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एवमेव जीवाईया बेमाणिया पज्जयसाणा अट्ठारस दंडगा भाणियव्या -ठाणं. अ. ८, सु. ५९६ २२. चउवीसदंडएसु चलियाचलिय कम्माणं बंधा परूवणं
प. दं. १ रयाणं भंते जीवाओ. किं चलिये कम्मं बंधति अचलियं कम्म बंधति ?
उ. गोयमा ! नौ चलिये कम्पं बंधति, अचलियं कम्म बंधति ।
एवं २. उदीरेंति, ३ वेदेंति, ४ ओयट्टेति, ५. संकामेंति, ६ . निहत्तेंति, ७. निकाएंति, सव्वेसु नो चलियं, अचलियं ।
प. दं. १. नेरइया णं भंते ! जीवाओ किं चलियं कम्मं निज्जरेंति, अचलियं कम्मं निज्जरेंति ?
उ. गोयमा ! चलियं कम्मं निज्जरेंति, नो अचलियं कम्म निज्जरेंति । '
दं. २-२४. एवं जाय वैमाणियाणं ।
-विया. स. १, उ. १, सु. ६/९-१० २३. जीव- चउवीसदंडएसु कोहाइ चउठाणेहिं कम्मट्ठग चिणाइ परूवणं
प. (१) जीवा णं भंते! कहहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ चिणिसु ?
उ. गोयमा ! चउहिं ठाणेहिं अट्ठकम्मपगडीओ चिर्णिसु, तं जहा
१. कोहेणं, २. माणेणं, ३. मायाए, ४. लोभेणं । दं. १-२४. एवं नेरइया जाव वेमाणिया ।
प. (२) जीवा णं भंते! कहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ चिणंति ?
उ. गोयमा ! चउहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ चिणंति, तं जहा
१. कोहेणं, २. माणेणं, ३. मायाए, ४. लोभेणं । दं. १-२४. एवं नेरइया जाव वेमाणिया ।
प. (३) जीवा णं भंते! कहिं ठाणेहिं अठ कम्मपगडीओ चिणिस्संति ?
उ. गोयमा ! चउहिं ठाणेंहिं अट्ठ कम्मपगडीओ चिणिस्संति, तं जहा
१. कोहेणं, २. माणेणं ३. मायाए ४. लोभेणं । ६. १-२४. एवं नेरड्या जाव वेमाणिया ।
प. (४) जीवा णं भंते ! कइहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ उवचिणिंसु?
१. गाहा - बंधोदय - वेदोव्वट्ट-संकमे तह निहत्तण-निकाए ।
द्रव्यानुयोग - ( २ )
इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त समुच्चय जीवों में ये अट्ठारह दंडक (आलापक) कहने चाहिए।
२२. चौबीस दंडकों में चलित अचलित कर्मों के बंधादि का
प्ररूपण
प्र. दं. १. भंते ! क्या नैरयिक जीव प्रदेशों से चलित (अस्थिर) कर्म को बांधते हैं, अचलित (स्थिर) कर्म को बांधते हैं?
उ. गौतम ! वे चलित कर्म को नहीं बांधते, किन्तु अचलित कर्म को बांधते हैं।
इसी प्रकार अचलित कर्म का २ उदीरण ३ वेदन ४ अपवर्त्तन ५ संक्रमण ६ निधत्तन और ७ निकाचन करते हैं। इन सब पदों में अचलित (कर्म) कहना चाहिए, चलित (कर्म) नहीं कहना चाहिए।
प्र. दं. १. भंते ! क्या नैरयिक जीव प्रदेशों से चलित कर्म की निर्जरा करते हैं या अचलित कर्म की निर्जरा करते हैं ?
उ. गौतम ! चलित कर्म की निर्जरा करते हैं, अचलित कर्म की निर्जरा नहीं करते।
दं. २-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त जानना चाहिए।
२३. जीव - चौबीस दंडकों में क्रोधादि चार स्थानों द्वारा आठ कर्मों का चयादि प्ररूपण
प्र. (१) भते जीयों ने कितने स्थानों (कारणों) से आठ-कर्म प्रकृतियों का चय किया है?
उ. गौतम ! चार कारणों से आठ कर्म प्रकृतियों का चय किया है,
यथा
१. क्रोध से, २. मान से, ३. माया से, ४. लोभ से । दं. १-२४. इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक जानना चाहिए।
प्र. (२) भंते ! जीव कितने कारणों से आठ कर्म प्रकृतियों का चय करते हैं?
उ. गौतम ! चार कारणों से आठ कर्मप्रकृतियों का चय करते हैं,
यथा
१. क्रोध से, २. मान से, ३. माया से, ४. लोभ से । दं. १-२४. इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक जानना चाहिए।
प्र. (३) भंते ! जीव कितने स्थानों (कारणों) से आठ कर्म प्रकृतियों का चय करेंगे?
उ. गौतम ! चार कारणों से आठ कर्म प्रकृतियों का चय करेंगे,
यथा
१. क्रोध से, २. मान से, ३. माया से, ४. लोभ से । दं. १ २४. इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक जानना चाहिए।
प्र. (४) भंते! जीवों ने कितने स्थानों से आठ कर्म प्रकृतियों का उपचय किया है ?
अचलियं कम्मं तु भवे चलितं जीवाउ निज्जरए।