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१५. पराधायनाम १७. पसत्यविहायोगइनाम, १८ तसनामं
२०. पज्जत्तनाम,
१६. उस्सासनामं,
१९. बायरनामं,
२१. पत्तेयसरीरनाम
२२. थिराथिराणं दोन्हं अण्णयरं एगनामं णिबंधइ, २३. सुभासुभाणं दोन्हं अण्णयरं एगनामं णिबंधइ, २४. सुभगणामं, २५. सुस्सरणामं
२६. आएज्ज अणाएज्जणामाणं दोन्हं अण्णयरं एगनाम णिबंधड़,
२८. निम्माणनामं।
२७. जसोकितिनामं
"
एवं चैव नेरया वि, णाणतं
"
१. अप्पसत्थविहायगइनामं, २. हुंडसंठाणनामं,
३. अथिरनामं,
४. दुब्भगनामं,
५. असुभनाम,
-सम. सम. २८, सु. ५
७. अणादिज्जनामं, ९. निम्माणनाम | जीवे णं पसत्यज्झवसाणजुत्ते भविए सम्मविट्ठी तित्थकरनामसहियाओ णामस्स णियमा एगूणतीसं उत्तरपगडीओ णिबंधित्ता वेमाणिएसु देवेसु देवत्ताए उववज्जइ । -सम. सम. २९, सु. ९
६. दुस्सरनाम, ८. अजसोकित्तीनामं,
२९. चउसु कम्मपयडी परीसहाणं समोयारं
प. कइ णं भंते! परीसहा पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! बावीस परीसहा पण्णत्ता, तं जहा१. दिगिंछा परीसहे जाव २२ दंसण परीसहे ।
प. एए णं भंते! बावीस परीसहा कइसु कम्मपयडीसु समोयरंति ?
उ. गोयमा ! चउसु कम्मपयडीसु समोयरति तं जहा१. नाणावरणिजे, ३. मोहणिजे,
२. वेयणिज्जे,
४. अंतराइए।
प. १. नाणावरणिजे णं भंते । कम्मे कह परीसहा समोयरति ?
उ. गोयमा ! दो परीसहा समोयरंति, तं जहा
-
१. पण्णापरीसहे य, २. अण्णाणपरीसहे य । प. २. वैयणिज्जे णं भंते! कम्मे कई परीसहा समोयरति ?
"
उ. गोयमा ! एक्कारस परीसहा समोयरति तं जहागाहा १-५ पंचेव आणुपुवी,
६. चरिया, ७. सेज्जा, ८. वहे य, ९. रोगे य
१०. तणफास, ११. जल्लमेव य । एक्कारस वेयणिज्जम्मि ॥
द्रव्यानुयोग - (२)
१६. उच्छ्वासनाम,
१५. पराघातनाम,
१७. प्रशस्त विहायोगतिनाम, १८ त्रसनाम,
२०. पर्याप्तनाम
१९. बादरनाम,
२१. प्रत्येक शरीरनाम,
२२. स्थिर अस्थिर नामों में से कोई एक बन्धकर्ता है। २३. शुभ-अशुभनामों में से कोई एक बन्धकर्ता है। २४. सुभगनाम, २५. सुस्वरनाम,
२६. आदेय- अनादेय नामों में से कोई एक बन्धकर्ता है।
२७. यशकीर्तिनाम,
२८. निर्माणनाम,
इसी प्रकार नैरयिकों की भी उत्तर- प्रकृतियां जाननी चाहिए, किन्तु इतनी मित्रता है कि
१. अप्रशस्त विहायोगतिनाम, २. हुडकसंस्थाननाम,
३. अस्थिरनाम,
४. दुर्भगनाम,
५. अशुभनाम,
७. अनादेयनाम,
९. निर्माण नाम,
प्रशस्त अध्यवसाय (परिणाम) से युक्त सम्यग्दृष्टि भव्य जीव नाम कर्म की पूर्वोक्त अट्ठाईस प्रकृतियों के साथ तीर्थंकर नामकर्म सहित उनतीस प्रकृतियों को बांधकर (नियमतः) वैमानिक देवों में देवरूप से उत्पन्न होता है।
६. दुःस्वरनाम, ८. अयशस्कीर्तिनाम,
२९. चार कर्मप्रकृतियों में परीषहों का समवतारप्र. भंते ! परीषह कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
उ. गौतम ! बावीस परीषह कहे गए हैं, यथा
१. क्षुधा परीषह यावत् २२ दर्शन परीषह ।
प्र. भंते ! इन बावीस परीषहों का किन कर्मप्रकृतियों में समवतार ( समावेश) हो जाता है ?
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उ. गौतम ! चार कर्मप्रकृतियों में समवतार होता है, यथा१. ज्ञानावरणीय,
२. वेदनीय,
४. अन्तराय।
३. मोहनीय,
प्र. १. भंते! ज्ञानावरणीय कर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है ?
उ. गौतम ! दो परीषहों का समवतार होता है, यथा
१. प्रज्ञापरीषह,
२. अज्ञानपरीषह ।
प्र. २. भंते ! वेदनीय कर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है?
उ. गौतम ! ग्यारह परीषहों का समवतार होता है,
, यथागाथार्थ - १-५ अनुक्रम से पहले के पांच परीषह
( १. क्षुधापरीषह, २. पिपासापरीषह, ३. शीतपरीषह,
४. उष्णपरीषह और ५. दंश - मशकपरीषह ) ६. चर्यापरीषह, ७. शय्या परीषह, ८. वधपरीषह, ९. रोगपरीषह,
१०. तृणस्पर्शपरीषह, ११. जल्ल (मल) परीषह ।
ये ग्यारह परीषह वेदनीय कर्म से होते हैं।