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२. उन्नयावत्तसमाणं माणमणुपविट्ठे जीवे काल करेइ नेरइएस उववज्जइ
३. गूढावत्तसमाणं मायमणुपविट्ठे जीवे कालं करेह नेरइएसु उबवज्जइ ।
४. आमिसावत्तसमाणं लोभमणुपविट्ठे जीवे काल करेइ नेरईएस उबवज्जइ । - ठाणं. अ. ४, सु. ३८५
३. कसायोप्पत्तिपरूवणं
प. १. कइविहे णं भंते ! ठाणेहिं कोहुप्पत्ति भवइ ?
उ. गोयमा ! चउहिं ठाणेहिं कोहुप्पत्ति भवइ, तं जहा१. खेत्तं पडुच्च,
२. वधु पहुच्च,
३. सरीरं पडुच्च,
४. उवहिं पडुच्च।
एवं रइयाई जाव वेमाणियाणं ।
एवं माणेण वि मायाए वि लोभेण वि । एए वि चत्तांरि दंडगा ।" - पण्ण. प. १४, सु. ९६१
(क) दसहि ठाणेहिं कोहुप्यत्ति सिया, तं जहामे
सद्द-फरिस-रस-रूब-गंधाई
१. मणुण्णाई अवहरिसु
२. अमणुण्णाई मे सद्द जाव गंधाई उवहरिंसु,
३. मणुण्णाई मे सद्द जाव गंधाई अवहरड़,
४. अमणुण्णाई मे सद्द जाय गंधाई उवहरइ,
५. मणुणाई मे सद्द जाव गंधाई अवहरिस्सड,
६. अमणुण्णाई मे सद्द जाव गंधाई उवहरिस्सइ,
७. मणुणाई मे सद्द जाव गंधाई अवहरिंसु, अवहरइ, अवहरिस्सइ,
८. अमणुण्णाई मे सद्द जाव गंधाई उवहरिंसु, उवहरद्द, उवहरिस्सइ,
९. मणुण्णामणुण्णाई मे सद्द जाब गंधाई अवहरिसु अवहरइ, अवहरिस्सइ, उवहरिंसु उवहरइ, उवहरिस्सइ,
१०. अहं च णं आयरिय उवज्झायाणं सम्मं वट्टामि मम चणं आयरिय उवज्झाया मिच्छं विप्पडिवन्ना । -ठाणं. अ. १०, सु. ७०८
(ख) अट्ठ मयट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा१. जातिमए,
२. कुलमए
१. ठाणं अ. ४, उ. १, सु. २४९
द्रव्यानुयोग - (२)
२. उन्नतावर्त समान मान में प्रवर्तमान जीव यदि काल करे तो नैरयिकों में उत्पन्न होता है।
३. गूढावर्त समान माया में प्रवर्तमान जीव यदि काल करे तो नैरयिकों मे उत्पन्न होता है।
४. आमिषावर्त समान लोभ में प्रवर्तमान जीव यदि काल करे तो नैरयिकों में उत्पन्न होता है।
३. कषायोत्पत्ति का प्ररूपण
प्र. १. भंते ! कितने स्थानों (कारणों) से क्रोध की उत्पत्ति होती है?
उ. गौतम ! चार कारणों से क्रोध की उत्पत्ति होती है, यथा
१. क्षेत्र के निमित्त से,
२. वास्तु (मकान) के निमित्त से,
३. शरीर के निमित्त से,
४. उपधि (साधन सामग्री) के निमित्त से।
इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों पर्यन्त क्रोधोत्पत्ति के कारण जानने चाहिए।
इसी प्रकार मान, माया और लोभ की उत्पत्ति के कारण के लिए भी यही चार-चार दंडक जानने चाहिए।
(क) दस स्थानों (कारणों) से क्रोध की उत्पत्ति होती है, यथा१. अमुक ( पुरुष ने) मेरे मनोज्ञ शब्द-स्पर्श-रस-रूप और गंध का अपहरण किया था।
२. अमुक पुरुष ने मेरे लिए अमनोज्ञ शब्द यावत् गंध उपलब्ध किए थे।
३. अमुक पुरुष मेरे मनोज्ञ शब्द यावत् गंध का अपहरण करता है।
४. अमुक पुरुष मेरे लिए अमनोज्ञ शब्द यावत् गंध उपलब्ध करता है।
५. अमुक पुरुष मेरे मनोज्ञ शब्द यावत् गंध का अपहरण करेगा।
६. अमुक पुरुष मेरे लिए अमनोज्ञ शब्द यावत् गंध उपलब्ध करेगा।
७. अमुक पुरुष मेरे मनोज्ञ शब्द यावत् गंध का अपहरण करता था, अपहरण करता है और अपहरण करेगा।
८. अमुक पुरुष ने मुझे अमनोज्ञ शब्द यावत् गंध उपलब्ध कराये हैं, कराता है और करायेगा ?
९. अमुक पुरुष ने मेरे मनोज्ञ और अमनोज्ञ शब्द यावत् गंध का अपहरण किया था अपहरण करता है और अपहरण करेगा तथा उपलब्ध किये थे, करता है और करेगा।
१०. मैं आचार्य और उपाध्याय के साथ सम्यक् (अनुकूल) व्यवहार करता हूँ परन्तु आचार्य और उपाध्याय मेरे से (मेरे साथ) प्रतिकूल व्यवहार करते हैं।
(ख) मद (मदोत्पत्ति) के आठ स्थान कहे गये हैं, यथा१. जातिमद, २. कुलमद,