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२. अत्थेगइ बंधी, बंधइ,ण बंधिस्सइ, ३. अत्थेगइए बंधी,ण बंधइ,बंधिस्सइ।
तिण्णिभंगा चरिम भंगविहूणा। प. सलेस्से णं भंते ! अचरिमे मणूसे पावकम्म
किं बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ जाव
बंधी,न बंधइ,न बंधिस्सइ? उ. गोयमा ! एवं चेव तिण्णि भंगा चरिमविहूणा भाणियव्वा
एवं जहेव पढमुद्देसे। णवर-जेसु तत्थ वीससु चत्तारि भंगा तेसु इह आदिल्ला तिण्णि भंगा भाणियव्वा चरिमभंगवज्जा। अलेस्से, केवलणाणी य अजोगी य एए तिण्णि वि ण पुच्छिज्जंति, सेसं तहेव दं. २२-२४ वाणमंतर, जोइसिय, वेमाणिया जहा णेरइए।
-विया. स.२६, उ.११, सु.१-४ ४०. चउवीसदंडएसु एक्कारसठाणेहिं अट्ठ कम्म बंध भंगाप. १. जीवेणं भंते ! णाणावरणिज्जं कम्म
किं बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ जाव
बंधी,न बंधइ,न बंधिस्सइ? उ. गोयमा ! एवं जहेव पावकम्मस्स वत्तव्वया भणिया तहेव
णाणावरणिज्जस्स विभाणियव्वा। णवरं-१. जीवपए, द. २१. मणुस्सपए व, ९. सकसायिम्मि जाव लोभकसायिम्मि य पढम-बिइया भंगा। अवसेसं-२-८,१०,११,तं चेव जाव दं.१-२०/२२, २३,२४ वेमाणिया। २. एवं दरिसणावरणिज्जेण वि चउवीसदंडएसु दंडगो
भाणियव्यो निरवसेसं। प. ३.१ जीवेणं भंते ! वेयणिज्ज कम्म
किं बंधी,बंधइ, बंधिस्सइ जाव
बंधी,न बंधइ,न बंधिस्सइ? । उ. गोयमा !१.अत्थेगइए बंधी,बंधइ, बंधिस्सइ,
द्रव्यानुयोग-(२) २. किसी (मनुष्य) ने बांधा था, बांधता है और नहीं बांधेगा, ३. किसी (मनुष्य) ने बांधा था, नहीं बांधता है और बांधेगा।
चौथा भंग छोड़कर ये तीन भंग होते हैं। प्र. भंते ! क्या सलेश्य अचरम मनुष्य ने पापकर्म बांधा था,
बांधता है और बांधेगा यावत् बांधा था, नहीं बांधता है और
नहीं बांधेगा? उ. गौतम ! पूर्ववत् अन्तिम भंग को छोड़ कर शेष तीन भंग प्रथम
उद्देशक के समान यहाँ कहने चाहिए। विशेष-जिन बीस पदों में यहाँ चार भंग कहे हैं उन में अन्तिम भंग को छोड़ कर आदि के तीन भंग यहाँ कहने चाहिए। यहाँ अलेश्य, केवलज्ञानी और अयोगी के विषय में प्रश्न नहीं करना चाहिए। शेष स्थानों में पूर्ववत् जानना चाहिए। दं. २२-२४ वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के
विषय में नैरयिक के समान कथन करना चाहिए। ४०. चौबीस दंडकों में ग्यारह स्थानों द्वारा आठ कर्मों के बंध भंगप्र. १.भंते ! क्या जीव ने ज्ञानावरणीय कर्म बांधा था, बांधता है
और बांधेगा यावत् बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं
बांधेगा? उ. गौतम ! जिस प्रकार पापकर्म का कथन कहा है, उसी प्रकार
ज्ञानावरणीय कर्म का भी कथन करना चाहिए। विशेष-१.जीवपद और दं.२१ मनुष्यपद में, ९. सकषायी से लोभकषायी तक में प्रथम और द्वितीय भंग ही कहना चाहिए। शेष सब कथन वैमानिक तक पूर्ववत् कहना चाहिए।
२. ज्ञानावरणीय कर्म के समान दर्शनावरणीय कर्म के विषय
में भी समग्र दण्डक कहने चाहिए। प्र. ३. भंते ! क्या जीव ने वेदनीयकर्म बांधा था, बांधता है और . बांधेगा यावत् बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा?
२. अत्थेगइएबंधी,बंधइ, न बंधिस्सइ, ३. अत्थेगइए बंधी,न बंधइ, न बंधिस्सइ।
तइय विहूणा तिय भंगा। २. सलेस्से वि एवं चेव तइयविहूणा तिय भंगा,
उ. गौतम ! १. किसी जीव ने (वेदनीय कर्म) बांधा था, बांधता
है और बांधेगा। २. (किसी जीव ने) बांधा था, बांधता है और नहीं बांधेगा। ३. (किसी जीव ने) बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं
बांधेगा। तीसरा भंग छोड़कर तीन भंग कहने चाहिए। २. सलेश्य जीव में भी तृतीय भंग को छोड़ कर शेष तीन
भंग पाये जाते हैं। कृष्णलेश्या यावत् पद्मलेश्या वाले जीव में पहला और दूसरा भंग पाया जाता है। शुक्ललेश्या वाले जीव में तृतीय भंग को छोड़ शेष तीन भंग पाये जाते हैं। अलेश्यजीव में अन्तिम (चतुर्थ) भंग पाया जाता है।
कण्हलेस्से जाव पम्हलेस्से पढम-बिइया भंगा,
सुक्कलेस्से तइयविहूणा तिय भंगा,
अलेस्से चरिमो भंगो।