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कर्म अध्ययन
-११०१)
प. ३.(क) दंसणमोहणिज्जे णं भंते ! कम्मे कइ परीसहा
समोयरंति? उ. गोयमा ! एगे दंसण परीसहे समोयरंति। प. (ख) चरित्तमोहणिज्जे णं भंते ! कम्मे कइ परीसहा
समोयरंति? उ. गोयमा ! सत्त परीसहा समोयरंति,तं जहा
गाहा-१. अरइ, २. अचेल, ३. इत्थी, ४. निसीहिया, ५.जायणा, य ६.अक्कोसे, ७.सक्कारपरक्कारे
चरित्तमोहम्मि सत्तेते॥ प. ४.अंतराइएणं भंते !कम्मे कइ परीसहा समोयरंति?
प्र. ३. (क) भंते ! दर्शन-मोहनीय कर्म में कितने परीषहों का
समवतार होता है? उ. गौतम ! एक दर्शनपरीषह का समवतार होता है। प्र. (ख) भंते ! चारित्रमोहनीय कर्म में कितने परीषहों का
समवतार होता है? उ. गौतम ! सात परीषहों का समवतार होता है, यथा
गाथार्थ-१.अरतिपरीषह, २. अचेलपरीषह, ३.स्त्रीपरीषह, ४. निषधापरीषह, ५. याचनापरीषह, ६. आक्रोशपरीषह, ७. सत्कार-पुरस्कारपरीषह।
ये सात परीषह चारित्रमोहनीय कर्म से होते हैं। प्र. ४. भंते ! अन्तरायकर्म में कितने परीषहों का समवतार
होता है? उ. गौतम ! एक अलाभपरीषह का समवतार होता है।
उ. गोयमा ! एगे अलाभपरीसहे समोयरति।
--विया.स.८, उ.८,सु. २४-२९ ३०. अट्ठ-सत्त-छ-एक्कविहबंधगे अबंधगे य परीसहा
प. सत्तविहबंधगस्स णं भंते ! कइ परीसहा पण्णता?
उ. गोयमा ! बावीसं परीसहा पण्णत्ता,
बीसं पुण वेदेइ जं समयं सीयपरीसहं वेदेइ, णो तं समयं उसिणपरीसहं
वेदेइ।
जं समयं उसिणपरीसहं वेदेइ, णो तं समय सीयपरीसह वेदेइ। जं समयं चरियापरीसहं वेदेइ, णो तं समय निसीहियापरीसहं वेदेइ। जं समयं निसीहियापरीसहं वेदेइ, णो तं समयं चरियापरीसहं वेदेइ। एवं अट्ठविहबंधगस्स वि,
प. छव्विहबंधगस्स णं भंते ! सरागछउमत्थस्स कइ परीसहा
पण्णता? उ. गोयमा ! चोद्दस परीसहा पण्णत्ता, बारस पुण वेदेइ,
३०. आठ-सात-छः एक विध बंधक और अबंधक में परीषहप्र. भंते ! सात प्रकार के कर्मों को बांधने वाले जीव के कितने
परीषह कहे गए हैं? उ. गौतम ! बावीस परीषह कहे गए हैं।
परन्तु वह जीव एक साथ बीस परीषहों का वेदन करता है, जिस समय वह शीतपरीषह वेदता है, उस समय उष्णपरीषह
का वेदन नहीं करता, जिस समय उष्णपरीषह का वेदन करता है, उस समय शीतपरीषह का वेदन नहीं करता। जिस समय चर्यापरीषह का वेदन करता है, उस समय निषद्यापरीषह का वेदन नहीं करता। जिस समय निषद्यापरीषह का वेदन करता है, उस समय चर्यापरीषह का वेदन नहीं करता। इसी प्रकार आठ प्रकार के कर्म बांधने वाले के विषय में भी
जानना चाहिए। प्र. भंते ! छह प्रकार के कर्म बांधने वाले सराग छद्मस्थ जीव के
कितने परीषह कहे गए हैं? उ. गौतम ! चौदह परीषह कहे गए हैं, किन्तु वह एक साथ बारह
परीषह वेदता है। जिस समय शीतपरीषह वेदता है, उस समय उष्णपरीषह का वेदन नहीं करता, जिस समय उष्णपरीषह का वेदन करता है, उस समय शीतपरीषह का वेदन नहीं करता। जिस समय चर्यापरीषह का वेदन करता है, उस समय शय्यापरीषह का वेदन नहीं करता, जिस समय शय्यापरीषह का वेदन करता है, उस समय
चर्यापरीषह का वेदन नहीं करता। प्र. भंते ! एकविधबन्धक वीतराग-छद्मस्थ जीव के कितने
परीषह कहे गए हैं? उ. गौतम ! जिस प्रकार षड्विधबन्धक के विषय में कहा, उसी
प्रकार एकविधबन्धक के विषय में भी समझना चाहिए।
जं समय सीयपरीसहं वेदेइ, णो तं समयं उसिणपरीसह वेदेइ। जं समयं उसिणपरीसहं वेदेइ, णो तं समय सीयपरीसह
वेदेइ।
जं समयं चरियापरीसहं वेदेइ,णो तं समयं सेज्जापरीसहं
वेदेइ।
जं समयं सेज्जापरीसहं वेदेइ, णो तं समयं चरियापरीसह
वेदेइ। प. एगविहबंधगस्स णं भंते ! वीयरागछउमत्थस्स कइ
परीसहा पण्णता? उ. गोयमा ! एवं चेव जहेव छव्विहबंधगस्स।