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कर्म अध्ययन
- १०९७ )
उ. गोयमा ! छविहे पण्णत्ते,तं जहा
१. समचउरंससंठाणणामे, २. णग्गोह परिमंडल संठाणणामे, ३. साइसंठाणणामे, ४. वामणसंठाणणामे, ५. खुज्ज संठाणणामे,
६. हुंड संठाणणामे। प. (९)वण्णणामे णं भंते !कम्मे कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते,तं जहा
१.कालवण्णणामे जाव ५. सुक्किलवण्णणामे। प. (१०) गंधणामे णं भंते ! कम्मे कइविहे पण्णते? उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते,तं जहा
१. सुरभिगंधणामे, २. दुरभिगंधणामे। प. (११) रसणामे णं भंते ! कम्मे कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते,तं जहा
१.तित्तरसणामे जाव ५. महुररसणामे। प. (१२) फासणामे णं भंते ! कम्मे कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! अट्ठविहे पण्णत्ते,तं जहा
१.कक्खडफासणामे जाव ८.लुक्खफासणामे। (१३) अगुरुलहुअणामे एगागारे पण्णत्ते। (१४) उवघायणामे एगागारे पण्णत्ते। (१५) पराघायणामे एगागारे पण्णत्ते। (१६) आणुपुविणामे चउव्विहे पण्णत्ते,तं जहा१.णेरइयाणुपुव्विणामे जाव ४.देवाणुपूविणामे। (१७) उस्सासणामे एगागारे पण्णत्ते। (१८-४२) सेसाणि सव्वाणि एगागाराइं पण्णत्ताई जाव तित्थगरणामे। णवर-विहायगइणामे दुविहे पण्णत्ते,तं जहा१. पसत्थविहायगइणामे य,
२. अपसत्थविहायगइणामे य। प. (७) गोएणं भंते ! कम्मे कइविहे पण्णते? उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते,तं जहा
१. उच्चागोए य, . २. णीयागोएय।' प. उच्चागोएणं भंते ! कम्मे कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! १.अट्ठविहे पण्णत्ते,तं जहा
१. जाइविसिट्ठिया, २. कुलविसिट्ठिया, ३. बलविसिट्ठिया, ४. रूवविसिट्ठिया, ५. तवविसिट्ठिया, ६. सुयविसिट्ठिया, ७. लाभविसिट्ठिया, ८. इस्सरियविसिट्ठिया। एवं णीयागोए वि। णवर-१.जाइविहीणया जाव ८. इस्सरियविहीणया।२
-पण्ण. प.२३. उ.२.सु.१६९३-९५ १. (क) ठाणं. अ. २, उ. ४, सु. ११६ (७)
उ. गौतम ! वह छह प्रकार का कहा गया है, यथा
१. समचतुरनसंस्थाननाम कर्म, २. न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थाननाम कर्म, ३. सादिसंस्थाननाम कर्म, ४. वामनसंस्थाननाम कर्म, ५. कुब्जसंस्थाननाम कर्म,
६. हुण्डकसंस्थाननाम कर्म। प्र. (९) भंते ! वर्णनामकर्म कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह पांच प्रकार का कहा गया है, यथा
१. कालवर्णनाम कर्म यावत् ५. शुक्लवर्णनाम कर्म। प्र. (१०) भंते ! गन्धनामकर्म कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा
१. सुरभिगन्धनाम कर्म, २. दुरभिगन्धनाम कर्म। प्र. (११) भंते ! रसनामकर्म कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह पांच प्रकार का कहा गया है, यथा
१.तिक्तरसनाम कर्म यावत् ५. मधुररसनाम कर्म। प्र. (१२) भंते ! स्पर्शनाम कर्म कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह आठ प्रकार का कहा गया है, यथा
१. कर्कशस्पर्शनाम कर्म यावत् ८. रूक्षस्पर्शनाम कर्म। (१३) अगुरुलघुनाम कर्म एक प्रकार का कहा गया है। (१४) उपघातनाम कर्म एक प्रकार का कहा गया है। (१५) पराघातनाम कर्म एक प्रकार का कहा गया है। (१६) आनुपूर्वीनाम कर्म चार प्रकार का कहा गया है, यथा१. नैरयिकानुपूर्वीनाम कर्म यावत् ४. देवानुपूर्वीनाम कर्म। (१७) उच्छ्वासनाम कर्म एक प्रकार का कहा गया है। (१८-४२) शेष सब तीर्थकरनाम कर्म पर्यन्त एक-एक प्रकार के कहे गये हैं। विशेष-विहायोगतिनाम कर्म दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. प्रशस्तविहायोगतिनाम कर्म,
२. अप्रशस्तविहायोगतिनामकर्म। प्र. (७) भंते ! गोत्रकर्म कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा
१. उच्चगोत्र, २. नीचगोत्र। प्र. भंते ! उच्चगोत्रकर्म कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह आठ प्रकार का कहा गया है, यथा
१. जातिविशिष्टता, २. कुलविशिष्टता, ३. बलविशिष्टता, ४. रूपविशिष्टता, ५. तपविशिष्टता, ६. श्रुतविशिष्टता, ७. लाभविशिष्टता, ८. ऐश्वर्यविशिष्टता। इसी प्रकार नीचगोत्र भी आठ प्रकार का कहा गया है। किन्तु यह उच्चगोत्र से सर्वथा विपरीत है, यथाविशेष-१. जातिविहीनता यावत् ८. ऐश्वर्यविहीनता।
कम,
२.
उत्त. अ.३३,गा.१४