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कर्म अध्ययन
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एवं मइअन्नाणीणं, सुयअन्नाणीणं, विभंगनाणीण वि।
xx ७. आहारसन्नोवउत्ताई पडुच्च
आहारसण्णोवउत्ताणं जाव परिग्गहसण्णोवउत्ताणं पढम-बितिया भंगा। नो सण्णोवउत्ताणं चत्तारि भंगा। xx
xx ८. सवेयगं-अवेयगं पडुच्च
सवेयगाणं पढम-बितिया भंगा। एवं इत्यिवेयग-पुरिसवेयग-नपुंसगवेयगाण वि।
इसी प्रकार मति-अज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी और विभंगज्ञानी में भी पहला और दूसरा भंग जानना चाहिए।
xx ७. आहार संज्ञोपयुक्तादि की अपेक्षा
आहार-संज्ञोपयुक्त यावत् परिग्रह-संज्ञोपयुक्त जीवों में पहला और दूसरा भंग पाया जाता है। नो संज्ञोपयुक्त जीवों में चारों भंग पाये जाते हैं। xxxx
xx ८. सवेदक-अवेदक की अपेक्षा
सवेदक जीवों में पहला और दूसरा भंग पाया जाता है। इसी प्रकार स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी और नपुंसकवेदी में भी प्रथम और द्वितीय भंग पाये जाते हैं। अवेदक जीवों में चारों भंग पाये जाते हैं।
अवेयगाणं चत्तारि भंगा। xx सकसाई-अकसाई पडुच्चसकसाईणं चत्तारि भंगा। कोहकसाइणं पढम-बितिया भंगा। एवं माणकसाइस्स वि,मायाकसाइस्स वि।
लोभकसाइस्स चत्तारि भंगा। प अकसाई णं भंते ! जीवे पावकम
किं बंधी,बंधइ, बंधिस्सइ जाव
बंधी,न बंधइ,न बंधिस्सइ? उ. गोयमा ! अत्यंगइए बंधी, न बंधइ, बंधिस्सइ।
अत्थेगइए बंधी,न बंधइ, न बंधिस्सइ।
सकषायी-अकषायी की अपेक्षासकषायी जीवों में चारों भंग पाये जाते हैं। क्रोधकषायी जीवों में पहले और दूसरे भंग पाये जाते हैं। इसी प्रकार मानकषायी तथा मायाकषायी जीवों में भी ये दोनों भंग पाये जाते हैं।
लोभकषायी जीवों में चारों भंग पाये जाते हैं। प्र. भंते ! क्या अकषायी जीव ने पापकर्म बांधा था, बांधता है
और बांधेगा यावत् बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा? उ. गौतम ! किसी ने पापकर्म बांधा था, नहीं बांधता है और
बांधेगा तथा किसी जीव ने बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा। यह तीसरा चौथा भंग है।
xx १०. सयोगी-अयोगी की अपेक्षा
सयोगी जीवों में चारों भंग पाये जाते हैं। इसी प्रकार मनोयोगी, वचनयोगी और काययोगी जीव में चारों भंग पाये जाते हैं। अयोगी जीव में अन्तिम एक भंग पाया जाता है।
xx ११. साकार-अनाकारोपयुक्त की अपेक्षा
साकारोपयुक्त जीव में चारों ही भंग पाये जाते हैं। अनाकारोपयुक्त जीव में भी चारों भंग पाये जाते हैं।
तइय-चउत्था भंगा।
xx १०. सजोगिं-अजोगिं पडुच्च
सजोगिस्स चत्तारि भंगा। एवं मणजोगिस्स वि, वइजोगिस्स वि कायजोगिस्स वि।
अजोगिस्स चरिमो भंगो।
xx ११. सागार-अणागारोवउत्तं पडुच्च
सागारोवउत्ते चत्तारि भंगा। अणागारोवउत्ते वि चत्तारि भंगा।
_ -विया. स. २६, उ.१,सु. ४-३३ ३७. चउवीस दंडएसु एक्कारसठाणेहिं पावकम्मं बंध भंगाप. दं.१.नेरइए णं भंते ! पावं कम्म
किं बंधी,बंधइ, बंधिस्सइ जाव बंधी,न बंधइ, न बंधिस्सइ?
३७. चौबीस दंडकों में ग्यारह स्थानों द्वारा पापकर्म बंध के भंगप्र. द.१. भंते ! क्या नैरयिक जीव ने पापकर्म बांधा था, बांधता
है और बांधेगा यावत् बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा?