________________
१०१४
उव्विग्गा, उप्पुया उस्सुया असरणा अडवी वासं उवेंति बालसयसंकणिज्जं,
अयसकरा तक्करा भयंकरा “कस्स हरामो" त्ति अज्जदव्वं इइ सामत्थं करेंति गुज्झं, बहुयस्स जणस्स कज्जकरणेसु विग्घकरा, मत्त-पमत्त-पसुत्त-वीसत्थ-छिद्दघाई,
वसणब्भुदएसु हरणबुद्धी,
विगव्व रुहिरमहिया परंति,
नरवइमज्जायमइक्कंता सज्जण-जण-दुगंछिया, सकम्मेहिं पावकम्मकारी असुभपरिणया य दुक्ख-भागी,
निच्चाविल-दुहमनिव्वुइमणा इह लोगे चेव किलिस्संता परदव्वहरा नरा वसणसयसमावन्ना।
-पण्ह. आ.३, सु. ६८-७० ३७. अदिण्णादाणस्स दुपरिणाम
तहेव केइ परस्स दव्वं गवेसमाणा गहिया य हया य बद्धरुद्धा यतुरियं अइ घाडिया, पुरवरं समप्पिया,
द्रव्यानुयोग-(१) वे निरन्तर उद्विग्न-चिन्तित-घबराए हुए रहते हैं, इधर उधर सदैव भागते-रहते हैं, सदैव उत्कंठित रहते हैं, उनका कोई शरण रक्षक नहीं होता, एक स्थान पर नहीं टिकने के कारण सैकड़ों सो-अजगरों, भेड़ियों, सिंह, व्याघ्र आदि के भय से व्याप्त जंगलों में रहते हैं। वे अकीर्तिकर भयंकर तस्कर ऐसी गुप्त मंत्रणा करते रहते हैं कि 'आज किसके द्रव्य का अपहरण करें।' वे बहुत-से मनुष्यों के कार्य करने में विघ्नकारी होते हैं। वे मत्त-नशा के कारण बेभान, प्रमत्त, बेसुध सोए हुए और विश्वास रखने वाले लोगों का अवसर देखकर घात कर देते हैं। वे व्यसन-संकट-विपत्ति और अभ्युदय-हर्ष आदि के प्रसंगों में चोरी करने की बुद्धि वाले होते हैं। वृक-भेड़ियों की तरह रुधिर पिपासु होकर इधर-उधर भटकते रहते हैं। वे राजाओं-राज्यशासन की मर्यादाओं का अतिक्रमण करने वाले, सज्जन पुरुषों द्वारा निन्दित एवं पापकर्म करने वाले-चोर अपनी ही करतूतों के कारण अशुभ परिणाम वाले और दुःख के भागी होते हैं। वे सदैव मलिन, दुःखमय अशान्तियुक्त चित्त वाले, दूसरे के द्रव्य को हरण करने वाले, इसी भव में सैकड़ों कष्टों से घिर कर कलेश
पाते हैं। ३७. अदत्तादान के दुष्परिणाम
इसी प्रकार दूसरे के धन की खोज में फिरते हुए कई चोर (आरक्षकों द्वारा) पकड़े जाते हैं और उन्हें मारा-पीटा जाता है, बन्धनों से बांधा जाता है और कारागार में कैद किया जाता है। उन्हें तेजी से खूब घुमाया जाता है, बड़े नगरों में पहुंचा कर उन्हें रक्षक आदि अधिकारियों को सौंप दिया जाता है। तत्पश्चात् चोरों को पकड़ने वाले, चौकीदार, गुप्तचर चाटुकार-उन्हें कारागार में लूंस देते हैं। कपड़े के चाबुकों के प्रहारों से, निर्दयी आरक्षकों के तीक्ष्ण एवं कठोर वचनों से तथा गर्दन पकड़कर धक्के देने से उनका चित्त खेदखिन्न होता है। उन चोरों को नरकावास के समान कारागार में जबर्दस्ती घुसेड़ दिया जाता है। वहां भी वे कारागार के अधिकारियों द्वारा विविध प्रकार के प्रहारों, अनेक प्रकार की यातनाओं, तर्जनाओं, कटुवचनों एवं भयोत्पादक वचनों से भयभीत होकर दुखी बने रहते हैं। उनके पहनने-ओढ़ने के वस्त्र छीन लिये जाते हैं। वहां उनको मैले-कुचैले फटे वस्त्र पहनने को मिलते हैं। बारंबार उन कैदियों (चोरों) से लांच-रिश्वत मांगने में तत्पर कारागार के रक्षकों द्वारा अनेक प्रकार के दुःखोत्पादक बन्धनों में बांध दिये जाते हैं। प्र. वे बंधन कौन से हैं ? उ. (वे बंधन इस प्रकार के हैं-) हडि खोड़ा या काष्ठमय बेड़ी,
जिसमें चोर का एक पांव फंसा दिया जाता है, लोहमय बेड़ी, बालों से बनी हुई रस्सी, जिसके किनारे पर रस्सी का फंदा बांधा जाता है ऐसा एक विशेष प्रकार का काष्ठ, चर्मनिर्मित मोटे रस्से, लोहे की सांकल, हथकड़ी, चमड़े का पट्टा, पैर
चोरग्गह-चार-भड-चाडुकराणं तेहि य कप्पडप्पहार- निद्दयआरक्खिय-खर-फरुस-वयण तज्जण- गलच्छल्लुछल्लणाहिं विमणा,
चारगवसहिं पवेसिया निरय वसहि सरिसं।
तत्थवि गोमिय-प्पहार-दूमण-निब्भच्छण-कडुयवयण-भेसणग भयाभिभूया, अक्खित्तनियंसणा मलिण इंडिखंड-वसणा, उक्कोडा,
लंच-पास-मग्गण परायणेहिं दुक्खसमुदीरणेहिं गोम्मियभडेहिं विविहेहिं बंधणेहिं बझंति।
प. किं ते ? उ. हडि-निगड-बालरज्जुय-कुदंडग-वरत्त
हत्थंदुय-बज्झपट्ट-दामक-निक्कोडणेहिं
लोहसंकल