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कर्म अध्ययन उ. गोयमा !जहेव पावकम्मबंधपरूवणे तहेव णिरवसेसं
जाव वेमाणिए। प. दं.१.(५) अचरिमेणं भंते ! णेरइए आउयं कम्म
किं बंधी,बंधइ, बंधिस्सइ जाव
बंधी,न बंधइ, न बंधिस्सइ? उ. गोयमा ! पढम-तइया भंगा।
एवं सव्वपएसुवि, णेरइयाणं पढम-तइया भंगा,
णवर-सम्मामिच्छत्ते तइओ भंगो, दं.२-११.एवं जाव थणियकुमाराणं। दं. १२-१३-१६. पुढविक्काइय-आउक्काइय, वणस्सइ काइयाणं तेउलेस्साए तइओ भंगो। सेसेसुपएसु सव्वत्थ पढम-तइया भंगा, दं. १४-१५. तेउकाइय वाउक्काइयाणं सव्वत्थ पढम-तइया भंगा, दं.१७-१९. बेइंदिय, तेइंदिय, चउरिदियाणं एवं चेव।
णवर-सम्मत्ते, ओहिणाणे, आभिणिबोहियणाणे, सुयणाणे एएसु चउसु वि ठाणेसु तइओ भंगो। दं. २०. पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं सम्मामिच्छत्ते तइओ भंगो। सेस पएसुसव्वत्थ पढम-तइया भंगा। दं.२१. मणुस्साणं सम्मामिच्छत्ते अवेयए अकसाइम्मि य तइओभंगो। अलेस्स-केवलणाण-अजोगी यण पुच्छिति।
- १११५ ) उ. गौतम ! जिस प्रकार पापकर्म बंध के विषय में कहा, उसी
प्रकार यहाँ भी समस्त कथन वैमानिकों तक करना चाहिए। प्र. दं.१.(५) भंते ! क्या अचरम नैरयिक ने आयुकर्म बांधा था,
बांधता है और बांधेगा यावत्
बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा? उ. गौतम ! प्रथम और तृतीय भंग जानना चाहिए।
इसी प्रकार नैरयिकों के बहुवचन-सम्बन्धी समस्त पदों में पहला और तीसरा भंग कहना चाहिए। विशेष-सम्यग्मिथ्यात्व में केवल तीसरा भंग कहना चाहिए। दं.२-११. इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक कहना चाहिए। दं.१२,१३,१६. तेजोलेश्या वाले पृथ्वीकायिक, अप्कायिक
और वनस्पतिकायिक इन सबमें तृतीय भंग होता है। शेष पदों में सर्वत्र प्रथम और तृतीय भंग कहना चाहिए। दं. १४-१५. तेजस्कायिक और वायुकायिक के सभी स्थानों में प्रथम और तृतीय भंग कहना चाहिए। दं. १७-१९. द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए। विशेष-सम्यक्त्व, अवधिज्ञान, आभिनिबोधिकज्ञान और श्रुतज्ञान इन चार स्थानों में केवल तृतीय भंग कहना चाहिए। दं. २०. सम्यग्मिथ्यात्व वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में तीसरा भंग पाया जाता है। शेष पदों में सर्वत्र प्रथम और तृतीय भंग जानना चाहिए। दं. २१. सम्यग्मिथ्यात्व, अवेदक और अकषायी मनुष्यों में तृतीय भंग कहना चाहिए। अलेश्य, केवलज्ञानी और अयोगी के विषय में प्रश्न नहीं करना चाहिए। शेष पदों में सभी स्थानों में प्रथम और तृतीय भंग होते हैं। दं. २२-२४. वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों का कथन नैरयिकों के समान समझना चाहिए। (६-८) नाम, गोत्र और अन्तराय, इन तीन कमों के बंध
भंगों का कथन ज्ञानावरणीय-कर्मबन्ध के समान करना चाहिए। ४३. परंपरोपपन्नक चौबीस दंडकों में पाप कर्मादि के बंध भंगप्र. भंते ! क्या परम्परोपपन्नक नैरयिक ने पापकर्म
बांधा था, बांधता है और बांधेगा यावत्
बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा? उ. गौतम ! किसी ने पापकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा, किसी ने पापकर्म बांधा था, बांधता है और नहीं बांधेगा।
यह प्रथम द्वितीय भंग है। जिस प्रकार प्रथम उद्देशक कहा उसी प्रकार परम्परोपपन्नक उद्देशक भी कहना चाहिए। नैरयिक आदि में भी नौ दण्डक सहित कहना चाहिए। आठ कर्मप्रकृतियों के लिए भी जिस कर्म की जो वक्तव्यता कही है, उसके लिए उसको अनाकारोपयुक्त वैमानिकों तक अन्यूनाधिक रूप से (जैसी की तैसी) कहनी चाहिए।
सेस पएसुसव्वत्थ पढम-तइया भंगा। दं. २२-२४. वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा णेरइया। (६) णामं, (७) गोयं, (८) अंतराइयं च जहेव णाणा
वरणिज्जं तहेव णिरवसेसं। -विया. स. २६, उ.११, सु. ५-१९ ४३. परंपरोववण्णग चउवीसदंडएस पावकम्माइण बंधभंगाप. परंपरोववण्णए णं भंते !णेरइए पावं कम्म
किं बंधी,बंधइ, बंधिस्सइ जाव
बंधी,न बंधइ,न बंधिस्सइ? उ. गोयमा ! अत्थेगइए बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ अत्थेगइए बंधी, बंधइ, न बंधिस्सइ।
पढम बितिया भंगा। एवं जहेव पढमो उद्देसओ तहेव परंपरोववण्णएहिं वि उद्देसओ भाणियव्यो। णेरइयाइओ तहेवणवदंडगसहिओ। अट्ठण्ह वि कम्मप्पगडीणं जा जस्स कम्मस्स वत्तव्वया सा तस्स अहीणमइरित्ता णेयव्वा जाव वेमाणिया अणागारोवउत्ता। -विया.स.२६, उ.३,सु.१-२