहेव सम्मामिच्छत्ते।
१०. अजोगिम्मिचरिमोभंगो।
सेसेसुपएसु. ५,७,८,९,१०,११, धत्तारि भंगा
जाव.११.अणागारोवउत्ते प. दं.१.नेरइए णं भंते ! आउयं कम्म
किं बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ जाव
बंधी,न बंधइ,न बंधिस्सइ? उ. गोयमा ! चत्तारि भंगा।
एवं सव्वत्थ.५-११.विनेरइयाणं चत्तारि भंगा। णवर-२. कण्हलेस्से, ३.कण्हपक्खिए य पढम-तइया भंगा, ४.सम्मामिच्छत्ते ततिय-चउत्था।
प्र. दं.१ भंते ! क्या नैरयिक जीव मे आयुकर्म बांधा था, बांधता
है और बांधेगा यावत् बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं
बांधेगा? उ. गौतम ! चारों भंग पाये जाते हैं।
इसी प्रकार सभी स्थानों में नैरयिक के चार भंग कहने चाहिए, विशेष-कृष्णलेश्यी एवं कृष्णपाक्षिक नैरयिक जीव में पहला तथा तीसरा भंग तथा सम्यग्मिथ्यादृष्टि में तृतीय और चतुर्थ भंग होते हैं।