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अणुब्भड-पसत्थ-सुजाय-पीणकुच्छी, सन्नय पासां, संगतपासा, सुंदरपासा, सुजातपासा, मितमाइय-पीण-रइय-पासा,
अकुरंडुय-कणग-रूयग निम्मल-सुजाय-निरुवहयगायलट्ठी, कंचणकलस - पमाण - समसंहिय - लट्ठ - चूचुय - आमेलगजमल-जुयल-वट्ठिय पयोहराओ .
भुयंग-अणुपुव्व-तणुय- गोपुच्छ - वट्ट-सम-संहिय-नमियआदेज्ज-लडहबाहा,
तंब नहा, मंसलग्गहत्था, कोमल-पीवर-वरंगुलीया निद्धपाणिलेहा, ससि-सूर-संख-चक्क-वरसोत्थिय-विभक्तसुविरइय-पाणिलेहा पीणुण्णय-कक्ख वत्थिपदेश पडिपुण्ण-गलकवोला, चउरंगुल सुप्पमाण-कंबुवर-सरिसगीवा मंसल-संठिय-पसत्थ-हणुया, दलिमपुप्फगास-पीवर-पलंब-कुंचित-वराधरा, सुंदरोत्तरोट्ठा,
। द्रव्यानुयोग-(२) ] कुक्षि-नहीं उभरी हुई प्रशस्त, सुन्दर और पुष्ट होती हैं। पार्श्वभाग-उचित प्रमाण में नीचे झुका, सुगठित संगत आकर्षक प्रमाणोपेत-उचित मात्रा में रचित, पुष्ट और रतिद कामोत्तेजक होता है। गात्रयष्टि-मेरु दंड-उभरी हुई अस्थि से रहित, शुद्ध स्वर्ण से निर्मित रूचक नामक आभूषण के समान सुगठित तथा नीरोग होती है। दोनों पयोधर-स्तन-स्वर्ण के दो कलसों के सदृश, प्रमाणयुक्त, उन्नत-उभरे हुए, कठोर तथा मनोहर चूचक (स्तनाग्रभाग) वाले तथा गोलाकार होते हैं। भुजाएं-सर्प की आकृति सरीखी क्रमशः पतली गाय की पूंछ के समान गोलाकार, एक सी शिथिलता से रहित, सुनमित प्रमाणोपपेत एवं ललित होती हैं। हाथों के नाखून-ताम्रवर्ण-लालिमायुक्त होते हैं। अग्रहस्त-कलाई मांसल-पुष्ट होते हैं। हाथ की अंगुलियां-कोमल और पुष्ट होती हैं। हथेलियों की रेखाएं-स्निग्ध-चिकनी तथा चन्द्र, सूर्य, शंख, चक्र एवं स्वस्तिक के चिह्नों से अंकित एवं सुनिर्मित होती हैं। कोख और मलोत्सर्गस्थान-पुष्ट तथा उन्नत होते हैं। कपोल-परिपूर्ण तथा गोलाकार होते हैं। ग्रीवा-धार अंगुल प्रमाण ऊँची उत्तम शंख जैसी होती हैं। ठुड्डी-मांस से पुष्ट, सुस्थिर तथा प्रशस्त होती हैं। अधरोष्ठ-उत्तरोष्ठ नीचे ऊपर के होठ अनार के खिले फूल जैसे लाल, कान्तिमय-पुष्ट कुछ लम्बे, कुंचित-सिकुड़े हुए और उत्तम होते हैं। दांत-दही, पत्ते पर पड़ी बूंद, कुन्द के फूल, चन्द्रमा एवं चमेली की कली के समान श्वेत वर्ण, अन्तररहित-एक दूसरे से सटे हुए और उज्ज्वल होते हैं। ताल और जिह्वा-रक्तोत्पल के समान लाल तथा कमल पत्र के सदृश कोमल होती हैं। नासिका-कनेर-की कली के समान, वक्रता से रहित, आगे से ऊपर उठी हुई सीधी और ऊँची होती हैं। नेत्र-शरद्ऋतु के सूर्यविकासी नवीन कमल, चन्द्रविकासी कुमुद तथा कुवलय-नील कमल के समूह के समान शुभ लक्षणों युक्त प्रशस्त, कुटिलता तिरछेपन से रहित और कमनीय होते हैं। भौहे-किंचित् नमाये हुए धनुष के समान मनोहर, काली अभ्रराजि-मेघमाला के समान सुन्दर पतली, कृष्णवर्णी और चिकनी होती है। कान-सटे हुए और समुचित प्रमाण वाले होते हैं तथा श्रवणशक्ति युक्त होते हैं। कपोलरेखा-पुष्ट और चिकनी होती है। ललाट-चार अंगुल विस्तीर्ण और सम होता है। मुख-चन्द्रिकायुक्त निर्मल एवं परिपूर्ण चन्द्रमा के समान गोलाकार एवं सौम्य होता है। मस्तक-छत्र के सदृश उन्नत-उभरा हुआ होता है।
दधि-दगरय-कुंद-चंद-वासंति-मउल-अच्छिद्द विमल-दसणा,
रत्तुप्पल पउम पत्त-सुकुमाल-तालु-जीहा,
कणवीर-मउलऽकुडिल अब्भुन्नय उज्जुतुंग-नासा,
सारद-नवकमल-कुमुद-कुवलय-दल-निगर-सरिस-लक्खणपसत्थ-अजिम्ह-कंतनयणा
आनामिय - चाव - रुइल - किण्हब्भराइ - संगय - सुजायतणुकसिण-निद्ध-भुमगा,
अल्लीण-पमाण-जुत्तसवणा-सुस्सवणा,
पीणमट्ठ-गंडलेहा, चउरंगुल-विसाल-सम-निडाला, कोमुदि-रयणिकर-विमल-पडिपुन्न-सोमवदणा,
छत्तुन्नय-उत्तमंगा