________________
कषांय अध्ययन
१०६९
३०. कसायऽज्झयणं
३०. कषाय अध्ययन
सूत्र
सूत्र
१. कसाय भेयप्पभेया चउवीसदंडएसय परूवणं
१. कषायों के भेद-प्रभेद और चौवीस दंडकों में प्रसपण
(संग्रहनय की अपेक्षा) १. क्रोध कषाय एक है, २. मान कषाय एक है, ३. माया कषाय एक है, ४. लोभ कषाय एक है।
१. एगे कोहे,
२. एगे माणे, ३. एगे माया, ४. एगे लोभे।
-ठाणं. अ.१, सु.३९(१) प. कइणं भंते ! कसाया पण्णत्ता? उ. गोयमा ! चत्तारि कसाया पण्णत्ता,तं जहा
१. कोहकसाए, २. माणकसाए,
३. मायाकसाए, ४. लोभकसाए। प. दं.१.णेरइयाणं भंते ! कइ कसाया पण्णत्ता? उ. गोयमा ! चत्तारि कसाया पण्णत्ता,तं जहा
१. कोहकसाए जाव ४. लोभकसाए। दं.२-२४.एवं जाव वेमाणियाणं।'
-पण्ण.प.१४,सु. ९५८-९५९ प. कइविहे णं भंते ! कोहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! चउबिहे कोहे पण्णत्ते,तं जहा
१. अणंताणुबंधी कोहे, २. अप्पच्चक्खाणे कोहे, ३. पच्चक्खाणावरणे कोहे, ४. संजलणे कोहे। एवं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं। एवं माणेणं, मायाए, लोभेणं एए वि चत्तारि दंडगा
भाणियव्या। प. कइविहे णं भंते ! कोहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! चउव्विहे कोहे पण्णत्ते,तं जहा
१. आभोगणिव्वत्तिए, २. अणाभोगणिव्वत्तिए, ३. उवसंते ४. अणुवसंते। एवं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं। एवं माणेण वि, मायाए वि, लोभेण वि एए वि चत्तारि दंडगा।
-पण्ण.प.१४ सु. ९६२-९६३ सोलस कसाया पण्णत्ता,तं जहा१. अणंताणुबंधी कोहे,एवं २. माणे, ३. माया, ४. लोभे। ५. अपच्चक्खाणकसाए कोहे,एवं ६. माणे, ७. माया, ८. लोभे। ९. पच्चक्खाणावरणे कोहे,एवं १०. माणे, ११. माया, १२. लोभे। १३. संजलणे कोहे, एवं १४. माणे, १५. माया, १६. लोभे।
प्र. भंते ! कषाय कितने कहे गये हैं ? उ. गौतम ! कषाय चार कहे गये हैं, यथा
१. क्रोध कषाय, २. मान कषाय,
३. माया कषाय, ४. लोभ कषाय। प्र. दं.१. भंते ! नैरयिकों में कितने कषाय कहे गये हैं ? उ. गौतम ! नैरयिकों में चार कषाय कहे गये है, यथा
१. क्रोध कषाय यावत् ४. लोभ कषाय। दं.२-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त चारों कषाय जानने
चाहिए। प्र. भंते ! क्रोध (कषाय) कितने प्रकार के कहे गए हैं? उ. गौतम ! क्रोध (कषाय) चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. अनन्तानुबंधी क्रोध, २. अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, ३. प्रत्याख्यानावरण क्रोध, ४. संज्वलन क्रोध। इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। इसी प्रकार मान, माया और लोभ के भी चार-चार दंडक
जानने चाहिए। प्र. भंते ! क्रोध कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! क्रोध चार प्रकार के कहे गये हैं, यथा
१. आभोगनिर्वर्तित, २. अनाभोगनिवर्तित, ३. उपशांत, ४. अनुपशांत। इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों पर्यन्त कहने चाहिए। इसी प्रकार मान, माया और लोभ के भी चार-चार दंडक जानने चाहिये। सोलह कषाय कहे गये हैं, यथा१. अनन्तानुबंधी क्रोध, इसी प्रकार२. मान, ३. माया, ४. लोभ। ५. अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, इसी प्रकार६. मान, ७. माया, ८. लोभ। ९. प्रत्याख्यानावरण क्रोध, इसी प्रकार१०. मान, ११. माया, १२. लोभ। १३. संज्वलन क्रोध, इसी प्रकार१४. मान, १५. माया, १६. लोभ।
२. ठाणं.अ.४,उ.१,सु.२४९
१. (क) ठाणं अ.४,उ.१,सु.२४९
(ख) ठाणं अ.९,सु.६९३
(ग) सम.सम.४,सु.१ (घ) विया.स.१८,उ. ४,सु.३