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१६. आगमेसिभद्दत्ताए कम्म बंध हेउ परूवणं
दसहिं ठाणेहिं जीवा आगमेसिभद्दत्ताए कम्मं पकरेंति, तं जहा१. अणिदाणयाए, २. दिट्ठिसंपण्णयाए, ३. जोगवाहियाए, ४. खंतिखमणयाए, ५. जितिंदिययाए, ६. अमाइल्लयाए, ७. अपासत्थयाए, ८. सुसामण्णयाए, ९. पवयणवच्छल्लयाए, १०. पवयणउब्भावणयाए, -ठाणं अ.१०,सु.७५८ १७. तित्थयरनाम कम्मस्स बंध हेउ परूवणं
इमेहिं वीसाएहिं कारणेहिं आसेवियएहिं तित्थयरनामगोय कम्म बंधइ,तं जहा१. अरिहंत,२.. सिद्ध, ३. पवयण, ४. गुरु, ५. थेर, ६.बहुस्सुए,७.तवस्सीणं। वच्छलया य तेसिं,८.अभिक्खणाणोवओगे य ९. दसण, १०. विणए, ११. आवस्सए य, १२. सीलव्वए निरइयारं। १३. खणलव, १४-१५. तवच्चियाए, १६. वेयावच्चे १७. समाहीय १८. अपुव्वनाणगहणे, १९. सुयभत्ती २०. पवयणेपभावणया। एएहिं कारणेहि,तित्थयरत्तं लहइ जीवो
-णाया. सु. १, अ.८, सु. १४ १८. अलिएणं अब्भक्खाणेणं कम्म बंध परूवणंप. जे णं भंते ! परं अलिएणं असंतएणं अब्भक्खाणेणं
अब्भक्खाइ तस्स णं कहप्पगारा कम्मा कज्जंति?
( द्रव्यानुयोग-(२)) १६. भावी कल्याणकारी कर्म बंध के हेतुओं का प्ररूपण
दस स्थानों से जीव भावी कल्याणकारी कर्म का बंध करते हैं, यथा१. अनिदानता-निदान न करने से, २. सम्यक्दृष्टिसंपन्नता से, ३. योगवाहिता-समाधिपूर्ण जीवन से, ४. क्षान्तिक्षमणता-समर्थ होते हुए भी क्षमा करने से, ५. जितेन्द्रियता-इन्द्रिय विजेता होने से, ६. अमाइत्व-निष्कपटता से, ७. अपार्श्वस्थता-शिथिलाचारी न होने से, ८. सुश्रामण्य-शुद्ध संयमाचार का पालन करने से, ९. प्रवचन वत्सलता-प्रवचन के प्रति अनुराग रखने से, १०. प्रवचन-उद्भावनता-प्रवचन प्रभावना करने से, १७. तीर्थकरनाम कर्म के बंध हेतुओं का प्ररूपण
इन बीस कारणों के सेवन से तीर्थंकर नामगोत्र कर्म का बंध होता है, यथा(१) अरिहंत (२) सिद्ध (३) प्रवचन-श्रुतज्ञान (४) गुरु (५) स्थविर (६) बहुश्रुत (७) तपस्वी-इन सातों के प्रति वात्सल्यभाव रखना (८) बारंबार ज्ञान का उपयोग करना (९) दर्शन-सम्यक्त्व की विशुद्धता, (१०) ज्ञानादिक का विनय करना (११) छह आवश्यकों का पालन करना (१२) उत्तरगुणों और मूलगुणों का निरतिचार पालन करना (१३) क्षणलव-एक क्षण के लिए भी प्रमाद न करना (१४) तप करना (१५) त्यागी मुनियों को उचित दान देना (१६) वैयावृत्य करना (१७) समाधि-गुरु आदि को साता उपजाना। (१८) नया-नया ज्ञान ग्रहण करना (१९) श्रुत की भक्ति करना (२०) प्रवचन की प्रभावना करना, इन बीस कारणों से जीव
तीर्थकर नामगोत्र का उपार्जन करता है। १८. असत्य आरोप से होने वाले कर्मबंध का प्ररूपणप्र. भंते ! जो दूसरे पर सद्भूत (विद्यमान) का अपलाप और
असद्भूत का आरोप करके अभ्याख्यान मिथ्यादोषारोपण
करता है, उसे किस प्रकार के कर्म बंधते हैं? उ. गौतम ! जो दूसरे पर सद्भूत का अपलाप और असद्भूत का
आरोप करके मिथ्या दोषारोपण करता है, उसके उसी प्रकार के कर्म बंधते हैं। वह जिस योनि में जाता है, वहीं उन कर्मों को वेदता है और
वेदन करने के पश्चात् उनकी निर्जरा करता है। १९. कर्मनिवृत्ति के भेद और चौवीस दंडकों में प्ररूपण
प्र. भंते ! कर्मनिवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है? उ. गौतम ! कर्मनिवृत्ति आठ प्रकार की कही गई है, यथा
१.ज्ञानावरणीय कर्मनिवृत्ति यावत् ८. अन्तराय-कर्मनिवृत्ति।
उ. गोयमा ! जे णं परं अलिएणं असंतएणं अब्भक्खाणेणं
अब्भक्खाइ तस्स णं तहप्पगारा चेव कम्मा कज्जंति,
जत्थेव णं अभिसमागच्छइ तत्थेव णं पडिसंवेदेइ तओ से . पच्छा वेदेइ।
-विया.स.५, उ.६ ,सु. २० १९. कम्मनिव्वत्ति भेया चउवीसदंडएसु य परूवणं
प. कइविहा णं भंते ! कम्मनिव्वत्ती पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अट्ठविहा कम्मनिव्वत्ती पण्णत्ता,तं जहा
१. नाणावरणिज्जकम्मनिव्वत्ती जाव ८. अंतराइय
कम्मनिव्वत्ती। प. दं.१.नेरइयाणं भंते ! कइविहा कम्मनिव्वत्ती पण्णत्ता?
प्र. दं.१. भंते ! नैरयिक जीवों की कितने प्रकार की कर्मनिवृत्ति
कही गई है?