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अवरे रणसीसलद्धलक्खा संगामंमि अइवयंति, सन्नद्धबद्ध-परियर-उप्पोलिय चिंधपट्टगहियाउहपहरणा, माढिवरवम्मगुंडिया आविद्धलालिका कवयकंकडईया।
उर-सिर-मुहबद्ध-कंठ-तोण-माइत-वर-फलगरचीय-पहकरसरह-सरवर-चावकर-करंछिय-सुनिसिय-सरवरिसचडकर-मुयंत-घण-चंड-वेग-धारानिवाय- मग्गे।
अणेगधणु-मंडलग्ग-संधित-उच्छलिय-सत्ति-सूल-कणगवामकर-गहिय-खेडग-निम्मल-निकिट्ठ खग्ग-पहरंत कोंततोमर-चक्क-गया-परसु-मूसल-लंगल-सूल-लउल-भिडिमालसब्बल-पट्टिस-चम्मेठ्ठ-दुघण-मोट्ठिय मोग्गर-वरफलिहजंत-पत्थर-दुहण-तोण-कुवेणी-पीढकलिय-ईली-पहरण मिलिमिलिमिलंत-खिप्पंत विज्जुज्जल-विरचियंसमप्पहा-णभतले।
द्रव्यानुयोग-(१) तरह नाना प्रकार की व्यूहरचना वाली सेना दूसरे विरोधी राजा की सेना को आक्रान्त करते हैं और पराजित करके दूसरे की धन सम्पत्ति को हरण कर लेते हैं। दूसरे कोई-कोई नृपतिगण युद्धभूमि में अग्रिम पंक्ति में लड़कर लक्ष्य विजय प्राप्त करने वाले कमर कसे हुए और विशेष प्रकार के परिचयसूचक चिन्हपट्ट मस्तक पर बांधे हुए, अस्त्र-शस्त्रों को धारण किए हुए, प्रतिपक्ष के प्रहार से बचने के लिए ढाल से और उत्तम कवच से शरीर को वेष्टित किए हुए, लोहे की जाली पहने हुए, कवच पर लोहे के कांटे लगाए हुए, वक्ष स्थल के साथ ऊर्ध्वमुखी बाणों की तुणीर-बाणों की थैली कंठ में बांधे हुए, हाथों में पाश-तलवार आदि शस्त्र और ढाल लिए हुए, सैन्यदल की रणोचित रचना किए हुए, कठोर धनुष को हाथों में पकड़े हुए, हर्षयुक्त हाथों से-बाणों को खींचकर की जाने वाली प्रचण्ड वेग से बरसती हुई मूसलाधार वर्षा के गिरने से जहां मार्ग अवरुद्ध हो गया है। ऐसे युद्ध में अनेक धनुषों, दुधारी तलवारों, फेंकने के लिए निकाले गए त्रिशूलों, बाणों, बाएं हाथों में पकड़ी हुई ढालों, म्यान से निकाली हुई चमकती तलवारों, प्रहार करते हुए भालों, तोमर नामक शस्त्रों, चक्रों, गदाओं, कुल्हाड़ियों, मूसलों, हलों, शूलों, लाठियों, भिंडमालों, शब्बलों-लोहे के वल्लमों, पट्टिस नामक शस्त्रों, पत्थरों, हथौड़ों, दुघणों-विशेष प्रकार के भालों, मौष्ठिकों-मुट्ठी में आ सकने वाले एक प्रकार के शस्त्रों, मुद्गरों, प्रबल आगलों, गोफणों, दुहणो (कर्करों) बाणों के तुणीरों, कुवेणियों-नालदार बाणों एवं आसन नामक शस्त्रों से सज्जित तथा दुधारी तलवारों
और चमचमाते शस्त्रों को आकाश में फेंकने से आकाशतल बिजली के समान उज्ज्वल प्रभा वाला हो जाता है। उस संग्राम में प्रकट रूप से शस्त्र प्रहार होता है, महायुद्ध में बजाये जाने वाले शंखों-भेरियों उत्तम वाद्यों अत्यन्त स्पष्ट ध्वनि वाले ढोलों के बजने के गंभीर आघोष से वीर पुरुष हर्षित होते हैं और कायर पुरुषों को क्षोभ-घबराहट होती है, भय से पीड़ित होकर कांपने लगते हैं, इस कारण युद्धभूमि में होहल्ला होता है। घोड़े, हाथी, रथ और पैदल सेनाओं के शीघ्रतापूर्वक चलने से चारों
और फैली उड़ी हुई धूल के कारण वहां सघन अंधकार व्याप्त रहता है जो कायर नरों के नेत्रों एवं हृदयों को आकुल-व्याकुल बना
देता है। ३४. युद्ध क्षेत्र की बीभत्सता
ढीले होने के कारण चंचल एवं उन्नत मुकुटों, कुण्डलों तथा नक्षत्र नामक आभूषणों की उस युद्ध में जगमगाहट होती है। स्पष्ट दिखाई देने वाली पताकाओं-ऊपर फहराती हई ध्वजाओं, विजय को सूचित करने वाली वैजयन्ती पताकाओं तथा चंचल हिलते-डुलते चामरों और छत्रों से होने वाले अन्धकार के कारण वह गंभीर प्रतीत होता है। अश्वों की हिनहिनाहट से, हाथियों की चिंघाड़ से, रथों की घनघनाहट से, पैदल सैनिकों की हर-हराहट से, तालियों की गड़गड़ाहट से, सिंहनाद की ध्वनियों से, सीटी बजाने जैसी आवाजों से, जोर जोर की चिल्लाहट और किलकारियों से तथा एक साथ उत्पन्न होने वाली हजारों कंठों की ध्वनि से वहां भयंकर गर्जनाएं होती हैं।
फुडपहरणे, महारण-संख-भेरि-दुंदुभि-वर-तूर-पउर-पडुपडहाहय -णिणाय-गंभीर णंदित्त-पक्खुभिय-विपुलघोसे।
हय-गय-रह-जोह-तुरिय पसरिय रहुद्ध तवमंधकार बहुले, कायर-नर-णयण हियय वाउलकरे।
-पण्ह. आ.३.सु.६३-६४
३४. जुखखेत्तस्स बीभच्छत्ता
विलुलिय-उक्कड-वरमउड-तिरीड-कुंडलोड्डदामा-डोवियापागड-पडाग-उसियज्झय-वेजयंति-चामर-चलंत-छत्तंधकारगंभीरे।
हयहेसिय-हत्थिगुलुगुलाइय-रहघणघणाइय-पाइक्कहरहराइय-अप्फोडिय-सीहनाय-छेलिय-विघुट्ट-उक्किट्ठ-कंठ गयसद्द-भीम-गज्जिए।