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द्रव्यानुयोग-(२) (८) अन्तराय कर्म दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. वर्तमान में प्राप्त वस्तु का वियोग करने वाला, २. भविष्य में होने वाले लाभ के मार्ग को रोकने वाला।
प्र. भंते ! अन्तरायकर्म कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह पांच प्रकार का कहा गया है, यथा१. दानान्तराय,
२. लाभान्तराय, ३. भोगान्तराय, ४. उपभोगान्तराय,
५. वीर्यान्तराय। २५. संयुक्त कर्मों की उत्तर प्रकृतियाँ१. दर्शनावरण और नाम-इन दोनों कर्मों की इक्यावन
(उत्तर-प्रकृतियाँ) कही गई हैं। २. (क) ज्ञानावरणीय, नाम और अन्तराय-इन तीन कर्म
प्रकृतियों की बावन उत्तर-प्रकृतियाँ कही गई हैं।
प. (८)अंतराइए कम्मे दुविहे पण्णत्ते,तं जहा
१. पडुपनविणासिए चेव, २. पिहेतिय आगामिपहे।
-ठाणं. अ.२,उ.४,सु.११६(4) प. अंतराइएणं भंते ! कम्मे कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते,तं जहा
१. दाणंतराइए, २. लाभंतराइए, ३. भोगंतराइए, ४. उवभोगंतराइए,
५. वीरियंतराइए।' -पण्ण. प.२३, उ.२, सु. १६९६ २५. संजुत्तकम्माणं उतरपगडीओ१. सणावरण-नामाणं दोण्हं कम्माणं एकावणं
उत्तरपगडीओ पण्णत्ताओ। -सम.सम.५१, सु.५ २. (क) नाणावरणिज्जस्स नामस्स अंतराइयस्स एएसि णं तिहं कम्मपयडीणं बावण्णं उत्तरपगडीओ पण्णत्ताओ।
__ -सम. सम.५२,सु.४ (ख) दसणावरणिज्ज-णामाउयाणं तिण्हं कम्मपगडीणं
पणपण्णं उत्तरपगडीओ पण्णत्तओ। -सम. सम. ५५, सु. ६ ३. नाणावरणिज्जस्स मोहणिज्जस्स गोत्तस्स आउस्स वि
एयासि णं चउण्हं कम्मपगडीणं एकूणचत्तालीसं उत्तरपगडीओ पण्णत्ताओ। -सम. सम.३९,सु.४ नाणावरणिज्जस्स वेयणियस्स आउयस्स नामस्स अंतराइयस्स य एएसि णं पंचण्हं कम्मपगडीणं अट्ठावण्णं उत्तरपगडीओ पण्णत्ताओ।
-सम. सम.५८,सु.२ ५. (क) छण्हं कम्मपगडीणं आदिमउवरिल्लवज्जाणं सत्तासीतिं उत्तरपगडीओ पण्णत्ताओ।
-सम.सम.८७,सु.५ (ख) आउय-गोयवज्जाणं छण्हं कम्मपगडीणं एक्काणउतिं उत्तरपगडीओ पण्णत्ताओ।
-सम.सम.९१,सु.४ ६. मोहणिज्जवज्जाणं सत्तण्हं कम्मपगडीणं एकूणसत्तरं
उत्तरपगडीओ पण्णत्ताओ। -सम. सम.६९, सु.३ ७. अट्ठण्हं कम्मपगडीणं सत्ताणउई उत्तरपगडीओ पण्णत्ताओ।
-सम. सम.९७, सु.३ २६. णियट्टिबायराइसु मोहणिज्ज कम्मंसाणं सत्ता परूवणं
णियट्टिबायरस्स णं खवियसत्तयस्स मोहणिज्जस्स कम्मस्स एक्कवीसं कम्मंसा संतकम्मा पण्णत्ता,तं जहा
(ख) दर्शनावरणीय, नाम तथा आयु-इन तीन कर्म-प्रकृतियों
की पचपन उत्तर-प्रकृतियां कही गई हैं। ३. ज्ञानावरणीय, मोहनीय, गोत्र और आयु-इन चार कर्म
प्रकृतियों की उनतालीस उत्तर-प्रकृतियाँ कही गई हैं।
४. ज्ञानावरणीय, वेदनीय, आयु, नाम और अन्तराय-इन पांच
कर्म-प्रकृतियों की अट्ठावन उत्तर-प्रकृतियां कही गई हैं।
५. (क) आदि (ज्ञानावरण) अन्तिम (अन्तराय) कर्म-प्रकृतियों
को छोड़कर शेष छह कर्म-प्रकृतियों की सत्तासी उत्तर-प्रकृतियां कही गई हैं। (ख) आयु और गोत्रकर्म को छोड़कर शेष छह कर्म-प्रकृतियों की इक्यानवें उत्तर-प्रकृतियां कही गई हैं।
६. मोहनीय-को छोड़कर शेष सात कर्मों की उनहत्तर
उत्तर-प्रकृतियाँ कही गई हैं। ७. आठों कर्म प्रकृतियों की सत्तानवें उत्तर-प्रकृतियाँ कही गई हैं।
(१-४)अपच्चक्खाणकसाए कोहे,एवं माणे माया लोभे। (५-८) पच्चक्खाणकसाए कोहे,एवं माणे माया लोभे। (९-१२) संजलणे कोहे,एवं माणे माया लोभे। (१३) इत्थिवेए, (१४) पुरिसवेए, (१५) णपुंसगवेए, (१६) हासे, (१७) अरति, (१८) रति, (१९) भय, (२०) सोगे,(२१) दुगुंछा।
-सम.सम.२१, सु.२ १. उत्त. अ.३३, गा.१५-१६
२६. निवृत्तिबादरादि में मोहनीय कर्माशों की सत्ता का प्ररूपण
जिसने सात कर्म प्रकृतियों को क्षीण कर दिया है ऐसा निवृत्तिबादरगुणस्थानवर्ती संयत के मोहनीय कर्म की इक्कीस प्रकृतियों के कर्मांश सत्ता में रहते हैं, यथा(१-४) अप्रत्याख्यानी क्रोध, मान, माया, लोभ कषाय, (५-८) प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ कषाय, (९-१२) संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ कषाय, (१३) स्त्री वेद, (१४) पुरुष वेद, (१५) नपुंसक वेद, (१६) हास्य, (१७) अरति,(१८) रति,(१९) भय,(२०) शोक, (२१) जुगुप्सा।