________________
११०६
उ. गोयमा ! अत्थेगइए बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ जाव अत्थेiइए बंधी, न बंध, न बंधिस्स ।
एवं चत्तारि भंगा।
पं. कण्हलेस्से णं भंते! जीवे पावं कम्मंकिं बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ जावबंधी, न बंध, न बंधिस्सइ ?
उ. गोयमा ! अत्थेगइए बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ,
अत्येगइए बंधी, न बंध, न बघिस्सर ।
एवं जाव पम्हलेस्से सव्वत्थ पढम-बिइया भंगा। सुखालेस्से जहा सलेस्से तहेव चत्तारि भंगा।
प. अलेस्से णं भंते! जीवे पावं कम्मंकिं बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ जावबंधी, न बंधइ, न बंधिस्सइ ?
उ. गोयमा ! बंधी, न बंधइ, न बंधिस्सइ ।
एगो चउत्यो भंगो।
XX
XX
३. कण्ह मुक्कपक्खियं पहुच्चप. कण्हपक्खिए णं भंते ! जीवे पावं कम्मंकिं बंधी, बंधइ, बंधिस्सइ जावबंधी, न बंध, न बंधिस्सड ?
उ. गोयमा ! पढम-बितिया भंगा।
प. सुक्कपक्खिए णं भंते ! जीवे पावं कम्म
किं बंधी, बंध, बंधिस्स जाय
बंधी, न बंध, न बंधिस्सइ ?
उ. गोयमा ! चत्तारि भंगा भाणियव्वा ।
XX
XX
४. सम्मदिट्ठी आई पडुच्चसम्मदिट्ठीणं चत्तारि भंगा । मिच्छादिट्ठीणं पदम-बितिया भंगा। सम्मामिच्छदिट्ठीणं एवं चैव
XX
XX
६. अन्नाणि पडुच्च
-
भंगा।
केवलनाणीणं चरिमो भंगो जहा अलेस्साणं।
XX
XX
५. नाणिं पडुच्चनाणीणं चतारि भंगा।
आभिणिबोहियनाणीणं जाव मणपज्जवनाणीणं चत्तारि
अन्नाणीणं पढम-बितिया भंगा।
XX
XX
XX
XX
द्रव्यानुयोग - (२)
उ. गौतम ! किसी सलेश्य जीव ने पापकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा यावत् किसी जीव ने बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा।
ये चारों भंग जानने चाहिये।
प्र. भंते ! क्या कृष्णलेश्यी जीव ने पापकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा यावत् बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा ?
उ. गौतम ! कोई कृष्णलेश्वी जीव ने पापकर्म बाँधा था, बांधता है और बांधेगा तथा किसी ने बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा। यह प्रथम द्वितीय भंग है)
इसी प्रकार पद्मलेश्या वाले जीव तक सर्वत्र प्रथम और द्वितीय भंग जानना चाहिए। सलेश्य जीव के समान शुक्ललेश्यी में चारों भंग कहने चाहिए।
प्र. भंते! अलेश्य जीव ने क्या पापकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा यावत् बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा ?
उ. गौतम ! अलेश्य जीव ने पापकर्म बांधा था, नहीं बांधता है। और नहीं बांधेगा।
यह चौथा भंग है।
XX
XX
३. कृष्ण शुक्लपाक्षिक की अपेक्षा
प्र. भंते ! क्या कृष्णपाक्षिक जीव ने पापकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा यावत् बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा ?
उ. गौतम ! पहला और दूसरा भंग जानना चाहिए।
प्र. भंते! क्या शुक्लपाक्षिक जीव ने पापकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा यावत् बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा ?
उ. गौतम ! इसके लिए चारों ही भंग जानने चाहिए ।
XX
XX
४. सम्यग्दृष्टि आदि की अपेक्षा
XX
५. ज्ञानी की अपेक्षा -
XX
सम्यग्दृष्टि जीवों में चारों भंग जानना चाहिए। मिथ्यादृष्टि जीवों में पहला और दूसरा भंग जानना चाहिए। सम्यग- मिध्यादृष्टि जीवों में भी इसी प्रकार पहला और दूसरा भंग जानना चाहिए।
XX
XX
XX
XX
ज्ञानी जीवों में चारों भंग पाये जाते हैं।
आभिनिबोधिक ज्ञानी से मनः पर्यवज्ञानी जीवों तक में भी चारों ही भंग जानने चाहिए।
केवलज्ञानी में अलेश्य के समान अन्तिम भंग जानना चाहिये।
XX
XX
६. अज्ञानी की अपेक्षा
अज्ञानी जीवों में पहला और दूसरा भंग पाया जाता है।