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कर्म अध्ययन
७. अपच्चक्खाणे माया, ८. अपच्चक्खाणे लोभे। ९. पच्चक्खाणावरणे कोहे, १०. पच्चक्खाणावरणे माणे, ११. पच्चक्खाणावरणे माया, १२. पच्चक्खाणावरणे लोभे। १३. संजलणे कोहे, १४. संजलणे माणे, १५. संजलणे माया, १६. संजलणे लोभे।' प. (घ) णो कसायवेयणिज्जेणं भंते ! कम्मे कइविहे पण्णत्ते?
७. अप्रत्याख्यानी माया, ८. अप्रत्याख्यानी लोभ। ९. प्रत्याख्यावनारण क्रोध, १०. प्रत्याख्यानावरण मान, ११. प्रत्याख्यानावरण माया, १२. प्रत्याख्यानावरण लोभ। १३. संज्वलन क्रोध, १४. संज्वलन मान,
१५. संज्वलन माया, १६. संज्वलन लोभ। प्र. (घ) भंते ! नो कषाय-वेदनीयकर्म कितने प्रकार का कहा
गया है? उ. गौतम ! वह नौ प्रकार का कहा गया है, यथा
१. स्त्रीवेद, २. पुरुषवेद, ३. नपुंसकवेद, ४. हास्य, ५. रति, ६. अरति, ७. भय, ८. शोक, ९. जुगुप्सा।
(५) आयु कर्म दो प्रकार का कहा गया है, यथा
१. अद्धायु-कायस्थिति की आयु।
२. भवायु-उसी जन्म की आयु। प्र. भंते ! आयुकर्म कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह चार प्रकार का कहा गया है, यथा
१. नरकायु, २. तिर्यञ्चायु ३. मनुष्यायु,
४. देवायु।
(६) नाम कर्म दो प्रकार का कहा गया है१. शुभनाम,
२. अशुभनाम।
उ. गोयमा ! णवविहे पण्णत्ते,तं जहा
१. इत्थिवेएं, २. पुरिसवेए, ३. णपुंसगवेए, ४. हासे, ५. रती, ६. अरती, ७. भये, ८. सोगे, ९. दुगंछा।२
-पण्ण.प.२३, उ.२,सु.१६८९-१६९१ (५) आउए कम्मे दुविहे पण्णत्ते,तं जहा
१. अद्धाउए चेव,
२. भवाउए चेव। -ठाणं.अ.२, उ.४,सु.११६(५) प. आउए णं भंते ! कम्मे कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! चउविहे पण्णत्ते,तं जहा
१. णेरइयाउए, २. तिरिक्खाउए, ३. मणुस्साउए, ४. देवाउए।३
-पण्ण.प.२३,उ.२,सु.१६९२ (६) नामे कम्मे दुविहे पण्णत्ते,तं जहा१. सुभणामे चेव, २. अशुभणामे चेव।
-ठाणं. अ.२, उ.४, सु.११६ (६) प. नामे णं भंते ! कम्मे कइविहे पण्णते? उ. गोयमा ! बायालीसइविहे पण्णत्ते,तं जहा१. गइणामे,
२. जाइणामे, ३. सरीरणामे,
४. सरीरंगोवंगणामे, ५. सरीरबंधणणामे, ६. सरीरसंघायणामे, ७. संघयणणामे, ८. संठाणणामे, ९. वण्णणामे, १०. गंधणामे, ११. रसणामे,
१२. फासणामे, १३. अगुरुलहुयणामे, १४. उवघायणामे, १५. पराघायणामे, १६. आणुपुब्बीणामे, १७. उस्सासणामे, १८. आयवणामे, १९. उज्जोयणामे, २०. विहायगइणामे, २१. तसणामे,
२२. थावरणामे, २३. सुहुमणामे, २४. बायरणामे, २५. पज्जत्तणामे, २६. अपज्जत्तणामे,
२७. साहारणसरीरणामे, २८. पत्तेयसरीरणामे, १. (क) सम. सम. १६, सु.२
(ख) मोहनीय कर्म के दो भेदों में “मोहणिज्जे" का प्रयोग है किन्तु इनके
___ प्रभेदों में “वेयणिज्जे" का प्रयोग है यह विचारणीय है। २. (क) ठाण. अ.९, सु.७००
प्र. भंते ! नामकर्म कितने प्रकार का कहा गया है ? उ. गौतम ! वह बयालीस प्रकार का कहा गया है, यथा१. गतिनाम,
२. जातिनाम, ३. शरीरनाम,
४. शरीरांगोपांगनाम, ५. शरीरबन्धननाम, ६. शरीरसंघातनाम, ७. संहनननाम,
८. संस्थाननाम, ९. वर्णनाम,
१०. गन्धनाम, ११. रसनाम,
१२. स्पर्शनाम, १३. अगुरुलघुनाम, १४. उपघातनाम, १५. पराघातनाम,
१६. आनुपूर्वीनाम, १७. उच्छ्वासनाम, १८. आतपनाम, १९. उद्योतनाम,
२०. विहायोगतिनाम, २१. त्रसनाम,
२२. स्थावरनाम, २३. सूक्ष्मनाम,
२४. बादरनाम, २५. पर्याप्तनाम,
२६. अपर्याप्तनाम, २७. साधारण शरीरनाम, २८. प्रत्येकशरीरनाम,
(ख) उत्त. अ.३३, गा.८-११ ३. (क) उत्त. अ. ३३, गा. १२
(ख) ठाणं.अ.४,उ.२,सु. २९४ ४. उत्त.अ.३३,गा.१३